रायपुर। नक्सलवाद देश के कुछ हिस्सों की सबसे बड़ी समस्या है और इसी मुद्दे पर फिल्म 'बस्तर द नक्सल स्टोरी' बात करती है। कम्यूनलिज्म और माओवाद के इंपैक्ट की कहानी को भी फिल्म में दिखाने का प्रयास किया गया है। आम परिवारों पर असर से लेकर राज्या और केंद्र सरकार पर नक्सली घटनाओं के पड़ने वाले प्रभाव की बात करती इस फिल्म में दिखाने का प्रयास किया गया है कि किस तरह से फील्ड में मौजूद फोर्सेज इसे हैंडल करती हैं। कहानी में आईपीएस नीरजा के रोल में अदा शर्मा हैं जो मुख्य किरदार में रहते हुए कितनी सफलता से देश की इस समस्या को सच्चाई के साथ दिखा पाई हैं, ये आपको इस रिव्यू में जानने को मिलेगा।
आईपीएस नीरजा माधवन (अदा शर्मा) गर्भवती हैं, लेकिन उनका किरदार रोके नहीं रुकने वाला है। नक्सल-प्रभावी क्षेत्र बस्तर में तैनात वह नक्सलवाद को खत्म करने और नक्सली गिरोह के नेता लंका रेड्डी का शिकार करने की प्रतिज्ञा करती है, लेकिन क्या वह सफल होगी? यही आपको इस कहानी में देखने को मिलेगा। निर्देशक सुदीप्तो ने एक महत्वपूर्ण विषय चुना है। निस्संदेह, घरेलू सीमाओं तक सीमित क्षेत्रीय संघर्ष की तुलना में हिंदू-मुस्लिम झगड़ा सबसे शक्तिशाली, विवादास्पद और बड़ा मुद्दा है। 'बस्तर: द नक्सल स्टोरी' असल सच को उठाने से पहले ही अपनी कहानी को ओर बढ़ती है, जो बस्तर के जंगलों से शुरू होती है। कहानी के दौरान बस्तर से लेकर दिल्ली और जेएनयू का जिक्र आता है। कहानी में नक्सलवाद के लिए हो रही फंडिंग की भी बात की गई है, जिसकी फंक्शनिंग को पूरी तरह से नहीं दिखाया गया है।
फिल्म की कहानी शुरु होती है नीरजा माधवन के साथ जो अस्पताल में प्रेग्नेंसी का चेकअप के लिए गई हैं। इसके बाद ही वो ड्यूटी पर लौटती हैं। नक्सलवाद का सफाया ही उनके जीवन का मूल लक्ष्य है। कई समस्याओं के झेलते हुए वो सफलता की सीढ़ी चढ़ने के लिए तैयार हैं। इसी बीच वो अपने बच्चे को भी खो देती हैं। सरकारी तामझाम में भी नीरजा उलझी नजर आती हैं।