रायपुर। राष्ट्र-संत श्री ललितप्रभ जी महाराज ने कहा कि प्रभावशाली व्यक्तित्व के लिए व्यवहार में विनम्रता अपनाइए और बोली में मधुरता। विनम्रता दूध का काम करेगी तो मधुरता शरबत का। उन्होंने कहा कि पके हुए फल की तीन पहचान होती है : 1. वह नरम हो जाता है, 2. स्वाद में मीठा हो जाता है, 3. उसका रंग बदल जाता है। ठीक इसी तरह परिपक्व इंसान की भी तीन पहचान होती है : 1. उसमें नम्रता आ जाती है, 2. वाणी में मिठास आ जाती है, 3. उस पर आत्म विश्वास का रंग चढ़ जाता है।
संत प्रवर गुरुवार को स्वर्णकार समाज द्वारा झाबक वाड़ा, कम्मासी पारा स्थित सोनी भवन में आयोजित प्रवचन कार्यक्रम के दौरान श्रद्धालु भाई बहनों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि नम्रता को जीवन में जीने के लिए तीन मंत्र अपनाइए : 1. कड़वी बात का मिठास से जवाब दीजिए, 2. क्रोध आने पर चुप रहिए और 3. अपराधी को दंड देते समय भी मानवीय कोमलता अवश्य रखिए। इस नसीहत को सदा याद रखिए : कम खाइए, गम खाइए और नम जाइए। नगीने आखिर उसी सोने में लगा करते हैं जो नरम होता है।झुकता वही है जिसमें कुछ जान है, अकड़पन तो मुर्दे की पहचान है। अधिक दानों वाले पौधे ज्यादा झुकते हैं, भूसे वाले अकड़े हुए खड़े रहते हैं।
उन्होंने कहा कि हम उस वृक्ष की तरह बनें जो जैसे-जैसे फलों से लदता है नमता चला जाता है। उस काठ की तरह न बनें जो टूट तो सकता है, पर नम नहीं सकता। उन्होंने कहा कि मित्रों को नमस्कार करने की आदत डालिए और अपने से बड़ों के चरण स्पर्श करने की। अभिवादन के बदले अभिवादन मिलता है और प्रणाम के बदले आशीर्वाद। बड़ों को आशीर्वाद। यदि जीवन का धन है तो सोचिए कि आप अब तक यह धन कितना बटोर पाए हैं। उन्होंने कहा कि नमस्कार अहंकार का समाधान है। रावण यदि अहंकार का प्रतीक है तो राम नम्रता के। जीवन में यदि लघुता और नम्रता रखेंगे तो यह कहावत स्वत: आप पर चरितार्थ हो जाएगी : लघुता से प्रभुता मिले, प्रभुता से प्रभु दूर; कीड़ी शक्कर ले चली, हाथी के सिर धूर।