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रायपुर। ऐसा बहुत कम होता है कि कोई जननेता राजनीति में हो और राजनीति के प्रचलित मानकों से खुद को ऊपर उठाकर रखें। प्रदेश के सर्वाधिक लोकप्रिय और जनप्रिय राजनीतिज्ञ बृजमोहन अग्रवाल बेशक ऐसी ही शख्सियत हैं जिन पर राजनीति ने कभी अपना कब्जा नहीं जमाया। जनता के हित और प्रदेश की तरक्की को सदैव प्राथमिकता मानकर चलने वाले हरफनमौला बृजमोहन अग्रवाल उस कसौटी पर पूरी तरह से खरे उतरे हैं जिसे सामान्य जन से लेकर रसूखदार तबका भी दिल से पसंद करता है। संभवतः इसी का उदाहरण है मध्यप्रदेश से लेकर छत्तीसगढ़ में निरंतर चुने जा रहे इस व्यक्ति की लोकप्रियता में लगातार वृद्धि होते जाना । आज 1 मई अर्थात श्रम दिवस पर इस व्यक्तित्व का आंकलन करना एक अर्थों में राजनीति के लगातार बदलते दौर में उम्मीदों की किरणों से हर किसी को परिचित कराने जैसा मानने का कोई हर्जा नहीं।
भरोसे की डोर कायम रखी-
इसे शायद जुझारू तेवरों के बावजूद उनकी विनम्रता का कमाल ही कहें कि छात्र जीवन से लेकर आज तक भरोसे रूपी उस डोर को मजबूत बनाये रखा जो 21 वीं सदी में निरंतर न सिर्फ टूट रही है वरन् जनता का विश्वास जिससे उठते जा रहा है। दरअसल राजनीति की कालिख से भरी कोठरी में बेदाग होकर निकलने वाले और जनता की भावनाओं पर शत प्रतिशत खरा उतरने वाले इस व्यक्तित्व का इसे जादूई करिश्मा मानने की बजाय यदि हम जनता के प्रति उनकी जवाबदेही समझें तो उन्हें समझना आसान होगा । असल में कथनी और करनी के बीच की उस महीन रेखा को कभी दरकने न देना इसका संबल बना। प्रमाण चाहिए तो दो दशक की राजनीति के उथल-पुथल भरे दौर में प्रदेश के हित में उठाये गये असीमित कदमों को जरा पूर्वाग्रहों से ऊपर उठकर खंगालें ।
साहित्यकारों के प्रिय -
यह कौतुक नहीं वरन् सच्चाई है कि प्रदेश में साहित्यकारों के बीच किसी नेता की चर्चा सर्वाधिक हुआ करती है तो वह बृजमोहन अग्रवाल की। साहित्यिक आयोजनों में वे सिर्फ इसलिए नहीं बुलाये जाते कि वे सत्ता के बड़े पदों पर रहे है वरन् इसलिए कि पढ़ने- लिखने में उनकी पकड़ और विकसित होती साहित्यिक रूचियां। वे अक्षर की भाषा तो समझते ही हैं साहित्यकारों का मौन भी सुनने में माहिर हैं। यही कारण है जो उन्हें बोलते देखकर दिग्गज साहित्यकार भी उनकी शैली पर दाद देना नहीं भूलते।
आध्यात्मिक ध्वजा -
आध्यात्मिक मोर्चे पर इस प्रदेश की पहले ऐसी कोई आनुष्ठानिक पहचान नहीं थी। राजिम कुंभ के रूप में आश्चर्यजनक सोच ने छत्तीसगढ़ को देश की आध्यात्मिक बिरादरी से न सिर्फ जोड़ा वरन् कुंभ पट्टी में छत्तीसगढ़ को पहुंचा कर स्थानीय जनसमाज को उस अमृत तुल्य अनुभव से जुड़ने का सुअवसर दे दिया जिसकी उन्हें सनातन तलाश थी। इसे उनकी सजग रीत नीति का ही परिणाम कहें कि पारंपरिक अखाड़ों ने न सिर्फ इस पर मुहर लगाई थी।
निपुण रणनीतिकार -
अपने दौर के दिग्गज राजनीतिज्ञ श्यामचरण शुक्ल ने एक बार सार्वजनिक रूप से कहा था कि, सीखना है तो बृजमोहन अग्रवाल से सीखों। असल में इसकी सबसे बड़ी वजह उनका नियमों में रहकर नतीजे देना है। अपनी वाकपटुता, ज्ञान क्षमता, जनता की नब्ज पहचानने की अचूक दूरदृष्टि और समाज में क्या कुछ घट रहा है इससे अपडेट रहने की ललक। वास्तव में वे समय के साथ चलने में यकीन रखने वाले राजनेता हैं । शायद इसीलिए उनके कहे का युवाओं से लेकर हर उम्र तक गहरा असर होता है।
