रायपुर। ''इस दुनिया के 70 परसेंट लोग ऐसे हैं जो गरीब के घर पैदा हुए और ऊंचाइयों के मुकाम तक पहुंचे। जब आदमी के भीतर जब जज्बा जाग जाता है- मुझे कुछ बनना है तो वह कहां से कहां तक पहुंच जाता है। दुनिया में प्रतिभा कभी भी बाहर से डाली नहीं जाती है, प्रतिभा उजागर की जाती है। बाहुबली की विशाल प्रतिमा एक बड़ी पहाड़ी को तराशकर निकाली जा सकती है। ऐसे ही हमारे भीतर भी प्रतिभाएं छिपी हैं, केवल उन्हें बाहर निकालने की जरूरत है। यही नहीं सब कुछ खोकर भी आदमी अपाहिज नहीं होता, अगर उसके हौसले बुलंद हों, उसे केवल अपनी प्रतिभा जगानी होती है। हर आदमी इस दुनिया में प्रतिभा लेकर आया है, बस उसे तराशने की जरूरत है। भगवान श्रीमहावीर ने 26सौ साल पहले भारत के भविष्य को देखते हुए यह कहा था कि मनुष्य न तो जन्म से महान होता है, न तो जाति वंश और वर्ण से महान होता है, मनुष्य जब भी महान होता है अपने कर्म से महान होता है। हम सबके भीतर में ईश्वर ने कोई न कोई प्रतिभा जरूर भरी है।''
ये प्रेरक उद्गार राष्ट्रसंत महोपाध्याय श्रीललितप्रभ सागरजी महाराज ने आउटडोर स्टेडियम बूढ़ापारा में जारी दिव्य सत्संग जीने की कला के अंतर्गत परिवार सप्ताह के पंचम दिवस शुक्रवार को व्यक्त किए। उन्होंने आज के विषय- 'बच्चों को टेलेन्ट निखारने की जरूरी बातें' पर कहा कि जिस प्रकार मूल्य वस्तु का नहीं, वस्तु में छिपी संभावनाओं का मूल्य होता है उसी प्रकार मनुष्य से अधिक उसके भीतर छिपी संभावनाओं और प्रतिभाओं का मूल्य हुआ करता है। चांदी तो अंत तक चांदी ही बनी रहती है पर लोहे को यदि पारस पत्थर का स्पर्श मिल जाए तो वह लोहा भी एक दिन सोना बनने में सफल हो जाता है। अगर लोहे ने अपनी प्रतिभा को जगा लिया और उसे आप जैसा कोई गुरू पारस रूप में मिल जाए तो वह लोहा भी सोना बन जाएगा।
हर व्यक्ति के भीतर हैं संभावनाएं, प्रतिभाएं
प्रवचन का शुभारंभ उन्होंने राष्टÑसंत चंद्रप्रभजी रचित गीत 'जीवन में कुछ करना है तो मन को मारे मत बैठो, आगे-आगे बढ़ना है तो हिम्मत हारे मत बैठो...' से करते हुए उन्होंने कहा कि हममें विभिन्न संभावनाएं छिपी हुई हैं, अगर मिट्टी को एक सही कुम्हार का हाथ मिल जाए तो मिट्टी में से मंगल कलश पैदा हो जाता है और बीज को अगर माली का साथ मिल जाए तो उससे बरगद का पेड़ पैदा होता है। हर व्यक्ति के, हर बालक के भीतर अपनी-अपनी संभावनाएं होती हैं, कुछ लोग होते हैं जो अपनी प्रतिभाओं को जगाने में सफल हो जाते हैं और कुछ लोग होते हैं जिनकी प्रतिभाएं सोई की सोई रह जाती हैं। ईश्वर ने आपको कोई न कोई प्रतिभा जरूर दी है तो अगर हम उन प्रतिभाओं का उपयोग करें तो हमें वह प्रतिभा दोबारा मिलती है और यदि उपयोग नहीं किया