जीने की कला: पहले खुद को सुधारें, बच्चे आपको देख सुधर जाएंगे
रायपुर। ''जीवन में जो भी संस्कार आते हैं, उनके आने का पहला कारण होता है आदमी की संगत। क्योंकि जैसी संगत होती है, वैसी ही जीवन में रंगत आती है। सीधी-सादी सी बात है आसमान से टपकने वाली पानी बूंद अगर भूल से सांप के मुंह में चली जाए तो उसका भविष्य जहर बन जाता है और अगर वही बूंद सीप के मुंह में चली जाए तो उसका भविष्य मोती बन जाता है। अगर आपने अपने बच्चों को सांप जैसे लोगों की सोहबत दी है तो उनकी जिंदगी में जहर भरना तय है और आपने उन्हें सीप जैसे लोगों का साथ दिया है तो वे मोती जैसे सुंदर गुणों वाले बन जाएंगे। जिंदगी हमारी जिंदगी है, अगर चंदन जैसे लोगों के साथ रहेगी तो महक जाएगी और अगर कोयले जैसे लोगों के साथ रहेगी तो कालिमा से भर जाएगी। क्योंकि जैसा आदमी का मित्र होता है, वैसा ही उसका चरित्र होता है या जैसा आदमी का चरित्र होता है, वह अपनी जिंदगी में वैसा ही मित्र बनाता है।''
ये प्रेरक उद्गार राष्ट्रसंत महोपाध्याय श्रीललितप्रभ सागरजी महाराज ने आउटडोर स्टेडियम बूढ़ापारा में जारी दिव्य सत्संग 'जीने की कला' के अंतर्गत स्वास्थ्य सप्ताह के सातवें दिन रविवार को 'स्वयं को कैसे बनाएं संस्कारी-व्यसनमुक्त ' विषय पर व्यक्त किए। राजस्थानी भजन 'सुण सुण री म्हारी काया री लाड़ली, आत्मा रे दाग लगाइजे मति, भाया कुसंग में जाइजे मति...' के गायन से दिव्य सत्संग का शुभारंभ करते हुए संतप्रवर ने कहा कि हर इंसान अगर चाहे तो वह अपनी जिंदगी को सुधार सकता है। हर इंसान असत्य से सत्य की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर, मृत्यु से अमरत्व की ओर अपने जीवन को बढ़ा सकता है। आज की तारीख में अगर इंसान को सबसे बड़ी कोई जरूरत है तो वह है संस्कारों की दौलत। आपके घर के बाहर कार है ये आपकी समृद्धि की प्रतीक है और आपकी जिंदगी में अच्छे संस्कार हैं, ये आपकी महान संस्कृति का प्रतीक है। भगवान से ये प्रार्थना न करो कि मेरे पांव के नीचे और मेरे बच्चों के पांव के नीचे हमेशा कार रहे, भगवान से ये प्रार्थना करो कि हमारे बच्चों की जिंदगी में हमेशा अच्छे संस्कार रहें। संस्कारों से बढ़कर दुनिया की और कोई दौलत नहीं होती। अगर अच्छे संस्कारभरा परिवार है तो दुनिया में उससे अमीर आदमी और कोई हो नहीं सकता और जिसके घर में केवल दौलत है, केवल जमीन-जायजाद है और संस्कार अगर उस घर से निकल गए तो वह घर भी अपने-आपमें श्मशान के बराबर हो जाता है।
अपने बच्चों को केवल आसमान में चाॅंद-सितारे छूने की प्रेरणा मत दो, ऐसा किया तो एक दिन वे छू-मंतर हो जाएंगे और अगर उन्हें आपने माॅं-बाप के चरण छूने की प्रेरणा दी तो वे बुढ़ापे में आपके काम आएंगे।
पहले खुद को सुधारें, बच्चे आपको देख सुधर जाएंगे
