रायपुर। राष्ट्र-संत श्री ललितप्रभ जी महाराज ने कहा कि परिवार इंसान की पहली पाठशाला और पहला मंदिर है। ईंट, चूने और पत्थर से मकान का निर्माण होता है घर का नहीं। जहाँ बीबी-बच्चों के साथ माता-पिता और भाई-बहिनों को सम्मान से रखा जाता है वही घर परिवार कहलाता है। जो लोग आठवे वार परिवार को सरस नहीं बनाते उनके सातों वार नीरस बने रहते हैं। उन्होंने कहा कि परिवार की ताकत पैसा, गाड़ी, बंगला, फेक्ट्री नहीं, प्रेम, भाईचारा, सहानुभूति और समर्पण की भावना है। केवल चढ़ावे बोल लेने और पूजा कर लेने भर से लक्ष्मी खुश नहीं होती। जिस घर में लोग अपने स्वार्थों का त्याग कर आपस में प्रेम से रहते हैं उनके यहाँ लक्ष्मीजी और महावीरजी सदा बसेरा किया करते हैं।
संत प्रवर बुधवार को वालफोर्ट परिवार द्वारा भाटा गांव स्थित वॉलफोर्ट हाइट्स क्लब में आयोजित प्रवचन तीन दिवसीय प्रवचन माला के समापन पर सैकड़ों श्रद्धालु भाई बहनों को संबोधित कर रहे थे। एक दिन ही ईद, होली और दिवाली का पर्व मनाने वालों पर व्यंग्य करते हुए संतश्री ने कहा कि वे लोग गेले हैं जो एक दिन ही ऐसे पर्व मनाते हैं। जिस घर में सुबह उठकर भाई-भाई आपस में गले मिलते हैं और माता-पिता के पाँव छूते हैं वह हर सुबह ईद का पर्व बन जाती है, जहाँ दोपहर में देराणी-जेठाणी मिलकर खाना बनाते हैं और सास-बहू साथ-साथ खाना खाते हैं उनकी दोपहर होली का पर्व बन जाती है और जो बेटे-बहू सोने से पहले बड़े-बुजुर्गों के पाँव दबाने का सुकुन पाते हैं उनकी रातें भी दुआओं की दीपावली बन जाती है।
मूरत, सूरत से पहले पूरी करें जरूरत-बेटे-बहुओं को सीख देते हुए संतश्री ने कहा कि भगवान की मूरत और संतों की सूरत बाद में देखें, पहले माता-पिता की जरूरत पूरी करें। जो माँ-बाप, सास-ससुर को भगवान तुल्य मान सेवा करता है उसे उनकी मूरत में ही भगवान की सूरत दिख जाती है। उन्होंने कहा कि मंच पर खड़े होकर भाषण और प्रवचन देना सरल है, पर घर में प्रेम से रहना मुश्किल है। व्यक्ति 84 लाख जीवयोनियों से क्षमा बाद में मांगे, पहले घरवालों से क्षमा मांगने का बड़प्पन दिखाए। केवल उम्र से व्यक्ति बड़ा नहीं होता, जो वक्त आने पर झुक जाता है, पर परिवार को कभी टूटने नहीं देता वही घर में सबसे बड़ा कहलाता है। उन्होंने कहा कि अगर आप घर में आपस में नहीं बोलते हैं तो मंदिर के दर्शन, संतों की सेवा और सामायिक का धर्म करने से पहले टूटे रिश्तों को सांधें और गले मिलें अन्यथा सारा धर्म-कर्म निष्फल्ल हो जाएगा।