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रायपुर। संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर महाराज 17 फरवरी, शनिवार रात में 2.30 बजे ब्रह्म में लीन हुए। वे पिछले कई दिनों से अस्वस्थ थे। पूरी जागृत अवस्था में 3 दिन के उपवास के बाद समाधि हुई। समग्र जैन समाज में शोक की लहर छा गई। छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ स्थित चंद्रगिरी तीर्थ पर उन्होंने अंतिम सांस ली, 18 फरवरी, रविवार दोपहर को डोला यहीं से निकाला जाएगा और पंचतत्व में विलीन किया जाएगा। 6 फरवरी को निर्यापक श्रमण मुनि योग सागर से चर्चा करते हुए उन्होंने संघ संबंधी सभी कार्यों से निवृत्ति ले ली और आचार्य पद का त्याग कर दिया था। उन्होंने आचार्य पद के योग्य प्रथम मुनि शिष्य निर्यापक श्रमण मुनि समय सागर महाराज को योग्य समझा और तभी उन्हें आचार्य पद दिया जावें ऐसी घोषणा कर दी थी, जिसकी विधिवत जानकारी आज दी जाएगी। समाधि के समय उनके पास पूज्य मुनि योग सागर, समता सागर, प्रसाद सागर महाराज संघ सहित उपस्थित थे। रात को सूचना मिलते ही आचार्य श्री के हजारों शिष्य डोंगरगढ़ के लिए रवाना हो गए थे।
#WATCH | Chhattisgarh: Last rites of Acharya Shri 108 Vidhyasagar Ji Maharaj performed in Rajnandgaon pic.twitter.com/aYCLJt01TY
— ANI MP/CG/Rajasthan (@ANI_MP_CG_RJ) February 18, 2024
आचार्य विद्यासागर महाराज का जन्म 10 अक्टूबर 1946 को कर्नाटक प्रांत के बेलगांव जिले के सदलगा गांव में हुआ था। उन्होंने 30 जून 1968 को राजस्थान के अजमेर नगर में आचार्य ज्ञान सागर महाराज से दीक्षा ली थी। आचार्य ज्ञान सागर महाराज ने उनकी कठोर तपस्या को देखते हुए उन्हें अपना आचार्य पद सौंपा था। आचार्य श्री का अधिकांश समय बुंदेलखंड में व्यतीत हुआ, वे वहां के जैन समाज की भक्ति और समर्पण से बहुत प्रभावित थे। आचार्य श्री ने लगभग 350 दीक्षाएं दी है, जिनमें शिक्षित युवाओं की संख्या अधिक है। संघस्त निर्यापक मुनि समता सागर महाराज ने कहा कि यह धर्म संकट की घड़ी है पूरे विश्व को अपूरणीय क्षति हुई है एक कालखंड थम गया है हर आंख में आंसू है, देह का वियोग हुआ है। गुरुवर आज भी हमारे बीच मौजूद हैं। दिगंबर जैन समाज सामाजिक संसद अध्यक्ष राजकुमार पाटोदी एवं प्रचार प्रमुख सतीश जैन ने बताया कि इस सदी के महान संत देह से विदेह की यात्रा कर सिद्धत्व की ओर अग्रसर हुए, समग्र जैन समाज ने आचार्य श्री को अपनी विनयांजलि अर्पित की।
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