छत्तीसगढ़

रवि-आसिफ का नेटवर्क तोड़ना नारकोटिक्स सेल के लिए बड़ी चुनौती

Nilmani Pal
19 Feb 2022 5:02 AM GMT
रवि-आसिफ का नेटवर्क तोड़ना नारकोटिक्स सेल के लिए बड़ी चुनौती
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प्रबंध संपादक - पप्पू फरिश्ता

  1. राजधानी में अफीम-डोडा-गांजे का बड़ा धंधा
  2. पेडलर आसानी से खपा रहे माल
  3. ट्रक ड्राइवरों को होती है सप्लाई,
  4. रिंग रोड में कई ढाबे भी हैं बिक्री का अड्डा
  5. छुटभैय्ये नेताओं का धंधेबाजों को संरक्षण
  6. डी-कंपनी की तर्ज पर रवि-आसिफ गैंग - राजधानी में रवि और आसिफ अब अपने करोबार को चलाने के लिए डी-कंपनी का तरीका अपनाने लगे है। रायपुर में नामी सट्टा किंग रवि साहू, और गांजा तस्कर आसिफ को पुलिस अब तक पकड़ नहीं पाई है। और ये दोनों अपराधी अपने धंधे को डी-कंपनी की तरह चलाते जा रहे है। पुलिस भी इस बात से बेखबर है और सबसे हैरान करने वाली बात तो ये है कि पुलिस इनके ठिकानों में छापा मारने जाते भी है तो रवि और आसिफ गैंग डी-कंपनी के जैसे काम करने लगे है। हर गलियों में अपने गुर्गे बिठाकर रखे हैं। लोगों को गांजा बेचने के लिए आसिफ अपने गुर्गों का इस्तेमाल करता है। और सट्टा खिलाने के लिए रवि अपने गुर्गों का। इन दोनों मास्टर माइंड अपराधियों तक पुलिस का पहुंच पाना मुश्किल है क्योंकि इन रवि और आसिफ गैंग डी-कंपनी के जैसे काम करने लगे प्राप्त है।

जसेरि रिपोर्टर

रायपुर। राजधानी में रोजाना नशे का कारोबार चल रहा है, रवि साहू और आसिफ गैंग अपना सट्टा-जुआ, गांजा का कारोबार चलने के लिए रोज नए-नए तरीके का इस्तेमाल कर रहे है। नशे का व्यापार पूरे शहर भर में बढ़ते जा रहा है नशे के सौदागरों ने राजधानी को अपना गुलाम बना लिया है और युवाओं को अपना दलाल। ये वो दलाल है जो चंद रुपयों के लिए नशे के दलदल अपने साथ दूसरों को भी धकेल लेते है। आखिरकार नशा क्या शहर में युवाओं की जड़ो को काट रहा है? या फिर युवाओं में नशा सिर्फ पार्टियों के लिए बिकते जा रहा है। नशे के काले कारोबार की सच्चाई रोंगटे खड़े कर देती है। यह समस्या लगातार गंभीर होती जा रही है। नशे को लेकर रायपुर निशाने पर तो था ही अब ऐसे मामले सामने आ रहे हैं कि पहले युवाओं को नशे का शिकार बनाया जाता है और फिर उनको ड्रग पैडलर बनाया जा रहा है।

राजधानी के टाटीबंध से लेकर धरसींवा तक अफीम-डोडा के अलावा गांजे की खपत करने वालों का भी बड़ा नेटवर्क सक्रिय है। ट्रक चालक-हेल्पर या ट्रांसपोर्टिंग लाइन से जुड़े अन्य लोगों को आसानी से गांजा उपलब्ध कराया जाता है। यह नेटवर्क आमानाका, कबीर नगर, उरला, खमतराई और धरसींवा थाना क्षेत्र में ज्यादा सक्रिय है। इसकी बड़ी वजह इन इलाकों में दूसरे राज्य के ट्रकों, भारी वाहनों का आना-जाना लगा रहता है। इसके अलावा फैक्ट्रियों में काम करने वाले भी बड़ी संख्या में रहते हैं, जो बिहार, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, ओडिशा व महाराष्ट्र से आए रहते हैं। इनमें गांजा आसानी से खपत जाता है।

रिंग रोड-3 के आसपास अड्डा

टाटीबंध से लेकर भनपुरी तिराहे तक रिंग रोड नंबर-3 के आसपास गांजा तस्करों का नेटवर्क ज्यादा सक्रिय है। ढाबों के अलावा सड़क किनारे पंडाल लगाकर भी गांजा बेच रहे हैं। उल्लेखनीय है कि सड़क किनारे और ढाबों के आसपास ही दूसरे राज्य के ट्रक ड्राइवर रात रूकते हैं। और गांजा, अफीम व डोडा का नशा करते हैं। सस्ता होने के कारण गांजा ज्यादा बिक रहा है।

हिस्ट्रीशीटर करवा रहे हैं गोरखधंधा

गांजा तस्करी और बिक्री के खेल में कई हिस्ट्रीशीटर शामिल हैं। उरला, खमतराई, आमानाका और कबीर नगर इलाके में पुराने हिस्ट्रीशीटर गांजा बिक्री करवा रहे हैं। इसके अलावा शराब की अवैध बिक्री के धंधे में ही इन्हीं का हाथ है।

