छत्तीसगढ़

समुद्र की तरह विशाल होता है आचार्य भगवंत का मन

Nilmani Pal
12 Oct 2024 3:56 AM GMT
समुद्र की तरह विशाल होता है आचार्य भगवंत का मन
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रायपुर। श्री संभवनाथ जैन मंदिर विवेकानंद नगर रायपुर में आत्मोल्लास चातुर्मास 2024 के प्रवचनमाला जारी है। शुक्रवार को शाश्वत नवपद ओलीजी के मंगल कार्य का तीसरा दिन रहा। दो दिनों तक देव तत्व की आराधना हुई। देव तत्व की आराधना के अंदर अरिहंत परमात्मा व सिद्ध परमात्मा की आराधना की गई। तीसरे दिवस तपस्वी मुनिश्री प्रियदर्शी विजयजी म.सा. ने धर्मसभा में गुरु तत्व पर प्रवचन प्रारंभ किया।

मुनिश्री ने कहा कि गुरु तत्व तीन पदों के अंदर विभाजित है। पहला आचार्य पद,दूसरा उपाध्यय पद और तीसरा साधु पद। मुनिश्री ने आचार्य भगवंत के गुणों के बारे में बताया कि आचार्य भगवंत आठ संपदा के मालिक होते हैं। आचार्य भगवंत का मन समुद्र की तरह विशाल होता है। मुनिश्री ने आगे कहा कि आचार्य भगवंत गंगा नदी के जैसे होते हैं। जहां पानी आता भी है और जाता भी है। अर्थात जब वे मुनि थे तब उन्होंने ज्ञान अर्जित किया और आचार्य बने तो ज्ञान सभी को दिया। ऐसे ही आचार्य भगवंत लवण समुद्र के जैसे होते हैं। समुद्र में पानी आता तो अलग-अलग जगह से है लेकिन वहां पर समाहित हो जाता है अर्थात आचार्य भगवंत में गंभीरता का गुण होता है। आचार्य भगवंत का जीवन समुद्र के जैसा होता है,उनके अंदर कोई भी चीज जाए अंदर समाहित हो जाती है बाहर नहीं आती।

मुनिश्री ने कहा कि आचार्य भगवंत के द्वारा दूसरों की आलोचना प्रायश्चित सुनने के बाद कभी बाहर नहीं आती है, उनमें विलीन हो जाती है। ऐसे ही वे पद्मधरा के जैसे होते हैं। आचार्य भगवंत किसी का चलाया हुआ उन्मार्ग आगे बढ़ाने का काम नहीं करते और अपने से कोई उन्मार्ग चलाते नहीं है। ऐसा कोई आचरण नहीं करते जिसके कारण किसी के जीवन में अधर्म की प्राप्ति हो। आचार्य भगवंत श्रुत संपन्न होते हैं। आचार्य भगवन अमोघ वचन वाले होते हैं। आचार्य भगवंत वाचना संपन्न होते हैं और शिष्य संपदा के धनी होते हैं।

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