मोटी सड़क की मोटी कमाई, अधिकारियों ठेकेदारों ने मिल-बांट कर खाई...
- प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना की सड़के गायब
- बड़े अधिकारी की मिलीभगत के चलते छोटे अधिकारी पर कार्रवाई नहीं
- प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना में गड़बडिय़ों की अनदेखी
- सीईओ ने जांच कराने की बात कही थी, आज तक टीम गठित नहीं हुई
- जनता की टैक्स की गाढ़ी कमाई का पैसा लूट रहे अधिकारी-ठेकेदार
- मीडिया में आ रही खबरों और शिकायतों को कर रहे नजरअंदाज
- फर्जी रिपोर्ट तैयार कर योजना के बेहतर क्रियान्वयन का दिखावा
- विभागीय मंत्री और उच्च अधिकारियों की नहीं टूट रही नींद
जसेरि रिपोर्टर
रायपुर। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना में भारी भ्रष्टाचार और गड़बड़ी के बाद राज्य सरकार के संबंधित विभाग और मंत्री का इसे संज्ञान में नहीं लेना दर्शाता है कि अधिकारियों और ठेकेदारों को जनता के पैसों को लूटने की खुली छूट दे दी गई है। शायद इसीलिए मीडिया में लगातार आ रही गड़बड़ी और भ्रष्टाचार की खबरों और लोगों की शिकायतों को नजरअंदाज कर दिया जाता है। कार्रवाई के नाम पर उच्चाधिकारी महज जांच करवाएंगे या दिखवा रहे हैं का रटा-रटाया जवाब देकर मामले को ठंडे बस्ते में डाल देते हैं।
उल्लेखनीय ग्रामीण इलाकों में बनाए जा रहे प्रधानमंत्री ग्राम सडक़ योजना की सडक़ों के निर्माण में खुलेआम भ्रष्टाचार हो रहा है। क्षेत्रीय अफसर और ठेकेदार मिलीभगत कर कम लागत में दोयम दर्जे की निर्माण कर शासन के करोड़ों रुपए डकार रहे हैं। विभागीय अधिकारियों को या तो इनकी कारगुजारियों का पता नहीं है या फिर पता होने के बाद भी कमीशनखोरी के चक्कर में कोई कार्रवाई अथवा जांच नहीं हो रही है। सडक़ों के निर्माण में मापदंडों और गुणवत्ता का कहीं भी ख्याल नहीं रखा गया है। मटेरियलों के इस्तेमाल में भी तय मापदंड नहीं अपनाए गए हैं। ऐसा प्रदेश के एक जिले या विकासखंड ही नहीं पूरे छग प्रदेश में आदिवासी और दूरस्थ इलाके के गांवो में भी इस योजना के तहत बनी और बनाई जा रही सडक़ों में व्यापक गड़बडिय़ों की शिकायतें मिल रही हैं। संबंधित विभाग के उच्चाधिकारी न तो निर्माण कार्यो की समय-समय पर मॉनिटरिंग करते हैं न ही वस्तु स्थिति से विभागीय मंत्री को अवगत कराते हैं। विभाग टेंडर जारी कर अपने कत्र्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं और सारा काम निचले स्तर के अधिकारियों की देखरेख में होता जो बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार कर ठेकेदारों को घटिया निर्माण का अवसर देते हैं। विभागीय मंत्री को तत्काल इस पर संज्ञान लेकर गड़बडिय़ों की जांच करवाकर दोषी अधिकारी-ठेकेदारों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए।
योजना में गुणवत्ताहीन काम
करोड़ों रुपए की लागत से बनने वाली ये सड़कें स्तरहीन और निम्न दर्जे की बन रही है. जिन सड़कों को कम से कम 5 बार के लिए अच्छी स्थिति में होने का दावा विभाग कर रहा है, उन सड़कों का आलम यह है कि बनने के 5 दिन बाद ही, साधारण हाथों से सड़कें उखड़ रही है। गरियाबंद जिले के देवभोग ब्लाक में बनी सड़कों का ज्यादातर हिस्सा गुणवत्ताहीन है. जो बनने के कुछ समय बाद ही उखडऩे लग गया है। सीलिंग कोट होने के बाद भी सड़क उखड़ रही है. जबकि जिस सड़क को फाइनल कर दिया गया है वह भी साधारण हाथों से ही उखड़ रही है. ग्रामीणों ने ठेकेदार की मनमानी और गुणवत्ताहीन काम की शिकायत सीधे मीडिया से की. मौके पर मीडिया ने भी यह पाया की सड़कें पूरी तरह गुणवत्ता हीन है. ग्रामीण भी मानते हैं कि ऐसी सड़क का 5 साल चलना नामुमकिन है।
निर्माण एजेंसी को अफसरों का संरक्षण
ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि घटिया निर्माण कार्य की जानकारी विभागीय अफसरों को है। इसके बाद भी कार्रवाई करने के बजाय हाथ में हाथ धरे बैठे हुए हैं। निर्माण एजेंसी को विभागीय अफसरों का संरक्षण मिल रहा है। ग्रामीणों ने यह भी आरोप लगाया है कि ठेकेदार द्वारा गुणवत्ता का ध्यान नहीं रखा गया जिससे सड़कों में दरार आनी शुरू हो गई है। चंद महीनों में सड़कें धंसकने के साथ डामर भी उखडऩे लगा है।
विभागीय अधिकारी दे रहे भ्रष्टाचार में साथ
नियम अनुसार सड़क निर्माण की शुरुआत में मुरुम को बिछाते हुए हर एक परत में पानी से भिगोकर प्रेसर रोलर से मुरम को दबाया जाना होता है मगर ठेकेदार ने मुरम की अवैध खनन कर उक्त सड़क की वेस बना डाला मगर पानी की एक बूंद भी सड़क में नही डाला गया न ही रोलर चलाया गया ग्रामीणों के विरोध करने के बाद भी ठेकेदार अपने मनमानी से घटिया सड़क निर्माण कर रहे है और ऐसा गुणवत्ता हीन निर्माण तभी संभव है जब विभागीय अधिकारियों का साठ गांठ हो। कमीशन खोरी के लिए अधिकारी भुगतान में लेट-लतीफी करते हैं जिससे सड़कों का निर्माण पूरा होने में विलंब भी होता है और मनमाफिक कमीशन मिलने पर अधिकारी पेमेंट जारी करते हैं जिसके बाद ही ठेकेदार काम आगे बढ़ाते है वो भी महज सड़क बनी है यह दिखाने के लिए।
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