ठेको की जगह कालीबाड़ी में शराब

रायपुर शहर के ठेकों में मासूम भी शराब के जाम गटक रहे हैं। यह सब दिन-दहाड़े और शहर के व्यस्त क्षेत्र में हो रहा है। शहर के प्रमुख स्थानों पर शराब के ठेकों की स्थिति यह है कि किसी भी उम्र का किशोर शराब की बोतल खरीदकर ले जा सकता है। शराब लेने के बाद कई किशोर तो इन दुकानों में अंदर बैठकर भी दीवार की ओट में शराब पीते हुए दिखाई देते है। शहर के बस डिपो, माना रोड, अंतर्राज्यीय बस टर्मिनल सहित कई स्थानों किशोर शराब ले जाते हुए मिले।

डी-कंपनी की ब्रांच रायपुर से महासमुंद तक

राजधानी में रवि और आसिफ के गुर्गों ने मिलकर रायपुर को भी डी-कंपनी बना लिया है। रायपुर शहर बहुत बड़ा है इसलिए इस शहर में अपराध भी बहुत बड़े है। डी-कंपनी एक मोस्ट अंडरवल्र्ड डॉन के नाम से जानी जाती है लेकिन अब रायपुर के मशहूर गुंडे-दादा लोग इस कंपनी के कामकाज को अपनाने लगे है। रायपुर के कालीबाड़ी इलाके से लेकर महासमुंद तक फैला हुआ है।

चौक-चौराहे, सार्वजनिक स्थलों में गंजेडिय़ों का डेरा

राजधानी के कई इलाकों में गांजा कारोबार बढऩे लगा है। गांजा बेचने वाले अपने कारोबार को बढऩे के लिए गली-गली घूम-घूमकर ग्राहक तलाश रहे है। शहर में नशे का कारोबार थमने का नाम नहीं ले रहा है। राजधानी में ऐसे स्थान भी हैं, जहां पुडिय़ा या माल बोले तो हाथ में तुरंत गांजे की पुडिय़ा आ जाएगी। चौंकाने वाली बात है कि यहां बच्चा-बच्चा इसको जानता है, लेकिन छुटभैय्या नेताओं के संरक्षण के चलते ये कारोबार आए दिन बढ़ते जा रहा है। गांजे का कारोबार शहर की गली-गली में इस कदर फैल चुका है कि कहीं थोड़ी दूरी पर तो कहीं घर से ही नशा बेचा जा रहा है। बेखौफ कारोबार करने वालों ने महिलाओं और बच्चों को भी इसमें झोंक रखा है। गांजे के तलबगार 50 या 100 रुपए देकर आसानी से नशा खरीद रहे हैं। पुलिस की लगातार कार्रवाई के बाद भी नशे के सौदागर अपने कारोबार को बंद नहीं करते है।

ऑर्डर मिलते ही बाइक में डिलीवरी

शहर में नशे का कारोबार हाईटेक तरीके से हो रहा है। नशे के कारोबार में लिप्त युवा शहर के युवा गली-चौराहों से ही अपने अवैध कारोबार को चलाते हैं। ये अपने साथ बाइक में ही नशे का सामान अपने साथ रखते हैं। ग्राहक का ऑर्डर आते ही उसके स्थान पर नशे की पुडिय़ा पहुंचा दी जाती है। नशे का कारोबार करने वाले युवा इस दौरान उन्हीं को सामान देते हैं जो उनके विश्वास पात्र होते हैं। वे अपने साथ बाइक में सिर्फ उतना ही सामान रखकर चलते हैं जितने का उन्हें ऑर्डर मिलता है।

गंजेडिय़ों की बनी चेन

राजधानी के कालीबाड़ी इलाके में स्थित सुलभ शौचालय के आगे स्थित खाली मैदान के पास से गली जाती है। ये वही गली है जहा शहर भर के नशेड़ी आना-जाना करते है इस गली में गांजा, सट्टा, जुआ का कारोबार खुलेआम चल रहा है। गंजेड़ी नशेड़ी लोग इस गली को रखवाली करने के लिए पूरी गली में पहरा देने के लिए एक चेन बनाकर काम कर रहे है। गलियों से ही इलाके से बाहर भागने का भी रास्ता अवैध कारोबरियों ने बना लिया है। सबसे चौकाने वाली बात तो ये है कि कोतवाली थाना पुलिस को इसकी भनक तक नहीं लग रही है। जबकि इसी गली की एक छोर में गांजा बिकता है तो दूसरे छोर में सट्टा चलता है।

गांजा का गढ़ बना रायपुर

राजधानी में समता कालोनी, तेलीबांधा, कटोरातालाब, राजातालाब, बस स्टैंड, मोवा, दलदल सिवनी, पुरैना, गुढिय़ारी, कोटा, गोगांव, खमतराई, बिरगांव, कबीर नगर, बोरिया खुर्द और बोरियाकला, टीटीबंध, लाभांडी के तक गांजा बेचने वालों का जाल बिछा है। हर रोज लाखों के गांजों का सौदा होता है। लेकिन पुलिस बेखबर है। छुटपुट कार्रवाई से पुलिस संतुष्ट राजधानी में जहा एक तरफ 2 हफ्ते या 3 हफ्ते में कोई एक गांजे की खेप पुलिस पकड़ती है, तो वही कुछ आरोपी पुलिस को चकमा देकर बच जाते है। जब तक पुलिस का ऑपरेशन क्लीन चल रहा था। तब तक शहर में बहुत लोगों की भी गिरफ्तारी भी हुई। लेकिन उसके बाद जैसे ही ऑपरेशन क्लीन क्लोज़ हुआ नशा शहर भर में ओपन होने लगा है।

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