छत्तीसगढ़

गोंडी का मानक शब्दकोश बनाने बीजापुर में शुरू हुई एक अनोखी पहल

Shantanu Roy
22 March 2023 6:19 PM GMT
गोंडी का मानक शब्दकोश बनाने बीजापुर में शुरू हुई एक अनोखी पहल
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छग
बीजापुर। राज्य परियोजना कार्यालय समग्र शिक्षा छत्तीसगढ़ के दिशा निर्देशानुसार, कलेक्टर व जिला मिशन संचालक समग्र शिक्षा राजेंद्र कटारा के मार्गदर्शन में गोंडी का मानक शब्दकोश कार्यशाला डाइट बीजापुर के प्रशिक्षण हाल में डीईओ, सहायक आयुक्त, डीएमसी, एपीसी पेड़ागाजी व आगंतुक गणमान्य गोंडी विशेषज्ञों की उपस्थिति में कार्यक्रम का शुभारंभ 15 मार्च को हुआ। गोंडी देश के कम से कम 6 प्रदेशों में बोली जाती है, जिसमें छत्तीसगढ़ भी एक है। छत्तीसगढ़ सरकार ने एक प्रयास शुरू किया है, कि इन सभी प्रदेशों में बोली जाने वाली गोंडी की विभिन्न बोलियों को मिलाकर एक मानक गोंडी का निर्माण किया जाएं, जिससे गोंडी आठवीं अनुसूची में शामिल हो सके और गोंडी में प्रशासन, कानून, शिक्षा और पत्रकारिता जैसे काम हो सकें। इस काम के लिए पहली कार्यशाला बीजापुर जि़ले में 15 से 17 मार्च तक हुई। इस कार्यशाला में राज्य सरकार ने सभी 6 प्रदेशों से गोंडी के विशेषज्ञों को आमंत्रित किया था, जहां अभी भी गोंडी बोली जाती है। इस कार्य में बीजापुर जि़ले के 30 शिक्षकों ने सक्रिय भागीदारी की, जिन्होंने 6 प्रदेशों से आए 45 गोंडी विशेषज्ञों के साथ मिलकर इस कार्य के लिए विशेष रूप से बनाए गए मोबाइल ऐप से विभिन्न प्रदेशों में बोली जाने वाली गोंडी बोलियों से समानार्थी शब्द इक्क्ठा किए गए। ऐसी ही कार्यशालाएं अब दंतेवाड़ा, नारायणपुर और कांकेर जिले में भी आयोजित की जाएंगी, जहां स्थानीय शिक्षकों और बाहर से आए गोंडी विशेषज्ञों की मदद से और गोंडी के समानार्थी शब्द इक्क्ठे किए जाएंगे। उसके बाद माह के अंत में यह 6 प्रदेशों के गोंडी विशेषज्ञ रविशंकर विश्वविद्यालय रायपुर में 27 से 31 मार्च के बीच इक_ा होकर इन समानार्थी गोंडी शब्दों से मानक गोंडी डिक्शनरी बनाने का प्रयास करेंगे।
बीजापुर जिले के शिक्षा विभाग के सहायक परियोजना अधिकारी एटला वेंकट रमन ने बताया, गोंडी को एक समृद्ध भाषा बनाने के लिए राज्य शासन में एक बड़ा प्रयास शुरू किया है, जिसे गोंडी बोले जाने वाले किसी अन्य प्रदेश ने अब तक शुरू नहीं किया। हमें आशा है कि इस प्रयास के बाद गोंडी एक उन्नत भाषा बन सकेगी। यद्यपि यह एक बड़ा और लम्बा काम है, जिसमें अभी काफी वक्त लगेगा। हमारे गोंडी भाषी शिक्षकों ने इस काम में बहुत रुचि ली है और हमें आशा है कि राज्य सरकार की सक्रिय मदद से हम भविष्य में इस काम को अपने अंजाम तक ले जा सकेंगे। राज्य सरकार यह काम स्वयंसेवी संस्था सीजीनेट स्वर फ़ाउंडेशन के साथ कर रही है। संस्था के प्रमुख शुभ्रांशु चौधरी ने बताया गोंड आदिवासी छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े आदिवासी समूह हैं। आज उत्तर छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों में गोंडी भाषा विलुप्ति की ओर जा रहा हैं, जहां गोंड आदिवासियों में गोंडी को उनके इलाके में पुनर्जीवित करने के लिए खासा उत्साह है और वे राज्य सरकार की इस पहल को बहुत आशा भरी नजऱ से देख रहे हैं।
रविशंकर विश्वविद्यालय रायपुर की बैठक में कई भाषा विज्ञानी और गोंडी विशेषज्ञ इस काम के प्रमाणीकरण के लिए जुटेंगे, उसके बाद राज्य सरकार इस मानक शब्दकोश को जनता के लिए उपलब्ध करा सकती है। इस कार्य के लिए अमेरिका की एक संस्था एक्स आर आई ने एक ऐप निरूशुल्क बनाकर दिया है। उस संस्था के प्रतिनिधि भी रायपुर की बैठक में शामिल होकर इस काम को और आगे कैसे बढ़ाया जाए उसकी चर्चा में शामिल होंगे। उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने 2022 से अगले 10 वर्षों को अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी भाषा दशक के रूप में मनाने का निर्णय लिया है और राज्य सरकार का यह कार्य उसी दिशा में एक और कदम है । राज्य समग्र शिक्षा विभाग के वरिष्ठ अधिकारी प्रबंध संचालक नरेंद्र दुग्गा ने कहा नई शिक्षा नीति में मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षण पर जोर दिया गया है और हम लोगों ने इसलिए गोंडी पर किताबें बनाने और प्राथमिक शिक्षण का काम शुरू किया है, चूंकि गोंडी का मानकीकरण नहीं हुआ है। इसलिए हम उत्तर और दक्षिण बस्तर के लिए दो अलग-अलग पाठ्यपुस्तक छापते हैं। मानकीकरण एक लम्बी प्रक्रिया है, हमें आशा है उसके बाद गोंडी का आठवीं अनसूची में शामिल होने का रास्ता भी प्रशस्त होगा। गोंडी भाषा पर वर्षों से काम कर रहे कांकेर के रिटायर्ड शिक्षक शेर सिंह आचला ने कहा गोंडी संभवत: इस देश की सबसे प्राचीन भाषाओं में से एक है और उसका विलुप्ति की ओर जाना एक बड़ी त्रासदी होगी। यह मानवता के लिए एक बड़ी क्षति होगी, राज्य सरकार ने जो पहल की है, वह बहुत उचित समय में किया गया है। हम लोग शायद गोंडी बोलने वाली आखिरी पीढ़ी हैं और हमारे ज्ञान को अगर नई तकनीक से जोड़ दिया जाए, तो यह भाषा और उसका ज्ञान आगे आने वाली पीढिय़ों के लिए सुरक्षित रह सकता है। इसलिए हम आदिवासी समाज की ओर से राज्य सरकार को इस पहल के लिए बहुत धन्यवाद देना चाहते हैं। उक्त कार्यशाला में डाइट फैकल्टी सदस्य और समग्र शिक्षा एफएलएन के आशीष वर्मा, ललित निषाद व महेश राजपूत का विशेष योगदान रहा।
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