सदैव सभी के लिए उपलब्ध -
बृजमोहन अग्रवाल नाम के इस व्यक्ति में व्यक्तिगत कुछ भी नहीं, जो कुछ है वह समाज का, तेरा तुझको अर्पण की तर्ज पर। सुबह से लेकर मध्य रात्रि तक जनता के सुख दुःख में खुद को झोंक देने वालों में से है। आने वाली प्रत्येक कॉल को अटेण्ड करना और सरगुजा से लेकर बस्तर तक के प्रतिनिधि मण्डल की समस्याओं को सुन उसके त्वरित निराकरण के लिए दफ्तर को मुस्तैद करना... उनकी इन खूबियों का जोड़ निकालना मुश्किल है। दरअसल विकास को अपने जीवन का मूलमंत्र मानकर उन्होंने खुद को कुशल संगठनकर्ता, मेहनती, ईमानदार और बेदाग छवि वाला ऐसा राजनीतिज्ञ साबित किया है जिसके लिए घर और समाज या जाति प्रमुख नहीं वरन् प्रमुख है जनता का कल्याण। सभी मत, पंथ सम्प्रदय, मजहब और मान्यताओं के असंख्य लोग उनसे पूरे विश्वास और आत्मियता से मिलते हैं और कभी नहीं निराश नहीं लौटते तो इसी आत्मीयता की बदौलत।
उपलब्धियों का सफरनामा -
सन् 1977 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से सार्वजनिक जीवन में कदम रखने के बाद पीछे मुड़ कर कभी नहीं देखा। सन् 1981 में दुर्गा महाविद्यालय छात्र संघ अध्यक्ष, सन् 1982 में कल्याण महाविद्यालय छात्र संघ अध्यक्ष, सन् 1986 में भाजयुमों प्रदेश उपाध्यक्ष, सन् 1990 में पहली बार विधायक निर्वाचित, अविभाजित मध्यप्रदेश में पर्यटन, विज्ञान और टेक्नोलॉजी मंत्री के रूप में ख्याति, सन् 1991 में भाजयुमो प्रदेश महामंत्री। अविभाजित मध्यप्रदेश के दौर से निरंतर विधायक रहते हुए छत्तीसगढ़ निर्माण पश्चात बनी भाजपा सरकार में 15 वर्षों तक कैबिनेट की अहम हिस्से रहें। गृह, लोक निर्माण, वन,कृषि, राजस्व, जलसंसाधन जैसे महत्वपूर्ण विभागों का जिम्मा संभाला। 2018 के विधानसभा चुनाव में 15 सालों की रमन सरकार जहां ताश के पत्तों की तरह धराशाई हो गई ऐसे समय में बृजमोहन अग्रवाल भगवा ध्वज थामे खड़े रहे और रायपुर दक्षिण विधानसभा से लगातार सातवीं जीत दर्ज की। आज बृजमोहन अग्रवाल छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार पर सबसे ज्यादा तीखे हमले करने वाले विपक्षी नेता कहे जाते है।
संस्कारों की सार्थकता....
प्रदेश की राजनीति में बेमिसाल मिसाल के रूप में दर्ज बृजमोहन अग्रवाल का जन्म मजदूर दिवस पर होना सुखद ही नहीं, सार्थक संयोग भी माना जाना चाहिए। 1 मई 1959 को जन्मे श्री अग्रवाल ने कभी स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि राजनीति में इतना लम्बा सफर तय कर लेंगे। पिता श्री रामजी लाल अग्रवाल द्वारा दी गई संस्कारित शिक्षा का परिणाम है कि इस पथ को उन्होंने आगे बढ़ाकर सार्वजनिक जीवन से ले जाकर जोड़ दिया और राजनीति की डगर को शुभ्र धवल बना दिया। आज वे इस प्रदेश में मास लीडर के रूप में जाने जाते हैं। उनका काफिला जिस भी इलाके से गुजरे लोग बाग सहर्ष स्वागत में खड़े दिखाई पड़ते हैं। देर रात तक घर में, कार्यकर्ताओं के बीच या फील्ड में मिलते हुए, मन में कभी भी रंचमात्र की थकान या चिन्ता नहीं। याददाश्त तो इस कदर जबरदस्त कि पूरे राज्य में कार्यकर्ताओं, मीडिया के साथियों, शुभचिंतकों को सीधे नाम से पुकारते हुए उन्हें जनता देखती है।
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Shantanu Roy
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