छत्तीसगढ़

बांठिया हास्पिटल ने पांच पीडि़तों को लौटाए 10 लाख

Admin2
22 May 2021 6:12 AM GMT
बांठिया हास्पिटल ने पांच पीडि़तों को लौटाए 10 लाख
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कोरोना के इलाज में मरीजों से ली थी अधिक राशि

जसेरि रिपोर्टर

रायपुर। कोरोना महामारी के दौर में जब डॉक्टर, नर्स और अन्य नर्सिंग स्टाफ लोगों की जान बचाने के लिए अपनी जान पर जोखिम ले रहे हैं ऐसे दौर में भी कुछ इन्ही के बिरादरी के लोग लोगों मजबूरी का फायदा उठा रहे हैं। इलाज के नाम पर कई अस्पताल और डॉक्टर मरीजों से भारी भरकम फीस ले रहे हैं। फीस नहीं दे सकने के स्थिति में इलाज में कोताही के साथ मृत मरीजों के शव भी परिजनों को देने से इंकार कर दबाव बना रहे हैं। राजधानी के बांठिया अस्पताल में ऐसी ही शिकायत मिलने पर जनता से रिश्ता ने मामले को प्रमुखता से उठाते हुए पीडि़तों के माध्यम से जिला स्वास्थ्य अधिकारी से कार्रवाई की मांग की थी। अस्पताल ने मरीजों व उनके परिजनों से कोरोना इलाज के नाम पर फर्जी बिलिंग कर लाखों रुपये वसूले थे। कई अन्य अस्पतालों में भी मरीजों से निर्धारित दर से अधिक राशि वसूले जिसकी शिकायत स्वास्थ्य अधिकारी को मिली है। कुछ पीडि़तों ने अस्पतालों द्वारा ठगे जाने के बाद विभाग से शिकायत पर कार्रवाई ना करने और जांच अधिकारियों के मिलीभगत का गंभीर आरोप भी लगाया। जिसके बाद अब स्वास्थ्य अधिकारी की पहल पर अधिकारियों ने कुछ पीडि़तों को अस्पताल से अतिरिक्त राशि वापस दिलवाई है। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के अनुसार पीडि़त सुनील साहू को दो लाख 55 हज़ार, दीपक साहू को एक लाख 45 हज़ार, भूपेंद्र चंद्रकार को तीन लाख 25 हज़ार और घनश्याम साहू को दो लाख रुपये का चेक बांठिया अस्पताल से दिलवाया। सनसाइन अस्पताल से भी एक महिला का दो लाख रुपये वापस कराया गया। कुछ अन्य शिकायतों पर संबंधित अस्पतालों के खिलाफ भी कार्रवाई की जा रही है।

अस्पतालों में ज्यादा फीस वसूलने की मिल रही शिकायतें

इस बीच अलग-अलग अस्पतालों में इलाज कराने वाले मरीजों के परिजन लगातार ज्यादा फीस वसूलने अस्पतालों में सुविधा नहीं होने की शिकायत कर रहे हैं। कांपा स्थित मित्तल हास्पिटल में एक मरीज से 4.22 लाख का बिल वसुलने की शिकायत स्वास्थ्य मंत्री और अन्य संबंधित अधिकारियों से की गई है। शिकायतकर्ता के अनुसार रेमडेसिविर लगाने से पहले अस्पताल ने सहमति पत्र भी नहीं भरवाया। इसी तरह महादेवघाट स्थिति एक निजी अस्पताल ने कोरोना मरीज को फार्मेसी का ही 130471 रुपए का बिल दिया जिसमें दवा का नाम आदि जानकारी का उल्लेख ही नहीं था। वहीं टैगोरनगर स्थित जीवन अनमोल अस्पताल में मरीज को आईसीयू में बेड उपलब्ध कराने का आश्वासन देकर स्टोर रूम में शिफ्ट करा दिया और ग्लूकोज के बाटल लगाने के अतिरिक्त कोई इलाज नहीं किया और 80 हजार फीस की मांग की गई मजबूरी में परिजनों को मरीज को वहां से डिस्चार्ज कराना पड़ा।

