संगत हमेशा अच्छी रखें, जो भी धम कमाएं न्यायोचित रीति से कमाएं
रायपुर। ''संसार में रहते हुए भी निर्मल जीवन जीने के मंत्र यही हैं कि जो भी धन कमाएं वह न्यायोचित रूप या रीति से कमाएं। दूसरा- हमारा जीवन शीलवान हो। तीसरा- अपना जीवन हमेशा सदाचार मय जीएं। चौथा- संगत हमेशा अच्छी रखें। पांचवा- जीवन में सदा मातृ-पितृ भक्ति और सेवा करें। छठवां- प्रतिदिन धर्म का श्रवण करें- अर्थात् अच्छा देखें अच्छा सुनें अच्छा बोलें और अच्छा सोचें। संसार में रहते हुए भी निर्मल जीवन जीने का सातवां मंत्र है- अतिथि की सेवा और जरूरतमंद की मदद करें। आठवां है- अपने जीवन को हमेशा दुराग्रह रहित जीना चाहिए। संबंधों में सदा मधुरना बनाए रखना चाहते हैं तो कहना मनवाने की आदत मत डालो, कहना मानने की आदत डालो। छोटी-छोटी बातों पर दुराग्रह करने की बजाय अगर हम थोड़े-से उदार बन जाते हैं, एक-दूजे के विचारों के प्रति पॉजीटिव बन जाते हैं तो हमारे हर संबंध सदा टिके रहते हैं, जीवन में उनके आनंद और शांति होती है।''
ये प्रेरक उद्गार राष्टÑसंत श्रीललितप्रभ सागरजी महाराज ने आउटडोर स्टेडियम बूढ़ापारा में जारी दिव्य सत्संग जीने की कला के अंतर्गत अध्यात्म सप्ताह के छठवें दिन शनिवार को व्यक्त किए। 'गृहस्थ में कैसे जिएं आध्यात्मिक जीवन' विषय पर व्यक्त किए। भावगीत 'जंगल में जोगी रहता है ऊँ प्रभु ऊँ, कभी हंसता है कभी रोता है, दिल उसका कहीं न फंसता है, तन-मन में चैन बरसता है।।...' के मधुर गायन से धर्मसभा का शुभारंभ करते हुए संतप्रवर ने कहा कि हर व्यक्ति के लिए यह संभव नहीं है कि वह साधु बन जाए, साधु सा जीने के लिए वो सोच तो सकता है। भगवान कहते हैं कि जीवन को जीने के दो आध्यात्मिक तरीके हैं- एक संत बनकर अपनी आध्यात्मिक साधना करें और दूसरा- संसार में रहते हुए जल कमल वत् निर्लिप्त और शांत जीवन जीकर भी गृहस्थ संत बना रहे। हमारे शास्त्रों में वर्णन है कि कुछ गृहस्थ ऐसे हुए या हैं जिन्होंने संत से भी श्रेष्ठ जीवन जिया है। श्रीमद् राजचंद्र जैसे महापुरुष इस बात के लिए हमारे सामने उदाहरण हैं। गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी आत्म साधना की ऊंचाइयों को उन्होंने हासिल किया है। संसार में रहना बुरा नहीं है, लेकिन अपने भीतर संसार को बसा लेना बस यहीं से बुराई शुरू हो जाती है। कमल की तरह जो संसार में निर्लिप्त जीवन जी रहा है और मुक्ति का भाव अंतरहृदय में निरंतर चलता रहता है तो आदमी का संसार में रहना भी मुक्ति के करीब जाना है।
त्यागी मरने के बाद भी पूजे जाते हैं
