हाईकमान तक शिकायत रोकने फिर सेटिंग की तैयारी में भूपेश बघेल और छुटभैया गुर्गे
chhattisgarh congress news विधानसभा चुनाव के प्रत्या शीत नतीजे आने के बाद यहां प्रत्याशित नतीजे इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि जिस भी पार्टी में सरकार बनने के बाद जमीनी कार्यकर्ताओं को हासिये पर डाल दिया जाता है या संगठन को कमजोर कर सिर्फ सत्ता और सत्ता के ईद-गिर्द रहने वाले चंद सलाहकारों और चाटुकारों के पावर सेंटर आ जाता है वहां सरकार परिवर्तन अवश्य संभावी हो जाता है ऐसा पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के साथ हुआ और आश्चर्य की बात यह रही कि इस सरकार के मुखिया भूपेश बघेल को यह कुर्सी तब नसीब हुई जब उन्होंने सरकार बनने से पहले लगातार 5 साल प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए प्रदेश के सभी वरिष्ठ नेताओं के सहयोग से संगठन को काफी मजबूत दी और लगातार भाजपा सरकार को सड़क से सदन तक गिरने में कामयाबी पाई. पदयात्रा की अच्छे सलाहकारों और पत्रकारों की सलाह पर अमल किया. नसबंदी कांड, आंख फोड़वा कांड नान घोटाला जैसे मुद्दों पर लोकप्रियता भी हासिल की पर यही भूपेश बघेल जो प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए संगठन की मजबूती के लिए सदा तत्पर रहते थे रोज दोपहर बाद कांग्रेस भवन में बैठकर अच्छे सलाहकार और पत्रकारों से सलाह कार्यक्रम करते थे सरकार के मुख्य बनते ही उनका एक नया रूप प्रदेश की जनता के सामने आया . उन्होंने संगठन को बिल्कुल दरकिनार कर दिया निगम मंडल की नियुक्ति में मनमानी की .कभी जनदर्शन नहीं लगाया . चाटुकार और गलत सलाहकारों से घिर गए . प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष को भी लगातार अपमानित किया . संगठन के पदाधिकारी का भी कोई काम नहीं किया . जिन पत्रकारों और अच्छे सलाहकारों और संगठन के मजबूत कार्यकर्ताओं की सलाह और मेहनत से वे इस कुर्सी तक पहुंचे वहां पहुंचते ही उन्होंने सबसे पहले इन सब के लिए मुख्यमंत्री निवास के दरवाजे बंद कर दिए . पूरी तरह सरकार मुट्ठी भर उनके गलत सलाहकार और 4-5 ब्यूरोकेट्स चलाने लगे . और नतीजा यह हुआ कि अकेले आदमी के घमंड अहंकार और गलत सलहकारों की वजह से 11 विधायकों वाली मजबूत सरकार औंधे मुंह जा गिरी . और प्रदेश बनने के बाद हुए 4 विधानसभा चुनाव में अपने सबसे कमजोर प्रदर्शन के साथ 35 विधायको वाली विपक्षी पार्टी बनकर रह गई.
जिस प्रदेश में कांग्रेस Congress के 29 विधायक आदिवासी समाज के थे उसकी लगातार अपेक्षा होती रही. वरिष्ठ नेताओं की अवेलहना होती रही, कार्यकर्ताओं के निजी कार्य भी नहीं हुए. ढाई साल वाला मुद्दा भी गरमाया रहा. संगठन अध्यक्ष मोहन मरकाम की भी सरकार में कोई सुनवाई नहीं हो रही थी. कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में भी मुख्यमंत्री समर्थकों ने संगठन को दरकिनार किया . ऊपर से कुछ पत्रकारों को प्रताड़ित कर सरकार बदनाम होने लगी. अवैध वसूली और भ्रष्टाचार की लगातार शिकायत आने लगी और सरकार कोयला घोटाला, सट्टा घोटाला, परिवहन विभाग की वसूली , अवैध शराब घोटाला जैसे कई मामलों में बदनाम होती चली गई .