संतप्रवर ने कहा कि याद रखना अच्छे संस्कार कभी दुनिया के किसी माॅल में नहीं मिलते, अच्छे संस्कार जब भी मिलते हैं घर के अच्छे माहौल में मिलते हैं। जो चाहते हैं कि मेरे बच्चे अच्छे संस्कारशील हों, उनके लिए यह जरूरी है कि वे खुद अच्छे संस्कारशील जिएं। आप सोचते हैं कि मैं फोन पर झूठ बोलता रहूं और मेरा बच्चा ना बोले। आप चाहते हैं- मैं गुटखा, तम्बाखू खाता रहूं, मैं तो दारू पीता रहूं, मैं तो उल्टे काम करता रहूं और मेरे बच्चे ऐसा ना करें। याद रखना बच्चे तो मूवी कैमरे की तरह होते हैं, आप जो करते हैं-जैसा करते हैं, वे उसे पकड़ लेते हैं। इसीलिए पहले खुद को सुधारने की कोशिश कीजिए बच्चे आपसे सीखकर खुद ही सुधर जाएंगे।
अगर आप अपने परिवार का भविष्य अच्छा रखना चाहते हैं, तो यह सदा याद रखें कि महान पिता वे नहीं होते जो अपने बच्चों के लिए बिल लिखकर जाते हैं, महान पिता वे होते हैं जो अपने बच्चों के लिए गुडविल छोड़कर जाते हैं। वे पिता अधम होते हैं जो अपने बच्चों को जनम देकर भाग्य भरोसे छोड़ देते हैं, वे पिता मध्यम होते हैं जो अपने बच्चों को जनम देकर खूब सारा धन देते हैं और वे पिता महान होते हैं जो अपने बच्चों को अच्छे संस्कार दिया करते हैं। आज की तारीख में तीन बड़ी समस्याएं हैं। नंबर एक- युवक फंस गए व्यसन में, नंबर दो- युवतियां फंस गईं फैशन में और नंबर तीन- बेचारा परिवार फंस गया इन दोनों के पीछे टेंशन में।
अपना खान-पान हमेशा निर्मल रखें
श्रद्धालुओं में अच्छे संस्कारों का बीजारोपण करते हुए संतप्रवर ने बताया कि संस्कारों में पहला संस्कार होता है- खान-पान का संस्कार। एक बात याद रखना, जिसके खान-पान का पता नहीं होता उसके खानदान का भी पता नहीं होता। जो अपने खान-पान को भी सुधार कर नहीं रख सकता वो अपने खानदान को सुधार नहीं पाएगा। हम सबका यह पहला दायित्व है कि अपने संस्कारों को अच्छा रखने के लिए अपना खान-पान हमेशा निर्मल रखें। ऐसी चीजों का उपयोग न करें जो अपनी संस्कृति के खिलाफ हो। हम पहला संकल्प लेते हैं कि अपने खानदान को अच्छा रखने के लिए अपने खान-पान को निर्मल रखेंगे। दूसरा संस्कार है-उठने बैठने का संस्कार।
8 से 15 साल तक के पंद्रह-बीस बच्चों को मंच पर बुलाकर संतश्री ने एक प्रत्यक्ष उदाहरण देकर माता-पिता, अभिभावकों को अपने बच्चों को संस्कारित भाषा बोलना सिखाने की प्रेरणा दी। उन्होंने बच्चों के पिताओं को संबोधित कर कहा- आजकल परिवारों में दादा को दद्दू, चाचा को चच्चू बोलने की छूट दी जा रही है, यदि ऐसा ही चलता रहा तो पांच साल बाद बड़े होकर ऐसी भाषा बोलने वाले बच्चे आपको पापा से पप्पू न बना दें तो कहना। अगर आप चाहते हैं कि आप पप्पू न बनें तो पहले आप बच्चों को अच्छा बोलने के संस्कार दीजिए। दादा को दादाजी और पापा को पापाजी कहना सिखाइए। यदि आप सुनहरा भविष्य देखना चाहते हैं तो पहले वर्तमान को सुनहरा बनाएं। संतश्री ने एक-एक बच्चों से उनके पिता के नाम पूछे, केवल एक को छोड़कर सभी बच्चों ने अपने पिता के नाम, नाम के आगे श्री और नाम के बाद जी लगाए बगैर ही बताए। उन्होंने बच्चों को दोबारा पिता के नाम के आगे श्री व पीछे जी लगाकर कहने का अभ्यास कराया। उन्होंने बच्चों से कहा, श्री व जी लगाने से पिता के नाम में लग जाए तो उनका सम्मान बढ़ता है। इसीलिए कभी भी अपने से बड़ों के नाम के आगे श्री और नाम के पीछे जी अवश्य लगाएं।