संतप्रवर ने कहा कि एक बात तो तय है कि इस दुनिया में जीते-जी तीन तरह के लोग पूजे जाते हैं। पहले वे जिनके पास सत्ता है, दूसरे वे हैं जिनके पास समृद्धि है और तीसरे वे जिनके पास सौंदर्य है। सत्ताशील, समृद्धिशील और सौंदर्यवान ये केवल जीते-जी पूजे जाते हैं पर त्यागी मरने के बाद भी सदियों तक पूजे जाते हैं। वे दुनिया में सदा अजर-अमर रहते हैं। जितना जरूरी जीवन में धन है उतनी ही जरूरी जीवन में नैतिकता है। नैतिकता भी जीवन का सबसे बड़ा धन है। जिसके पास नैतिकता का धन है वह दुनिया में रहेगा तब भी पूजा जाएगा और चला जाएगा तब भी पूजा जाएगा। जिसके घर में अनुचित मार्ग से धन आया है तो वह बाहर निकलने के दस बहाने खड़े कर देगा, कभी डॉक्टर तो कभी पुलिस, वकील और कभी प्रशासन के बहाने वह चला जाएगा। बहाने बदलते रहेंगे पर जाने के रास्ते उसके चालू रहेंगे। जीवन में जो भी धन कमाएं वह न्यायोचित रूप से कमाएं।
जीएसटी को अपने जीवन में ले आएं
संतश्री ने कहा कि जीएसटी ये केवल व्यापार के लिए लागू नहीं होता है। ये हमारे जीवन की व्यवस्था के लिए भी लागू होता है। जीएसटी का पहला अक्षर जी हमें कहता है अपनी थिंकिंग को हमेशा गुड रखो, दूसरा अक्षर एस कहता है हमेशा सिम्पल लिविंग हो और तीसरा अक्षर- टी हमें कहता है टेंशन फ्री लाइफ जियो। जो आदमी सादा जीवन-उच्च विचार को जिया करता है वह हमेशा टेंशन फ्री लाइफ जीता है। अपनी जिंदगी को हमेशा टेंशन फ्री रखो। की फरक पेंदा... इसे अपनी जिंदगी का मंत्र बना लो। क्या फर्क पड़ता है, अगर मनचाहा हो गया तो भी ठीक है और अगर न हुआ तो भी ठीक है। अतिथि की सेवा के साथ-साथ हर गृहस्थ को चौबीस घंटे में एक बार किसी को अपनी ओर से जरूर कुछ देना चाहिए। क्योंकि गृहस्थ के लिए दान से बढ़कर और कोई सरल धर्म नहीं है।
गृहस्थ के लिए दो सरल धर्म- दान और पूजा
संतप्रवर ने बताया कि गृहस्थ के लिए सबसे सरल दो धर्म हैं- दान और पूजा। जरूरतमंद की मदद करें, दान दें तो उसका पता किसी को न चले, वह दान सदा गुप्त रहे। बड़े-बुजुर्ग कह गए हैं कि दान इस हाथ से दो तो उस हाथ को भी पता न लगे। दान दिया संग चलेगा, बाकी बचा पीछे जंग लगेगा। हर व्यक्ति को धर्म श्रवण करना चाहिए। क्योंकि धर्म श्रवण करने से, परमात्मा की वाणी सुनने से जीव का उद्धार होता है। भगवान महावीर ने अनेकांत का सिद्धांत हमें प्रदान किया। अनेकांत यह कहता है- जो सच वो मेरा। इसे विपरीत एकांतवादी का कहना होता है- जो मैंने कहा वही सच। अनेकांत यह कहता है कि जो मैंने कहा वही सच नहीं, जो सच है उसे मैं अपना बनाने की कोशिश करुंगा। जीवन को सदा सजगता-सरलता से जिओ और जो भी परिणाम आ जाए उसे सहजता से स्वीकार कर लो। जीवन में हमेशा सुखी रहोगे।
हर पल को बनाएं सार्थक ताकि मृत्यु भी महोत्सव
बन जाए: डॉ. मुनिश्री शांतिप्रिय सागर
