बलरामपुर : कृषक सुबे ने जैविक खेती कर पेश की है मिसाल, बढ़ी आमदनी
बलरामपुर। एक पुरानी कहावत है कि जब समस्याएं बढ़ जाएं तो मूल की ओर लौटो। पिछले कुछ वर्षों में किसान कुछ मूलभूत चुनौतियों का सामना कर रह रहे हैं, आवश्यक है कि उन्हें दूर करने के लिए मूल की ओर लौटा जाये। अर्थ यह है कि खेती तब भी होती थी जब रसायनिक खाद और जहरीले कीटनाशक उपलब्ध नहीं थे और गोबर किसानों के लिए बेहतर खाद का काम करता था। नीम और हल्दी उनके लिए प्रभावी कीटनाशक थे, लेकिन बदलते वक्त के साथ जैसे-जैसे रसायनिक खाद का उपयोग बढ़ा तो जमीन की उत्पादकता की कम होने से किसानों की चुनौतियां बढ़ती गई। इन्हीं चुनौतियों को दूर करते हुए एक बार फिर विकासखण्ड शंकरगढ़ के किसानों ने अपनी कृषि पद्धतियों में बदलाव लाने की ठानी और खेती को फायदे का सौदा बनाने के लिए वे जी-जान से जुट गए। कृषि के क्षेत्र में एक बड़ा परिवर्तन धीरे-धीरे आकार ले रहा है और जैविक खेती की ओर अग्रसर शंकरगढ़ के किसान इस बदलाव के नायक हैं, जो बीआरएलएफ-मनरेगा-एसजीजीएस से जुड़कर जैविक खेती कर रहे हैं। शंकरगढ़ के सरगांव के रहने वाले सुबे टोप्पो ऐसे ही प्रगतिशील किसान है जो रासायनिक खेती को छोड़ जैविक खेती कर रह है।
अपनी आय बढ़ाने के साथ ही वे जमीन की उर्वरा शक्ति का भी संरक्षण कर पा रहे हैं। 3 सदस्य वाले सुबे टोप्पो के परिवार की आमदनी का मुख्य जरिया कृषि और पशुपालन है। उनके पास कुल 2.5 एकड़ जमीन है, जिसमें से 1.5 एकड़ में वे सिर्फ रसायनिक तरीके से सब्जी की खेती करते थे। सुबे शुरू से ही रासायनिक तरीके से सब्जी की खेती करते आ रहे हैं और काफी पैसा कीटनाशक दवाओं पर खर्च करने से लागत काफी बढ़ जाती थी तथा नाम मात्र का बचत होता था। लागत और आमदनी के अनुपात में बड़े अंतर ने सुबे को परेशान कर रखा था तभी सुबे की मुलकात किसान पाठशाला में उद्यान विभाग के अधिकारियो से हुई। जहां सुबे उनसे बैगन में कीड़े की समस्या को लेकर चर्चा कर रहे थे और सुबे ने अधिकारियों को बताया कि अब तक वह 3 हजार रूपये की कीटनाशक दवा बैगन के खेत में डाल चुका है, लेकिन उसका कोई प्रभाव फसल पर नहीं पड़ा। उसकी बातों को सुनकर एसजीव्हीएस की टीम के सभी सदस्यों ने कृषक सुबे टोप्पो के खेत का भ्रमण किया और बैगन में लगे बीमारी को देखने के बाद बताया कि यह फलछेदक एवं तनाछेदक रोग है। इस बीमारी में जैविक दवा नीमास्त्र का छिड़काव करें, तो फसल का बचाव हो सकता है। सुबे को अगले दिन टीम के द्वारा जैविक दवा नीमास्त्र उपलब्ध कराया गया, जिसका छिड़काव सुबे टोप्पो ने खेतों में किया और आठ दिन पश्चात् खुद टीम के सदस्यों को फोन कर बताया कि नीमास्त्र काफी प्रभावी है और इससे फसल क्षति कम हुई है। सुबे अब खेतों में सिर्फ जैविक दवा का प्रयोग करते हैं और एसजीव्हीएस की टीम ने उन्हें 25 लीटर हांडी की दवा, 40 लीटर जीवामृत और 05 लीटर नीमास्त्र बनवा दिया है। सुबे टोप्पों के पास पर्याप्त जैविक कीटनाशी दवा उपलब्ध है, जिसे वह अपने खेतों में प्रयोग करता है। सुबे टोप्पों को उद्यान विभाग से वर्मी बेड भी मिला है, जिससे बने खाद का उपयोग वह अपने खेतों में करता है। जैविक खाद और दवा के उपयोग से सुबे की सब्जी की खेती की लागत में कमी आई है और आमदनी बढ़ी है। सुबे टोप्पो ने बताया कि जैविक खाद और दवा के उपयोग से उन्हें साल भर में लगभग 20 हजार रूपए की अतिरिक्त बचत हुई है। साथ ही सुबे टोप्पो अब टीम के साथ 2.5 डिसमील जमीन में मल्टीलेयर फार्मिंग की तैयारी कर रहे हैं, साथ ही अभी 0.5 एकड़ खेत में गोभी और आलू लगा चुके है। सुबे टोप्पो अपने 1.5 एकड़ खेत के मेड़ में जल्द ही कटहल और मुनगा का पौधा लगाएंगे। सुबे टोप्पो आत्मविश्वास और उत्साह से भरे एक सफल प्रगतिशील किसान हैं और प्रशासन के सहयोग से कृषि कार्यों को और विस्तार दे रहे हैं।