वितरक-आरटीओ के सांठगांठ से पुराने नंबर लगाकर इस्तेमाल कर रहे लोग
जसेरि रिपोर्टर
रायपुर। छत्तीसगढ़ की सड़कों में बीएस फोर दोपहिया वाहनें बिना पंजीयन के फर्राटे भर रहे हैं। प्रदेश में प्रतिबंध के बाद भीर इन वाहनों की बिक्री का खेल जोरों पर चला है। डीलर्स द्वारा वाहनों की बिक्री तो कर दी गई, लेकिन इन गाडिय़ों का परिवहन कार्यालय में पंजीयन नहीं हो रहा है। पंजीयन के लिए वाहन मालिक परिवहन मुख्यालय और कोर्ट के चक्कर लगा रहे हैं। मजबूरी में गाड़ी खरीद चुके लोग पुराने वाहनों का नंबर प्लेट लगाकर वाहन का इस्तेमाल कर रहे हैं। परिवहन मुख्यालय ने मामले में प्रदेश भर के परिवहन कार्यालय से 31 मार्च तक कितने बीएस फोर वाहनों की बिक्री हुई थी और कितनी गाडिय़ों की बिक्री नहीं हो पाई है इसकी जानकारी मांगी थी, इसके साथ ही कितने विक्रय किए वाहन पोर्टल में अपलोड हैं, उनका पंजीयन किया जा सकता है। इसकी भी रिपोर्ट मांगी गई थी। लेकिन महीनों बाद भी इसका कोई नतीजा नहीं निकला है।
आधी किमत पर बेची गाडिय़ां, ग्राहक फंसे : सुप्रीम कोर्ट ने 31 मार्च 2020 से बीएस-4 वाहनों पर प्रतिबंध लगा दिया है और बीएस-6 वाहनों के बिक्री की अनुमति दी है। राजधानी के आटो डीलर्स के पास 31 मार्च 2020 के बाद भी लगभग 20 हजार बीएस-4 दुपहिया गाडिय़ां थी जिसकी बिक्री नहीं हो पाई थी। वितरक इन वाहनों को चोरी-छिपे ग्राहकों को आधी दाम पर बेचते रहे हैं। वितरक पहले तो ग्राहकों को किसी तरह इन वाहनों का पंजीयन करवा लेने का झांसा देते रहे लेकिन जब कोई रास्ता नहीं निकला तो पुराने वाहनों के नंबर लगाकर चलाने का रास्ता सुझाने लगे। मजबूरी में गाड़ी खरीद चुके ग्राहक ऐसे ही गाड़ी इस्तेमाल में लाने लगे हैं। ऐसी भी खबर है कि गाडिय़ां बेचने के लिए वितरकों ने बाकायदा आरटीओ के अधिकारियों से सेटिंग कर रखी थी।
कंपनियों ने नहीं लिया संज्ञान : दरअसल जब सुप्रीम कोर्ट ने 31 मार्च 2020 से बीएस-4 वाहनों की बिक्री पर रोक लगाने का आदेश दिया तब डीलर्स के पास बड़ी संख्या में ऐसे वाहनों का स्टाक था। ये वाहन तय डेड लाइन तक बिक पाते इससे पहले ही कोरोना के तलते लाकडाउन लगने से वितरक स्टाक क्लीयर नहीं कर पाए थे। परिणाम स्वरुप शहर के प्राय: कंपनियों के डीलर्स के पास बीएस-4 वाहन जाम हो गए। कंपनियों ने पहले ही डीलरो से गाडिय़ां वापस नहीं लेने का फरमान जारी कर दिया था और डेडलाइन समाप्त होने के बाद स्टाक शेष होने को लेकर संज्ञान भी लिया। इससे डीलर्स के पास जैसे-तैसे गाडिय़ों को बेच कर अपना नुकसान कम करने का ही एकमात्र रास्ता था।
परिवहन कार्यालय से सेटिंग : वितरकों के लिए परिवहन कार्यालयों द्वारा बीएस-फोर वाहनों का पंजीयन नहीं करने के चलते गाडिय़ों की बिक्री मुश्किल हो गई। ऐसे में वितरको ने परिवहन कार्यालय के अधिकारियों से सांठगांठ कर एजेंटों के माध्यम से आधी किमत पर नई गाड़ी उपलब्ध कराने का झांसा ग्राहकों को देकर इन वाहनों की बिक्री करवाने लगे। वे पहले ग्राहकों को किसी भी तरह वाहनों का पंजीयन करवा देने आश्वस्त करते रहे लेकिन जब पंजीयन संभव नहीं हुआ तो ग्राहकों को पुराने वाहनों का नंबर प्लेट और आरसी इस्तेमाल कर चलाने का जुगाड़ बताने लगे। मजबूरी में ग्राहक अब इसी जुगाड़ से गाड़ी का इस्तेमाल करने लगे हैं।
लोगों को सचेत रहने की जरूरत : परिवहन पोर्टल पर इस्तेमाल हो रहे नंबर उपलब्ध होने से वाहन खरीददारों को ज्यादा कठिनाई नहीं होगी लेकिन चेकिंग के दौरान अगर दस्तावेज की बारिकी से जांच हुई तो लेने के देने पड़ सकते हैं लेकिन मरता क्या न करता के तर्ज पर फंसा ग्राहक रिस्क उठाने मजबूर है। चेकिंग के दौरान दस्तावेज में चेसीस नंबर आदि पकड़ आने पर दुपहिया चालक के खिलाफ चार सौ बीसी के साथ एक्साइज का भी मामला दर्ज हो सकता है। वितरकों और परिवहन कार्यालय के अधिकारियों की सेंटिग का वाहन खरीददारों को भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। वितरको-आरटीओ की सेटींग से ही लगभग 35 हजार बीएस-4 वाहन की गलत तरीके से बिक्री का अनुमान है, जिनमें से अधिकांश के पंजीयन नहीं हो सके हैं।
नन्हा-मुन्ना राही के नक्शे कदम पर एक और सिपाही...
नन्हा-मुन्हा राही के तर्ज पर ही आरटीओ से संबंद्ध एक तेज-तर्रार व्यक्ति ने भी सरकार के लोगों के समक्ष प्रस्ताव रखा था कि आरटीओ का संपूर्ण उसे दे दिया जाए तो वह ज्यादा फायदेमंद साबित हो सकता है। उसने कहा था कि वह हमेशा से ही कांग्रेस के प्रति निष्ठावान रहा है और वह विभाग जिस पर भरोसा कर रहा है उससे ज्यादा विश्वसनीयता के साथ काम कर सकता है। ऐसे में उसे जिम्मेदारी दी जानी चाहिए, विभाग जिस पर भरोसा कर रहा है वह 15 साल भाजपा के लिए समर्पित रहा है ऐसे में वह भरोसेमंद साबित कैसे हो सकता है जो कांग्रेस सरकार व परिवहन विभाग को बदनाम करने की साजिश रच रहा है।
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