अब सौंपा दिया इस जीवन का सब भार तुम्हारे हाथों में... इस भक्ति गीत से शुभारंभ करते हुए डॉ. मुनिश्री शांतिप्रिय सागरजी ने कहा कि हमारी भारतीय संस्कृति में न केवल जीने की वरन् मरने की कला भी सिखाई गई है। जन्म और मरण दोनों के ही संस्कार होते हैं। मरने से पहले हर व्यक्ति को मरने की कला जरूर सीख लेनी चाहिए ताकि उसकी मृत्यु भी महोत्सव बन जाए। गजब की बात है कि आदमी को अपनी मौत से डर लगता है, मौत से डरने की नहीं मौत को महोत्सव बनाने की जरूरत है। इस दुनिया में सब कुछ अनिश्चित है पर याद रखना मौत एक ऐसी चीज है तो निश्चित है। इसीलिए अपने जीवन के हर दिन को अंतिम दिन मानकर हर पल को सार्थक करना ही जीवन की कद्र करना है। जीवन में सत्कार्यों को करते रहोगे तो तुम्हारा जीवन अपने-आप धन्य होना शुरू हो जाएगा। भगवान श्रीमहावीर कहते हैं कि ये शरीर नाव की तरह है और जीव नाविक की तरह है। संसार समुद्र की तरह है, जिसमें महर्षि और ज्ञानीजन तैर जाया करते हैं और अज्ञानी मोही जीव डूब जाया करते हैं। जो अपनी मौत को सदा याद रखते हैं वे इस संसार सागर से पार हो जाया करते हैं। बाल मरण अज्ञानियों का होता है और पंडित मरण यह ज्ञानियों को मिलता है। जब मृत्यु अश्यंभावी है तो क्यों न हम बालमरण की बजाय अपनी मृत्यु को पंडित-मरण बनाने सत्कर्मों और सदाचार को जीवन में अपनाएं। अपने जीवन में हर हाल में समता और वैराग्य को बढ़ाते जाएं तो हमारे लिए मौत भी मौत नहीं रहेगी वह मृत्यु का महोत्सव बन जाएगी।
आज के अतिथिगण
दिव्य चातुर्मास समिति के अध्यक्ष तिलोकचंद बरड़िया, महासचिव पारस पारख व प्रशांत तालेड़ा, कोषाध्यक्ष अमित मुणोत ने बताया कि शनिवार को दिव्य सत्संग का शुभारंभ अतिथिगण सुमित चोरड़िया, श्रीमती ज्योति चोरड़िया अजीमगंज कोलकाता, श्रीविनय मित्र मंडल परिवार से अध्यक्ष महावीर मालू, पूर्व अध्यक्ष महेंद्र कोचर, पूर्व अध्यक्ष महावीर तालेड़ा, पूर्व अध्यक्ष खेमराज बैद, पूर्व अध्यक्ष दीपचंद कोटड़िया, पूर्व अध्यक्ष राजेश कानूगा, कोषाध्यक्ष निलेश गोलछा, ज्ञानचंद श्रीश्रीमाल, उत्तम पारख, सुशील कोचर द्वारा दीप प्रज्जवलित कर किया। अतिथि सत्कार समिति के सदस्य विमल गोलछा व श्रीऋषभदेव मंदिर ट्रस्ट के कार्यकारी अध्यक्ष अभय भंसाली के हाथों किया गया।
तपस्वियों का बहुमान
9 उपवास की तपस्वी कु. रीत कांकरिया सुपुत्री पियुष कांकरिया एवं 17 उपवास की तपस्वी प्राची पारख का श्रीसंघ की ओर से बहुमान किया गया।
अक्षय निधि, समवशरण, विजय कसाय तप
एवं दादा गुरूदेव इकतीसा जाप जारी
