अमितावो कुमार घोष ने किया एक और पोस्ट, अंबिका सिंहदेव राजनीति चुने या मुझे
कोरिया। संसदीय सचिव व विधायक अंबिका सिंहदेव के पति अमितावो कुमार घोष ने रविवार को 'मुझे भी कुछ कहना है' हैशटेक के साथ पांचवां और अंतिम फेसबुक पोस्ट किया है. इस पोस्ट में उन्होंने लिखा है कि वो (अंबिका सिंहदेव) राजनीति चुने या मुझे. वो जो भी फैसला लेंगी मुझे स्वीकार है. मुझे किसी से कुछ लेना देना नहीं है. बस, मेरी बीवी मुझे वापस मिल जाए. अमितावो कुमार घोष ने अपने पोस्ट में एक शायरी भी लिखा है कि मोहब्बत है इसीलिए जाने दे रहा हूं, जिद होती तो कहीं का नहीं रहती. उन्होंने अपने पोस्ट में लिखा है कि मैंने सोमवार 6 फरवरी को आखिरी पोस्ट करने की बात कही थी. क्षमा करना, थक गया हूं साहब, एक दिन पहले ही पोस्ट के सिलसिले का अंत कर रहा हूं.
आप जब ऐसा कुछ देखे नहीं तो मैं कहां किया हूं. कास सुशांत सिंह राजपूत और अन्य अनेक लोग चुपचाप चले जाने से पहले थोड़ा हिम्मत करके मेरे ही तरह कुछ किए होते. जिंदगी से भाग के कहां जाओगे. अब मतलब पर – मैं क्यूं चाहता हूं अंबिका जी राजनीति छोड़ दे, छोटी सी उत्तर है – राजनीति नहीं गंदी राजनीति. इस विषय में विस्तार से मैं कुछ और नहीं लिखूंगा क्योंकि चोरी-छुपे तो कुछ नहीं होता है. जो भी होता है खुलेआम होता है.
आपको दिखाई नहीं देता ? देता है पर आप कहोगे राजनीति तो आइसा ही होता है. सही बात है, इसीलिए तो मैं कभी नहीं चाहा कि मेरी पत्नी राजनीति में आए या रहे. आप अपने पत्नी को छोड़ दोगे इस राजनीति के मैदान में? नहीं न, तो हमसे यह उम्मीद क्यूँ रखते हो साहब ?
आप में से बहुत लोग मुझे पहले से जानते हैं. कुछ पीछे दो साल से जानते हैं. एक जन भी तो आगे होकर हमसे बोले नहीं कि आप उन्हें समझाए इस सियासी मैदान से बाहर आ जाए. उल्टा आप अपने स्वार्थ और मतलब से अंबिका जी का साथ दिए. क्यूं अंबिका विधवा है – मैं मर गया हूं – मैं छोड़ के भाग आया हूं ? अंबिका जी के साथ मेरा नाम हर जगह पर जुड़ा है. आपका नहीं. मैं ईश्वर पर भरोसा रखता हूं, मां रामदइया से प्रार्थना है कि जो-जो इस अपराध से जुड़े हैं, सबका संसार आइसा ही उजड़े, पूरा नामों का लिस्ट मैं मां के चरणों में रख के आया हू. वो इंसाफ करें. जब आप पर बितेगा तब आपको समझ में आएगा हम पर क्या गुजरा?
अंबिका जी के राजनीति का पहले दो साल इंग्लैंड से मैं सब समझ रहा था. 2021 से अब तक देखा, सुना, समझा और इंडिया में एक-एक करके सबूत इकठ्ठा किया. घबराएये मत, अगर मजबूर न किए गए तो मैं न ही किसी का नाम लेने वाला हूं, न ही कोई सबूत जनसमक्ष में लाने वाला हूं. मुझे किसी से कुछ लेना देना नहीं है. बस, मेरी बीवी मुझे वापस मिल जाए. जो हुआ बहुत हुआ, मैं उनको पिछले 4 साल से तो समझा ही रहा था. वो नहीं सुने, फिर मैं उन्हें कहा कि मैं क्या करूंगा. वो सोचे कि यह सिर्फ बोल रहे हैं कुछ नहीं करेगा. नहीं हुजूर, कौन सीखा है सिर्फ बातों से सबको एक हादसा जरूरी है, कर दिया न मैं 'हादसा'. अब फैसला अंबिका को लेना है, या तो वो राजनीति चुने या मुझे. आप्शन दे दिया, डिसीजन वो ले. वो जो भी फैसला लेंगे मुझे स्वीकार है. इस विषय में एक शब्द भी और नहीं लिखूंगा.