Congress AICC रामगोपाल अग्रवाल, सौम्या चौरसिया, गिरीश देवांगन , सूर्यकान्त तिवारी विनोद वर्मा की भी गूंज पूरे प्रदेश में सुनाई देने लग गई. यही लोग तय करने लगे मुख्यमंत्री से कौन मिलेगा कौन नहीं मिलेगा मीडिया हाउस को निर्देश जाने लगे कि क्या छपेगा क्या नहीं. दमनकारी फैसले होने लगे और मजे की बात यह है कि ये सभी बातें प्रदेश का बच्चा-बच्चा जानता था कि कहां-कहां से कलेक्शन हो रहा है कौन कर रहा है और वह कलेक्शन कहां जा रहा है संगठन भी निराशा और हताशा में होने जा रहा था. क्योंकि तमाम बातों को हाईकमान तक पहुंचाने के बाद भी हाई कमान के कान में जूं नहीं रेंग रही थी. क्योंकि छत्तीसगढ़ सरकार AICC के लिए ATM का कार्य कर रही थी. और सरकार जाना उसी दिन तय हो गया जिस दिन सरकार का मुखिया बदलने की बजाए मोहन मरकाम को ठीक चुनाव से पहले बेवजह हटा दिया और टीएस सिंहदेव को उपमुख्यमंत्री बना दिया गया. उसमें सरगुजा और बस्तर भी नाराज हो गया. कार्यकर्ता पहले ही नाराज बैठा था और इन सब से मिलकर चुनाव में कांग्रेस को धूल चटा दी और कांग्रेस बस्तर, सरगुजा में पूरी तरह साफ हो गई. चुनाव परिणाम के बाद कार्यकर्ताओं की भड़ास निकालने लगी. और वे सब परिणामों की समीक्षा की मांग करने लगे फिर कोई सुनवाई नहीं हुई . फिर आ गए लोकसभा चुनाव और यह चुनाव कांग्रेस की युवराज के प्रतिष्ठा से चुनाव जुड़े थे.प्रदेश में 4 से 5 सीटों पर कांग्रेस अच्छी स्थिति में थी.
chhattisgarh news पर हाईकमान ने फिर गलती की और जिस भूपेश बघेल के कारण विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार हुई. लोकसभा चुनाव में टिकट वितरण फिर से उन्हें को दे दिया गया. और जिस तरह इनकी सरकार में दुर्ग जिले के चार मंत्री थे और सब चुनाव हार गए. उसी तरह लोकसभा में दुर्ग के 4 लोगों को टिकट मिला और चारों चुनाव हार गए . और परिणाम आशा अनुसार जो आने थे वही आए . वो तो चरणदास महंत ने अपने पुराने अनुभव से चुनाव लड़ा और पार्टी की इज्जत बचा पाए. वरना सभी 11 सीटों पर हार तय थी. अब चुकी है चुनाव राहुल गांधी से जुड़े थे तो पुनः समीक्षा की मांग उठने लगी. अब अंततः समीक्षा बैठक होने जा रही है. और समीक्षा करने आ रहे कांग्रेस के दो वरिष्ठ नेता वीरप्पन मोइली और हरीश चौधरी सभी लोकसभा सीटों के परिणामों की समीक्षा होगी . 28 जून को रायपुर, महासमुंद की, रायपुर में 29 जून को बिलासपुर, रायगढ़ ,कोरबा, जांजगीर और सरगुजा लोकसभा की बिलासपुर में 30 जून के कांकेर, बस्तर लोकसभा के कांकेर में 1 जुलाई को दुर्ग , राजनांदगांव लोकसभा की समीक्षा,रायपुर के राजीव भवन में अब देखना ये होगा कि ये सच में हार के कारणों की ईमानदारी से समीक्षा कर पार्टी परिणाम के दोषियों की जानकारी हाईकमान को देकर पार्टी की मजबूती के लिए अमूल चूक परिवर्तन कर पार्टी के ईमानदार मजबूत और जुझारू कार्यकर्ताओं को मौका देगी. कि ये अपनी पुरानी परिपाटी की तरह समीक्षा का ढोंग कर पुनः कार्यकर्ताओं को ठगा सा महसूस कराएंगी।
गौरतलब देखना यह होगा कि क्या जिन परिणाम के कारण कांग्रेस को बच्चा-बच्चा जानता है उन्हें अपनी बात पर्यवेक्षकों के सामने रखने का अवसर मिलेगा। क्या उन कारणों के बारे में जानकारी लेकर पर्यवेक्षक इमानदारी से अपनी रिपोर्ट से हाई कमान तक अवगत करा पाएंगे कि पुणे फिर से एक बार समीक्षा का बहाना कर कार्यकर्ताओं को ठगा जाएगा.