छत्तीसगढ़

बड़े व नामी बिल्डर की देखा सीखी छोटे भी करने लगे हिमाकत, गोंदवारा में अवैध प्लाटिंग

Nilmani Pal
30 Nov 2021 5:14 AM GMT
बड़े व नामी बिल्डर की देखा सीखी छोटे भी करने लगे हिमाकत, गोंदवारा में अवैध प्लाटिंग
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  1. राजधानी में रियल स्टेट कारोबारियों का दबदबा, छुटभैय्ये नेताओं विभागीय अधिकारियों से सांठ-गांठ कर दबा रहे सरकारी जमीन
  2. गोंदवारा में बिल्डर और दलाल कर रहे हैं स्कूल के पीछे सरकारी जमीन पर अवैध प्लाटिंग
  3. राजनीतिक रसूख और अधिकारियों से सांठगांठ कर भू-माफिया करोड़ों सरकारी जमीन पर प्रोजेक्ट लांच
  4. 36 सिटी माल के पास निर्माणाधीन प्रोजेक्ट में भी सरकारी जमीन दबाने के आरोप
  5. सरकारी जमीनों पर बिल्डरों की गिद्ध दृष्टि
  6. स्वागत विहार मामले में भी जांच के नाम पर लीपापोती
  7. सड्डू में नाले की जमीन पर अतिक्रमण, प्रशासन मौन
  8. सरकारी जमीन ग्रीनलैंड में तब्दील होने का हुआ था पर्दाफाश

जसेरि रिपोर्टर

रायपुर । राजधानी रायपुर और उससे लगे आस-पास के इलाकों में सरकारी खाली जमीनों पर कब्जा कर प्लाटिंग और हाउसिंग प्रोजेक्ट डेव्हल्प कर बिल्डर रियल स्टेट कारोबारी सरकार को बड़े राजस्व की हानि पहुंचा रहे हैं। अपनी राजनीतिक रसूख और अधिकारियों से सांठगांठ कर ये भू-माफिया करोड़ों का प्रोजेक्ट लांच कर अपनी तिजोरी भर रहे हैं। अभी हाल में गोंदवारा रोड गुढिय़ारी में एक बिल्डर और दलालो द्वारा स्कूल के पीछे की सरकारी जमीन को घेर कर अवैध प्लाटिंग किया जा रहा है। उपभोक्ता जब दलालों से जमीन खरीद कर मकान बनाना शुरू करते हैं तब निगम और जिला प्रशासन की नींद खुलती है तब तक आम नागरिक लुट चुका होता है। गुढिय़ारी और गोंदवारा से संपर्क करने पर उन लोगों ने बताया कि बिल्डर और दलाल रसूखदार होने के वजह से लोग शिकायत करने से कतराते हैं उन लोगों ने कहा कि शासन-प्रशासन संज्ञान में लेकर कार्रवाई करें तो स्थिति साफ हो जाएगी।

बिल्डरों और दलाल फंसा रहे

भोले-भाले लोगों को

गुढिय़ारी स्कूल के पीछे सरकारी जमीन को निजी जमीन बताकर बिल्डरों एवं दलालों द्वारा भोले-भाले लोगों को सस्ते में बेचा जा रहा है। लोग जीवन भर की अपनी गाढ़ी कमाई इन बिल्डरों और दलालों के हवाले कर देते हैं और बाद में परेशान होते हैं। वैसे भी बिल्डरों द्वारा सरकारी जमीनों से लगे किसानों की कृषि जमीनों को औने-पौनेे दाम पर खरीद कर सरकारी जमीनों की पटवारियों व राजस्व अधिकारियों की मिली भगत से फर्जी दस्तावेज तैयार कर कई बड़े-बड़े बिल्डर अपना धंधा चमका रहे हैं। ऐसे कई मामले सामने आए जिसमें बिल्डरों ने खरीदे हुए जमीन के बीच में आने वाली सरकारी जमीनों और सड़क व रास्ते के जमीनों को दबा कर अपने आलीशान प्रोजेक्ट तैयार किए। सरकारी जमीन के साथ कई निजी जमीनों को भी कूटरचना कर इन बिल्डरों ने लोगों के साथ धोखाधड़ी की। शहर से लगे माना, नवा रायपुर, मुजगहन, डूंडा, बोरियाखुर्द, बोरियाकला, सरोना, चंगोराभाठा, डूमरतालाब, गोगांव, गोंदवारा, बिरगांव, भनपुरी, सिलतरा, खम्हारडीह, कचना आदि इलाके की खाली जमीनों पर कब्जा कर प्लाटिंग करने के सौ से अधिक शिकायतें रायपुर और बिरगांव नगर निगम तक पहुंची है जिसपर कार्रवाई भी हो रही है। अवैध प्लाटिंग के मामले में नगरीय निकायों ने कई छोटे-बड़े बिल्डरों और सहयोगियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाए हैं। हालाकि दूसरों की जमीन पर जबरिया कब्जा कर उसे प्लाटिंग कर बेचने की कोशिश करने वाले बिल्डर, उनके पार्टनरों के राजनीतिक रसूख के चलते छोटी शिकायतों पर तो पुलिस और नगर निगम ने कार्रवाई की, लेकिन जिस जमीन पर बड़े भू-माफियाओं के नाम जुड़े निकले, उन शिकायतों को जांच के नाम पर या तो रद्दी की टोकरी में डाल दिया गया या फिर पीडि़त पक्ष को कोर्ट जाने की सलाह देकर जिम्मेदारों ने अपने हाथ खींच लिए।

