छत्तीसगढ़

खरीफ फसल की तैयारी के लिए किसानों को अकरस जुताई की सलाह

Admin2
11 May 2021 4:02 PM GMT
खरीफ फसल की तैयारी के लिए किसानों को अकरस जुताई की सलाह
x

रायपुर। राज्य सरकार किसानों के सशक्तिकरण के लिए बेहतर नीतिगत प्रयास कर रही है। इसके साथ ही किसानों को तकनीकी जानकारी देने प्रदेश के कृषि वैज्ञानिकों को भी निर्देशित किये गए इसी तारतम्य में कृषि वैज्ञानिकों ने प्रदेश के किसानों को ग्रीष्मकालीन अकरस जुताई करने की सलाह दी है। कृषि अधिकारियों ने बताया कि अकरस जुताई से मिट्टी की उर्वरा शक्ति में सुधार होता है। इससे फसल में भी वृफही होती है। किसानों को तकनीकी जानकारी पहुंचाने कृषि अधिकारियों द्वारा जिले में भी प्रयास किये जा रहे है। प्रदेश में कही-कही आंधी तुफान के साथ वर्षा हुई है जिन गांवों की खेतों के मिट्टी में हल चलाने लायक नमी है, वे सभी नमी का लाभ उठाते हुए ग्रीष्मकालीन जुताई करें तथा जिन किसानों कीे खेत के मिट्टी में नमी हल चलाने लायक नहीं है, वे इन्तजार करें तथा जैसे हल चलाने हेतु पर्याप्त वर्षा होती है, खेतों की ग्रीष्म कालीन जुताई करें।

कृषि विभाग के अधिकारियों ने किसानों को जानकारी देते हुए कहा कि ग्रीष्मकालीन जुताई दो प्रकार से की जा सकती है, पहला मिट्टी पलटने वाली हल से तथा दूसरा देशी हल अथवा कल्टीवेटर से। मिट्टी पलटने वाली हल से खेत की जुताई 3 साल में एक बार अवश्य करना चाहिए। ग्रीष्म कालीन (अकरस) जुताई के लाभ-खेत की एक ही गहराई पर बार-बार जुताई करने अथवा धान की रोपाई हेतु मिट्टी की मचाई से कठोर परत बन जाती है, जिसे ग्रीष्म कालीन जुताई से तोड़ा जा सकता है। फसलों में लगने वाली कीड़े, जैसे धान का तना छेदक, कटुआ, सैनिक कीट, उड़द-मूंग की फल भेदक, अरहर की फली भेदक, चना की इल्ली, बिहार रोमल इल्ली इत्यादि कीट गर्मी के मौसम के दौरान जीवन चक्र की शंखी अवस्था में फसल अवशेष, ठूठ एवं जड़ों के पास अथवा मिट्टी में छुपे रहते हैं। गर्मी के मौसम में अकरस जुताई करने से कीट की संखी अवस्था अथवा कीट के अण्डे धूप के सीधे सम्पर्क में आने से गर्मी के कारण मर जाते हैं अथवा चिडियों द्वारा चुग लिये जाते हैं, जिससे कीटनाशियों के प्रयोग करना नहीं पड़ता है अथवा कम होता है।

फसलों में रोग फैलाने वाले रोगाणु जैसे बैक्टीरिया, फफुंद आदि फसल अवशेष अथवा मिट्टी में जीवित बने रहते हैं और अनुकूल मौसम मिलने पर फिर से प्रकोप शुरू कर देते है। ग्रीष्म कालीन जुताई करने से ये रोगाणु सूर्य की रोशनी के सीधे संपर्क में आने से अधिक ताप के कारण नष्ट हो जाते हैं। ग्रीष्म कालीन जुताई से मिट्टी वर्षा जल को ज्यादा सोखती है और प्रतिकूल परिस्थिति अथवा अवर्षा की स्थिति में मिट्टी में संग्रहित वर्षा जल का उपयोग पौधा द्वारा किया जाता है। फसलों की जड़ को अच्छा बढने के लिए भुरभुरा एवं हवा युक्त मिट्टी की जरूरत होती है, ताकि जड़ ज्यादा से ज्यादा मिट्टी में फैल सके। अकरस जुताई के परिणामस्वरूप मिट्टी भुरभुरा एवं पोला होता है, जिससे पौधे के जड़ की वृद्धि अच्छी होती है। मिट्टी में जैविक एवं कार्बनिक पदार्थ के अपघटन के लिए सूक्ष्म जीव आवश्यक होते हैं। अकरस जुताई से मिट्टी में हवा का संचार अच्छा होता है, जिससे सूक्ष्म जीवों की बढ़वार एवं गुणन तीव्रगति से होता है, फलस्वरूप पोषक तत्व की उपलब्धता बढ़ जाती है। मिट्टी का कटाव एवं वर्षा जल के बहाव की तीव्रता मिट्टी के भौतिक एवं रसायनिक दशा पर निर्भर करती है। ग्रीष्मकालीन जुताई करने से मिट्टी की जल अवशोषण क्षमता बढ़ जाती है एवं जल बहाव की अवस्था निर्मित नहीं होती, परिणामस्वरूप मिट्टी का कटाव नहीं हो पाता है एवं खेत का पानी खेत के मिट्टी में ही संग्रहित हो जाता है। किसान अकरस जुताई के फायदे को ध्यान रखते हुए ज्यादा से ज्यादा ग्रीष्म कालीन जुताई करें, ताकि मिट्टी के जैविक एवं रासायनिक दशा में सुधार हो तथा अच्छा से अच्छा फसल उत्पादन कर सकें।

Next Story