तो भगवान उस प्रतिभा को हमें दोबारा नहीं देता है। प्रतिभावान सर्वत्र पूज्यते। याद रखना, राजा, नेता, संपन्न व्यक्ति अपने नगर में पूजा जाता है पर एकमात्र प्रतिभाशील ज्ञानी व्यक्ति जहां भी जाता है वहां पूजा जाता है। इसीलिए पंचतंत्र की नीतियों में कहा गया है- प्रतिभावान सर्वत्र पूज्यते। आज अगर अमरीका जाकर हमारे भारत के छात्र इतने बड़े-बड़े पदों पर पहुंच रहे हैं तो उन्होंने ऊंचाइयां अपने चेहरे के बलबूते नहीं, अपनी प्रतिभा के बलबूते पाई हैं।
केवल 50 सालों में ही नारीशक्ति ने मनवा लिया लोहा
नारी शक्ति की महानता बताते हुए संतश्री ने कहा कि नारी जाति हमारे सामने उदाहरण है-50 साल पहले वह अंगूठा लगाती थी, और आज वह अंगूठा दिखाने में कामयाब है। धन की देवी लक्ष्मी और ज्ञान की देवी सरस्वती दोनों ही इस नारी जाति में आज साकार हुई हैं। बेटी है अभिमान हमारा, बेटी है सम्मान हमारा। जिस घर में बेटी जन्मे वो घर है स्वर्ग समान। जिस घर में बेटियां जन्म लेती हैं वो सबसे किस्मत वाला होता है, क्योंकि जिनके भाग्य में संतान सुख ज्यादा लिखा होता है ईश्वर केवल उन्हीं को बेटियां देता है। बेटियों ने आज तक माँ-बाप को दु:ख दिया नहीं। हजारों-हजार वर्ष तक नारी जाति की प्रतिभा दबाई गई। घूंघट निकालकर बैठो, अगर उसके पति का दुर्भाग्यवश देहावसान हो गया तो वर्षों-वर्ष तक महिलाएं घूंघट में पड़ी रहती थीं। बड़े-बुजुर्ग 12 साल के होते तक उन्हें स्कूल भेजने के लिए नहीं बल्कि उनके ब्याह के लिए तैयार होते थे। पांच हजार साल तक नारी की प्रतिभा को दबाया गया और ये कहकर उन्हें घर की चारदीवारी में बंद कर दिया गया कि इन्हें क्यों पढ़ाएं। फालतू में क्यों पैसा बर्बाद करें। सोचो 5 हजार साल तक नारी की प्रतिभा को दबाया गया और आज उसे उजागर होने में केवल 50 साल का ही समय मिला। आज स्थिति ये है कि वे ना केवल पुरुषों से कंधा मिलाकर चल रही हैं, सच्चाई ये है कि आज वे पुरुषों से भी आगे बढ़ने की हिम्मत दिखा रही हैं। किसी भी राज्य के मैट्रिक के परीक्षा परिणाम को देख लो, टॉप टेन में लड़कियां होती हैं। नारी ने यह साबित करके दिखा दिया गया कि वे 50 साल में यहां तक पहुंच सकती हैं। सोचो अगर नारी जाति को अपनी प्रतिभा को जगाने 50 हजार सालों का मौका मिला होता तो नारी जाति मानव जाति के लिए वरदान बन गई होती। आज परिणाम है कि दो-दो महिलाएं देश की राष्टÑपति बन चुकी हैं। यह हमें बताता है कि अगर प्रतिभा को जगाने का अवसर मिले तो व्यक्ति कहां नहीं पहुंच सकता।
जिद करो और जिंदगी बदलो