खाली और सरकारी जमीन बेचने

का चल आ रहा खेल

खाली जमीनों-प्लाटों पर बिल्डरों का कब्जा रायपुर जिले में पिछले कई सालों से दूसरे की खाली और सरकारी जमीन पर कब्जा कर उसे बेचने का खेल चला आ रहा है। खासकर शहर के आउटर इलाके की खाली जमीन छोटे-बड़े बिल्डरों के निशाने पर है। प्रशासन चाहकर भी इस पर लगाम कसने में नाकाम है। हालांकि, कुछ शिकायतों पर नगर निगम अमले ने कार्रवाई भी की है, लेकिन ये वह जमीन है, जो सरकारी है। आम लोगों की जमीन पर कब्जे की शिकायतों पर न तो पुलिस कार्रवाई कर रहा है और न ही प्रशासन ही कारगर कदम उठा रहा है। पुलिस प्रशासन पर दबाव बनाने के लिए बिल्डरों ने सत्तापक्ष के नेताओं को भी साध रखा है। यही वजह है कि करोड़ों की जमीन हथियाने का खेल आउटर इलाके में चल रहा है। शहर के सबसे बड़े बिल्डर जो अपने हर प्रोजेक्ट में जंगल को किसी न किसी रूप में शामिल करता है उसने भी कबीरनगर हाऊसिंग बोर्ड में मकान खरीद कर पिछे रास्ता बनाया गया जो कि कानून के अंर्तगत अवैध माना जाता है। एक स्वीकृत ले आउट प्लान के अंदर दूसरा ले आउट प्लान के लिए रास्ता शासकीय जमीन से ले जाने का आरोप भी लगा था लेकिन कार्रवाई के नाम पर लेनदेन कर मामले की लीपापोती कर दिया गया। शहर एक बड़े बिल्डर पर यह भी आरोप है कि हाउसिंग बोर्ड की रास्ते की जमीन को दबाकर अपना प्रोजेक्ट खड़ा किया, इसके अलावा 36 सिटी माल के पास निर्माणाधीन प्रोजेक्ट में भी सरकारी जमीन दबाने के साथ कचना रोड के रास्ते की शासकीय भूमि छोटे जंगल की भूमि और बड़े झाडों का जंगल अपने प्रोजेक्ट में अवैध रूप में कब्जा लिया। जिसकी उच्च स्तरीय जांच करने की उपरांत ही सच्चाई उजागर हो सकती है। सड्डू में नाले की जमीन पर अतिक्रमण करने की बात सामने आई है लेकिन शासन प्रशासन फि़लहाल आंख कान बंद किये बैठे हैं।

मछली जाल तोड़कर भागने में कामयाब

कई साल पुराने स्वागत विहार मामले में भी जाँच के नाम पर लीपापोती की गई थी ऊपर से नीचे तक कई अधिकारी इसके चपेट में आये थे लेकिन एक को बलि का बकरा बनाकर बाकी को छोड़ दिया गया। जिसकी भी चर्चा काफी दिनों तक शहर में रही। हालांकि टॉउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग ने लिखकर वे 2007-08 के बाद जितनी भी कॉलोनियों के लेआउट पास हुए हैं, उनकी बारीकी से जांच करने का कहा था। लेकिन जाँच का रिज़ल्ट अभी तक लोगों को पता नहीं चल पाया। जांच के नाम पर राजधानी के आधा दर्जन से अधिक बड़े बिल्डरों की कॉलोनियों के लेआउट प्लान की जांच की बात कही गई थी। जाच हुई जरूर लेकिन बड़ी मछली जाल तोड़कर भागने में कामयाब हो गई और छोटी मछली फंस गई।

कृषि भूमि पर बिना अनुमति के अवैध प्लाटिंग

अवैध प्लाटिंग को लेकर सबसे ज्यादा खेल आउटर इलाके में किया जा रहा है। कुछ साल पहले ही गोगांव, गोंदवारा, भनपुरी, सिलतरा में 25 एकड़ से ज्यादा सरकारी जमीन को ग्रीनलैंड में तब्दील करने का पर्दाफाश हुआ था। वहां कई लोगों ने सरकारी और घास जमीन पर अवैध प्लाटिंग और कब्जा कर लोगों को बेचने की कोशिश की थी। इन सभी जगहों की जमीन पर निगम ने बाउंड्रीवाल बनाकर उसे ग्रीनलैंड में तब्दील किया था। जिस कृषि भूमि पर बिना अनुमति के अवैध प्लाटिंग की गई है, खेती की जमीन पर अवैध प्लाटिंग होने पर पूरे क्षेत्र की जमीन को फिर से ग्रीनलैंड में बदला जाएगा। मास्टर प्लान में जो क्षेत्र कृषि या आमोद-प्रमोद का है और वहां अवैध प्लाटिंग की गई है उसे फिर से ग्रीनलैंड में तब्दील किया जाएगा। फर्जी दस्तावेज कर लेते हैं तैयार दूसरों की खाली जमीनों को जानबूझकर बिल्डर विवादों में लाते हैं। जमीन मालिक उस जमीन को खोने के डर से विवश होकर सस्ती दरों पर भी बेचने के लिए तैयार हो जाता है। ऐसे में मध्यस्थता निभाने के लिए क्षेत्रीय जनप्रतिनिधि या बड़े छुटभैय्ये नेता आगे आते हैं। उनके द्वारा इन जमीनों को अपने खास लोगों को सस्ती दरों पर दिलवा दिया जाता है। इस तरह से महंगी जमीन भी सस्ती दर पर भू-माफियाओं को मिल जाती है। ऐसी कई शिकायतें पुलिस के पास पहुंचती है, जिसमें जमीन पर जानबूझकर कब्जा करने या उसके फर्जी दस्तावेज तैयार करने का मामला सामने आता है। पुलिस ऐसे लोगों को चिह्नित जरूर करती है, लेकिन उन पर कार्रवाई करने में सालों लगा देती है।

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