जांच अधिकारियों की अस्पताल प्रबंधनों से सांठगांठ

जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग ने अस्पतालों की जांच के लिए नोडल अधिकारी व अन्य अधिकारियों की टीम बनाई है। इसके बावजूद निजी अस्पतालों में इलाज के नाम पर लूट जारी है। सरकार ने कोरोना के इलाज के लिए दर निर्धारित किया है फिर भी मरीजों से अस्पताल वाले दुगुने तिगुने फीस वसूल रहे हैं। अस्पतालों में आवश्यक सुविधाओं के बगैर भी मरीजों को भर्ती कर परिजनों को बेवकुफ बनाया जा रहा है। परिजनों की शिकायत पर स्वास्थ्य विभाग के संबंधित अधिकारी कार्रवाई के बजाय अस्पताल वालों से समझौता करने का दबाव बनाते है, इससे पता चलता है कि अधिकारियों की मिलीभगत और शह पर ही अस्पताल वाले मनमानी कर रहे हैं। शिकायतों के बाद सीएमएचओ ने अधिकारियों को ईमानदारी से काम करने की हिदायत दी है।

कोरोना अस्पतालों को मिली लूट की छूट

इधर कोरोना इलाज के लिए अस्पतालों को धड़ल्ले से स्वीकृति देने के बाद अब शिकायतों पर विभाग की तरफ से कार्रवाई में ढिलाई बरती जा रही है। नर्सिंग होम एक्ट के तहत अस्पतालों की जांच कर कार्रवाई के निर्देश दिए गए हैं, लेकिन किसी तरह की जांच अथवा कार्रवाई नहीं हो रही है। कोरोना संक्रमण की विकट स्थिति से निपटने के लिए राज्य के स्वास्थ्य विभाग ने कुछ नियम और शर्तों के साथ निजी अस्पतालों को भी कोरोना मरीजों के इलाज के लिए मान्यता दी है। इन अस्पतालों में कोरोना संक्रमित मरीजों के इलाज के लिए अलग परिसर, दरवाजा, एंबुलेंस, आक्सीजन और वेंटिलेटर युक्त बिस्तर, दवा और नर्सों की पर्याप्त उपलब्धता अनिवार्य थी। साथ ही उन्हें कुल बिस्तर का 20 प्रतिशत आयुष्मान योजना के हितग्राहियों के लिए आरक्षित रखनेकी शर्त थी, मगर मान्यता देने से पहले स्वास्थ्य विभाग ने इन निजी अस्पतालों की जांच तक नहीं की कि वे नियम और शर्तों के मानक को पूरा करने की स्थिति में हैं भी या नहीं। हालांकि राज्य सरकार ने इलाज के लिए दर निर्धारित कर निजी अस्पतालों पर कुछ नकेल कसने का प्रयास किया। मगर मान्यता मिलने के बाद अधिकांश निजी अस्पताल प्रबंधक बेलगाम हो गए। उनके लिए हर मरीज आर्थिकदोहन का माध्यम बन गया। स्वास्थ्य विभाग की उदासीनता के कारण इन अस्पतालों ने नियम-शर्तों की धज्जियां तो उड़ा ही रहे हैं, इलाज के लिए सरकार के निर्धारित दर को दरकिनार मनमाना वसूली भी कर रहे हैं।

जमानत के लिए हाथ-पैर मार रहे मौत के सौदागर

इधर राजधानी हास्पीटल के मामले में फरार चल रहे आरोपी डॉक्टर जमानत के लिए हाथ-पैर मार रहे हैं। पुलिस उनके शहर से बाहर होने की बताकर अपनी टीम इधर-उधर दौड़ा रही है। कल रात उनका लोकेशन ट्रेस होने के बाद उन्हें पकडऩे की कोशिश की जा रही है। वहीं फरार डॉक्टर लगातार अपनी उंची पहुंच के दम पर न्यायालय से अग्रिम जमानत लेने पूरा जोर लगा रहे हैं। पूर्व में पकड़े गए दो डाक्टरों को जमानत मिल गई है। वहीं अस्पताल प्रबंधन पर अब तक प्रशासनिक कार्रवाई नहीं हुई है।

अस्पतालों द्वारा अधिक वसूली पर पांच पीडि़तों को करीब 10 लाख रुपये वापस कराए गए हैं। अभी जितनी शिकायतें आई थी, उनपर कार्रवाई हुई है। आगे भी होती रहेगी।

- डॉ. मीरा बघेल, सीएमएचओ, जिला-रायपुर

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