अगर आदमी अपने आपको, अपनी प्रतिभा व चेतना को जगाना चाहे तो वह सब कुछ करने में सक्षम हो जाता है। यह प्रेरणा प्रदान करते हुए संतप्रवर ने कहा कि लोहे बेचने वाले को दुनिया में लोहार कहते हैं और जूते बेचने वाले को लोग दुनिया में चमार कहते हैं, पर जो व्यक्ति अपनी प्रतिभा को जगा लेता है वह देश का सबसे सम्मानीय व्यक्ति टाटा और बाटा बन जाता है। मैं आपको आज एक मंत्र दे रहा हूं- जिद करो और जिंदगी बदलो। अगर शाहजहां ने जिद की तो ताजमहल बन गया, एकलव्य ने जिद की तो अर्जुन की तरह धनुर्धर हो गया, महात्मा गांधी ने जिद की तो देश आजाद हो गया, एक बार आप भी जिद करो तो आपको पता लग जाए कि जिंदगी क्या से क्या हो सकती है। जिंदगी को आगे बढ़ाने के लिए जिद करो और जिंदगी बदलो। आदमी बनना चाहे और न बन पाए, यह असंभव है। जिनके भीतर में यह निराशा घर कर जाती है कि मैं बूढ़ा हो गया हूं, मैं क्या कर सकता हूं तो उन्हें स्वामी प्रभु पादजी से सीख लेनी चाहिए, जिन्होंने 70 साल की उम्र में यह संकल्प लिया कि मैं अपने धर्म को दुनियाभर में फैलाकर आउंगा, आज पूरी दुनिया उनकी संस्था हरे रामा-हरे कृष्णा को जानती है।
बच्चों में छिपे टैलेंट को करें जागृत
संतश्री ने कहा कि आप अपने बच्चों के टैलेंट को जरूर जागृत कीजिए। केवल लाड़ में बच्चों को लाड़ले मत बनाइए, उनके भीतर में छिपी प्रतिभा को तराश दीजिए। केवल किताबी पढ़ाई से ही प्रतिभा नहीं जागती, यदि कोई अपनी प्रतिभा को जान ले और उसके बल पर जिंदगी में आगे बढ़ने का जज्बा बना ले तो उसके लिए हर सफलता पाना संभव है। जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए जज्बा चाहिए, जिद चाहिए। प्रतिभा जिसके पास है उसे कहीं भी डरने और दबने की जरूरत नहीं, वह जहां जाएगा वहां उसका लोहा माना जाएगा। आगे बढ़ना है तो एक पैंसिल से सीख लें जो पहले छिलने यानि समर्पण के लिए तैयार होती है, वह जानती है कि मेरे अंदर क्या है और मैं क्या कर सकती हूं, वह बिना रुके चलती रहती है और जब भी किसी से कोई गलती हो जाए तो रबर से उसे साफ करने का अवसर भी देती है, इतना ही नहीं जब वह खत्म होती है तो अपनी छाप छोड़ जाती है।
अपनी प्रतिभा को जगाने के ये हैं मंत्र
संतप्रवर ने कहा कि हम सभी इस बात के लिए जागरुक बनें कि हमारी ताकत हमारे खुद के भीतर ही है, केवल उसे जगाने की जरूरत है। अपनी प्रतिभा को जगाने का पहला मंत्र है- सपने हमेशा ऊंचे देखो। दूसरा- युवा होते अपने बच्चों को आत्मनिर्भर बनाएं। तीसरा- लगातार प्रयास करते रहे। चौथा- अपना आत्मविश्वास बनाए रखें। और पांचवा है- किया हुआ हर प्रयास हमेशा परिणाम देने में सहायक होता है, इसे ना भूलें और निरंतर लगे रहें। उसकी तरक्की के रास्ते खुल जाते हैं जो अपने जीवन में इन मंत्रों को जोड़ लेता है- मैं श्रेष्ठ हूं, मैं विजेता हूं, मैं सब कुछ कर सकता हूं, आज का दिन मेरा दिन है क्योंकि ईश्वर मेरे साथ है।