श्रीऋषभदेव मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष विजय कांकरिया, कार्यकारी अध्यक्ष अभय भंसाली, ट्रस्टीगण तिलोकचंद बरड़िया, राजेंद्र गोलछा व उज्जवल झाबक ने संयुक्त जानकारी देते बताया कि आज दिव्य सत्संग में अक्षय निधि, समवशरण, कसाय विजय तप के एकासने के लाभार्थी- राजेश सुरेश कुमार बरमट परिवार, कैलाशचंद राजेंद्र दिनेश विशाल बरमट परिवार, गुलाबचंद दीपक महेश कुमार बरमट परिवार, धरमराज मोहित कुमार बेगानी परिवार, अनोपचंद स्वरूपचंद विजय कुमार छाजेड़ परिवार, देवीचंद विमलादेव पारख परिवार, कल के एकासने के लाभार्थी- कमलचंद विमलचंद मालू, इंदरचंद महावीरचंद कोचर परिवार, राजेंद्र नरेंद्र कुमार झाबक परिवार, किशनलाल महावीर मालू परिवार, संतोष सचिन दुग्गड़ परिवार, आनंदराज मंगलचंद सेठिया परिवार, प्रकाशचंद प्रवीण कुमार श्रीपाल दस्सानी परिवार का श्रीऋषभदेव मंदिर ट्रस्ट मंडल व दिव्य चातुर्मास समिति की ओर से बहुमान हुआ। सूचना सत्र का संचालन चातुर्मास समिति के महासचिव पारस पारख ने किया। 21 दिवसीय दादा गुरुदेव इक्तीसा जाप का श्रीजिनकुशल सूरि जैन दादाबाड़ी में विगत सोमवार से प्रतिदिन रात्रि साढ़े 8 से साढ़े 9 बजे तक जारी है। आज के इक्तीसा के लाभार्थी रहे- गौतमचंद नरेंद्र कमल बुरड़ परिवार, प्रेमचंद परेशजी कोचर परिवार, पारसमल विमल निर्मल राजेंद्र गोलछा परिवार, श्रीसिंगी परिवार-जैन प्रिंटिंग प्रेस एवं तीन गुरुभक्त परिवार।
आज माँ श्रीसरस्वती महापूजन
दिव्य चातुर्मास समिति के अध्यक्ष तिलोकचंद बरड़िया, महासचिव पारस पारख प्रशांत तालेड़ा व कोषाध्यक्ष अमित मूणोत ने बताया कि कल रविवार, 21 अगस्त को प्रवचन के समय प्रात: 8.45 से 10.30 बजे तक ज्ञान की महत्ता-महानता पर राष्टÑसंत की वाणी से विशेष प्रवचन सहित बुद्धिदायिनी माँ श्रीसरस्वती का महापूजन किया जाएगा। जिसमें सभी 36 कौमों के हजारों श्रद्धालु पुण्यार्जन करेंगे। श्रीऋषभदेव मंदिर ट्रस्ट व चातुर्मास समिति द्वारा सभी श्रद्धालुओं से पूजन के शुद्ध वस्त्रों में अपने साथ एक फल, एक मिष्ठान्न और अक्षत चावल साथ लाने का आग्रह किया है। अक्षत चावल श्रद्धालुजन अपने सामर्थ्य अनुसार अधिक मात्रा में भी ला सकते हैं। पूजन उपरांत दशांश भाग पुजारीजी को प्रदान कर शेष चावल, फल, मिठाई आदि नगर की झुग्गी बस्तियों व जरूरतमंदों के बीच जाकर बांट जाएगा।
विनय मित्र मंडल की ओर से प्रतीकात्मक रूप
से दो विकलांगों दिए गए दो कृत्रिम जयपुर पैर
दिव्य सत्संग के मंच से राष्टÑसंत की निश्रा में आज श्रीविनय मित्र मंडल द्वारा प्रतीकात्मक रूप से दो विकलांगों को कृत्रिम जयपुर पैर प्रदान किए गए। लाभान्वित विकलांग रहे- ईश्वर साहू-25 वर्ष व शेख सफी-45 वर्ष। संस्था के कृत्रिम पैर निर्माण के कुशल कारीगर अब्दुल वहीद कुरैशी एवं श्रीविनय मित्र मंडल के सभी पदाधिकारियों का श्रीसंघ की ओर से मंदिर ट्रस्ट के पूर्व वरिष्ठ ट्रस्टी प्रकाशचंद सुराना व ट्रस्ट के कार्यकारी अध्यक्ष अभय भंसाली के हाथों बहुमान किय गया। संतश्री द्वारा संस्था के सेवा कार्यों को तहे दिल से सराहा।