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अपनी धार्मिक पहचान और धरोहर के रूप में माने जाने वाले राजधानी से लगे सरोना मंदिर तालाब के करीब 329 साल पुराने कछुए का आज निधन हो गया।
रायपुर. अपनी धार्मिक पहचान और धरोहर के रूप में माने जाने वाले राजधानी से लगे सरोना मंदिर तालाब के करीब 329 साल पुराने कछुए का आज निधन हो गया। स्थानीय लोगों के अनुसार भीषण गर्मी के चलते बीते दिनों से कछुए की हालत खराब थी। आखिरकार उसने सोमवार को अंतिम सांस ली।
लंबाई साढ़े पांच और चौड़ाई 3 फीट के करीब थी। करीब 100 किलो वजनी इस कछुआ को 8 लोगों ने मिलकर तालाब से बाहर निकाला। इसके बाद लोगों ने धार्मिक रीति-रिवाज से मंदिर के समीप ही शिव मंदिर परिसर में कछुए का अंतिम संस्कार कर दिया। भविष्य में यहां कछुए की समाधि बनाई जाएगी। धार्मिक आस्था के प्रतीक सरोना तालाब की अपनी अलग पहचान और मान्यता है। यहां सास और बहु नाम के दो तालाब हैं। दोनों तालाब एक ही स्त्रोत से जुड़े हुए हैं। बुजुर्गों के मुताबिक ऐसी मान्यता है कि बारिश के मौसम में बाढ़ के हालात होने पर ये दोनों तालाब एक दूसरे की मदद करते हैं। मान्यता और आस्था की वजह से इन तालाबों में रहने वाली मछलियों और कछुओं को नहीं पकड़ा जाता है।
प्रचीनतम शिव मंदिर के कारण भी सरोना का यह स्थान धार्मिक आस्थाओं से जुड़ा हुआ है। 329 साल पुराने कछुए की मौत से स्थानीय लोगों में मायूसी साफ झलक रही है। इधर वन विभाग को भी इसकी जानकारी नहीं मिल पाई।
महिलाओं के लिए शुभ था यह कछुआ
स्थानीय लोगों के मुताबिक उनकी चार पीढिय़ों से इस कछुए के बारे में सुनते आ रहे हैं। दादा-परदादा बताते थे कि उनके पूर्वजों ने उन्हें बताया था कि तालाब में एक बढ़ा कुछुआ है। यहां के लोग इसकी पूजा करते थे। जब महिलाओं को ये दिख जाता था तो वह इसे बहुत शुभ मानती थीं।
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