जीवन में निर्भर चेतना के बनें मालिक: डॉ. मुनि शांतिप्रियजी
दिव्य सत्संग के पूर्वार्ध में डॉ. मुनिश्री शांतिप्रिय सागरजी ने कहा कि भगवान श्रीपार्श्वनाथ व भगवान श्रीमहावीर के जीवन से हम सभी यह प्रेरणा लें कि इस जीवन में हम निर्भय चेतना के मालिक बनकर जीवन में हमेशा आगे बढ़ते रहेंगे। हमें स्वयं पर आत्मविश्वास रखकर हमेशा अभयवान होकर जीवन जीना चाहिए। जीवन की किसी भी घड़ी में हार जाना यह गुनाह नहीं है लेकिन हार मान लेना यह बुरी बात है। जीवन जीने के लिए जैसे भोजन, पानी और वायु की जरूरत होती है और वायु से भी ज्यादा आत्मविश्वास की जरूरत होती है।
तपस्वी का श्रीसंघ ने किया बहुमान
श्रीऋषभदेव मंदिर ट्रस्ट सहित रायपुर श्रीसंघ व दिव्य चातुर्मास समिति द्वारा आज धर्मसभा में 12 उपवास की तपस्वी मुस्कान लोढ़ा का बहुमान किया गया।
इन अतिथियों ने प्रज्जवलित किया ज्ञानदीप
श्रीऋषभदेव मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष विजय कांकरिया, कार्यकारी अध्यक्ष अभय भंसाली, ट्रस्टीगण तिलोकचंद बरड़िया, राजेंद्र गोलछा व उज्जवल झाबक ने संयुक्त जानकारी देते बताया कि भगवान श्रीपार्श्वनाथ के आज मोक्ष कल्याणक के पावन प्रसंग पर श्रीपारस इक्तीसा के गायन सहित जोधपुर से पधारे राष्टÑसंत श्री ललितप्रभजी के सांसारिक बड़े भाई अशोक दफ्तरी द्वारा प्रभु पार्श्वनाथ पर भक्तिपूर्ण भजन प्रस्तुति दी गई। शुक्रवार की दिव्य सत्संग सभा का शुभारंभ अतिथि गण सुशील त्रिवेदी, राजेश सावनसुखा, के.सी. वोरा, आनंद तिवारी, डॉ. श्रीमती पुष्पा तिवारी, मनोज लोढ़ा, बुलाकीचंद सेठिया, श्यामसुंदर अग्रवाल मूर्तिजापुर द्वारा ज्ञान का दीप प्रज्जवलित कर किया गया। अतिथि सत्कार श्रीऋषभदेव मंदिर ट्रस्ट के दिव्य चातुर्मास समिति के अध्यक्ष तिलोकचंद बरड़िया, समिति के वरिष्ठ सदस्य विमल गोलछा एवं श्रीऋषभदेव मंदिर ट्रस्ट के कार्यकारी अध्यक्ष अभय भंसाली द्वारा किया गया। सभी अतिथियों को श्रद्धेय संतश्री के हस्ते ज्ञानपुष्प स्वरूप धार्मिक साहित्य भेंट किये गये। सूचना सत्र का संचालन चातुर्मास समिति के महासचिव पारस पारख ने किया।
आज प्रवचन 'बुढ़ापे को कैसे बनाएं सुखी-सार्थक' विषय पर
दिव्य चातुर्मास समिति के अध्यक्ष तिलोकचंद बरड़िया, महासचिव पारस पारख, प्रशांत तालेड़ा, कोषाध्यक्ष अमित मुणोत व स्वागताध्यक्ष कमल भंसाली ने बताया कि शनिवार, 6 अगस्त को परिवार सप्ताह के छठवें दिन 'बुढ़ापे को कैसे बनाएं सुखी-सार्थक' विषय पर प्रवचन होगा। श्रीऋषभदेव मंदिर ट्रस्ट एवं दिव्य चातुर्मास समिति ने श्रद्धालुओं को चातुर्मास के सभी कार्यक्रमों व प्रवचन माला में भाग लेने का अनुरोध किया है।