आदिवासी नृत्य महोत्सव में देश-विदेश के कलाकारों ने बांधा समां
रायपुर। राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव के पहले दिन आज यहां विदेश और देश के विभिन्न प्रदेशों से आए कलाकारों ने अपनी मनमोहक प्रस्तुतियों से समां बांधा। महोत्सव के उद्घाटन के बाद पहले प्रदर्शनकारी वर्ग में और उसके बाद विवाह के अवसर पर किए जाने वाले नृत्यों के प्रतियोगी वर्ग में कलाकारों ने कर्मा, कड़सा, गौर, मांदरी, होजागिरी, दपका, इंकाबी नृत्य की रंगारंग प्रस्तुति दी। उद्घाटन समारोह के मुख्य अतिथि झारखंड के मुख्यमंत्री श्री हेमंत सोरेन, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल, संस्कृति मंत्री श्री अमरजीत भगत, वन मंत्री श्री मोहम्मद अकबर, नगरीय प्रशासन एवं विकास मंत्री डॉ. शिवकुमार डहरिया और अन्य अतिथियों ने भी इन आकर्षक नृत्यों का आनंद लिया। प्रदर्शनकारी वर्ग में सबसे पहले आज प्रदेश के नगरी (सिहावा) के आदिवासी कलाकारों ने मांदरी नृत्य प्रस्तुत किया। मुरिया जनजातियों द्वारा किया जाने वाला मांदरी घोटुल का प्रमुख नृत्य है। इसमें मांदर की करताल पर नृत्य किया जाता है। यह नृत्य फसल कटाई, तीज-त्यौहार, शादी या अन्य खुशी के अवसर पर तथा सावन के महीने में बारिश कम होने पर अपने इष्ट देवता लिंगो बाबा को मनाने के लिए उनकी स्तुति करते हुए चुकोली हाथ में रखकर किया जाता है।
त्रिपुरा के कलाकारों ने वहां का परंपरागत होजागिरी नृत्य प्रस्तुत किया। दुर्गा पूजा के बाद आने वाली पूर्णिमा को शक्ति की उपासना के लिए यह नृत्य किया जाता है। इसमें महिलाएं एवं युवतियां नृत्य करती हैं तथा पुरूष गायन एवं वादन करते हैं। होजागिरी त्रिपुरा के रिआंग जनजाति का प्रसिद्ध पारंपरिक नृत्य है। इसमें झूम खेती से संबंधित गाथा को दर्शाया जाता है। होजागिरी नृत्य के बाद प्रदेश के कलाकारों ने गेड़ी नृत्य प्रस्तुत किया। नाइजीरिया के कलाकारों द्वारा वहां के ग्रीवो जनजाति द्वारा किए जाने वाले इंकाबी नृत्य के बाद फिलीस्तीन के नर्तक दल ने दपका नृत्य की प्रस्तुति दी। इंकाबी नाइजीरिया के एफिक लोगों का प्रमुख नृत्य है। यह जल की देवी नोम को समर्पित है। प्रदर्शनकारी वर्ग में झारखंड के कलाकारों ने उराव नृत्य और बस्तर के कलाकारों ने माड़िया जनजाति का गौर नृत्य प्रस्तुत किया। बस्तर में फसल कटाई के बाद विभिन्न शुभ अवसरों पर गौर सींग ढोल नृत्य करने की परंपरा है। इसमें नर्तक अपने सिर पर भैंस सींगयुक्त पगड़ी धारण करते हैं जिनके हाथों में विशाल ढोल होता है। महिलाएं पारंपरिक परिधान पहनकर हाथों में लोहे की छड़ीनुमा वाद्य यंत्र झमुकी थामे हुए होती हैं। विशेष अवसरों पर यह नृत्य लगातार 12 घंटे से भी अधिक समय तक जारी रहता है।
आदिवासी नृत्य महोत्सव के पहले दिन आज प्रतिस्पर्धात्मक वर्ग में सबसे पहले विवाह संस्कार के अवसर पर किए जाने वाले नृत्य प्रस्तुत किए गए। इस वर्ग में मध्यप्रदेश के कलाकारों ने गोड़ आदिवासियों का कर्मा नृत्य पेश किया। विवाह के साथ ही इसे होली एवं अन्य त्यौहारों पर भी किया जाता है। इस नृत्य में ढोलक, टिमकी, तासा, मंजीरा जैसे वाद्य यंत्रों का प्रयोग होता है। झारखंड के कलाकारों ने पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ मशहूर कड़सा (कलश) नृत्य का प्रदर्शन किया। यह नृत्य वहां के उराव जनजाति द्वारा किया जाता है। इसमें नर्तक या नर्तकी घोड़े में सवार होकर भेर, नगाड़ा, ढांक, मांदर, शहनाई, ढोलक, बांसुरी, झुनझुनिया, उचका जैसे वाद्य यंत्रों की ताल में कड़सा के साथ विभिन्न मौसमी रंगों पर आधारित गीत गाकर अपने कुलदेवता को खुश करते हैं।