आजीवन गुटखा त्याग एवं व्यसनमुक्ति का दिलाया संकल्प
संतप्रवर ने आज हजारों की संख्या में उपस्थित श्रद्धालुओं में से गुटखा खाने वालों से हाथ उठाने कहकर उन्हें मंच के समक्ष आमंत्रित किया। और एक-एक कर सभी से पूछा कि वे गुटखा सेवन कब से कर रहे हैं। उन्होंने गुटखा खाने के कई हानिकारक दुष्परिणाम बताते हुए कहा कि बुरी आदतों से बचें। कहीं ऐसा न हो कि आपका एक बुरा शौक आपके पूरे परिवार को शोक में डाल दे। उन्होंने कहा- आपका मन नहीं मानता तो गुटखा भले खाइए पर पहले गु और खा के बीच का ट हटाइए फिर जी करे तो जी-भर खाएं। इसके बाद उन्होंने उन सभी महानुभावों को जीवनभर के लिए गुटखा सेवन के त्याग का संकल्प दिलाया। इसके अलावा संतश्री द्वारा विशाल पांडाल में बैठे हजारों श्रद्धालुओं से आज से व्यसनमुक्त जीवन जीने का आह्वान कर सभी से दोनों हाथ उठवाकर व्यसनमुक्ति का संकल्प दिलाया। जनमानस के नाम अपने संदेश में उन्होंने कहा- व्यसन मुक्त हो भारत देश, राष्ट्र्संत का यही संदेश। उन्होंने कहा- साधु वह होता है जो पंच महाव्रतों का पालन करता है पर सद्गृहस्थ भी वह होता है जो पंच अणुव्रतों का पालन करता है। अगर आप चाहते हैं कि आपके संतों के जीवन में उजाला हो तो आपको भी अपने जीवन को जाले से मुक्त करना ही होगा। आज सभी यह निर्णय करें कि अपने जीवन को आप बहुत संस्कारशील बनाकर जीएंगे।
स्वयं के बनें चिकित्सकः डॉ. मुनि शांतिप्रियजी
दिव्य सत्संग के पूर्वार्ध में डॉ. मुनिश्री शांतिप्रिय सागरजी ने कहा कि इस संसार में सबसे बड़े सौभाग्यशाली वे हैं जिनके पास स्वास्थ्य और खुशहाली है। स्वस्थ जीवन के लिए अपनी जीवन शैली को हमेशा व्यवस्थित रखिए। यदि हम अपने जीवन को योग, प्राणायाम और प्रभु भक्ति के साथ जीते हैं तो हम पर कभी बीमारी आएगी नहीं। उन्होंने कहा कि अपने चिकित्सक आप खुद बनें। अपना खान-पान सात्विक और व्यवस्थित रखें। हमारा भोजन सही और संतुलित हो। घर का बना शुद्ध-ताजा देसी भोजन ही करना चाहिए। पानी विवेकपूर्वक पीएं तो पानी भी अमृत का कार्य करेगा। पंद्रह दिन में एक बार उपवास अवश्य करें।
तपस्वियों का हुआ बहुमान
धर्मसभा में आज तपस्वी दिशा कोचेटा-9 उपवास व अरूण खंडेलवाल-6 उपवास का बहुमान दिव्य चातुर्मास समिति व श्री ऋषभदेव मंदिर ट्र्स्ट की ओर से किया गया। साथ ही मुंगेली से आए जैनश्रीसंघ के पदाधिकारियों का भी सम्मान हुआ।
आज प्रवचन 'क्या करें कि आपका घर बने स्वर्ग' विषय पर
दिव्य चातुर्मास समिति के अध्यक्ष तिलोकचंद बरड़िया, महासचिव पारस पारख, प्रशांत तालेड़ा, कोषाध्यक्ष अमित मुणोत व स्वागताध्यक्ष कमल भंसाली ने बताया कि सोमवार से दिव्य सत्संग के अंतर्गत प्रारंभ हो रहे परिवार सप्ताह के प्रथम दिवस 1 अगस्त को सुबह 8ः45 बजे से 'क्या करें कि आपका घर बने स्वर्ग' विषय पर प्रवचन होगा। श्रीऋषभदेव मंदिर ट्रस्ट एवं दिव्य चातुर्मास समिति ने श्रद्धालुओं को चातुर्मास के सभी कार्यक्रमों व प्रवचन माला में भाग लेने का अनुरोध किया है।