बिहार

नई शिक्षा नीति को लेकर हुई कार्यशाला

Admindelhi1
4 April 2024 7:43 AM GMT
नई शिक्षा नीति को लेकर हुई कार्यशाला
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मुजफ्फरपुर: नई शिक्षा नीति (एनईपी) का क्रियान्वयन व कार्यान्वयन और अधिक उद्देश्यपरक तरीके से हो इसको ले अच्छे शिक्षण संस्थानों में नित नई पहल या कदम उठाए जा रहे हैं. इसी कड़ी में सीबीएसई से सम्बद्ध झाझा स्थित सारडॉनिक्स प्लस टू स्कूल प्रबंधन की पहल पर स्कूल के प्रशाल में एनईपी पर केंद्रित एक व्यापक कार्यशाला का आयोजन किया गया. कार्यशाला में भाग लेने एवं एनईपी के पहलू पर शिक्षक व विद्यार्थी दोनों का मार्ग दर्शन करने के उद्देश्य से दूसरे प्रदेशों से आए शिक्षाविदों व विशेषज्ञों ने सर्वप्रथम बुनियादी पहलू यथा अध्ययन-अध्यापन समेत शिक्षा का सार बताया.

कोलकाता के कैम्ब्रिज पब्लिकेशन्स से आईं कोयल मुखर्जी ने श्रृंगार रस के अंदाज में व्याख्या करते हुए कहा कि शिक्षा संसार का श्रृंगार है और शिक्षक ही इसके सच्चे श्रृंगारक हैं. उन्होंने अध्ययन-अध्यापन का भावार्थ बताते हुए कहा कि अध्ययन में जो रुचि ला दे,अध्यापक उसको कहते है. कहा कि शिक्षा दान में भी कई पहलू जुड़े होते हैं व अध्यापन के क्रम में एक शिक्षक को हर तरह के बुद्धि-विवेक व विविध मस्तिष्क क्षमता वाले विद्यार्थियों को हैंडल करना होता है. जो खेल-खेल में पढ़ाई रच कमजोर बच्चों को विचारवान बना दे. और जो बच्चे पढ़ाई से दूर भागें उन्हें उन्हीं की इच्छा व सोच के अनुरूप ढ़ाल कर एक सशक्त समाज की परिकल्पना को मूर्त रूप प्रदान कर दे, शिक्षक उसको कहते हैं.

दूसरे शब्दों में जो हर नामुमकिन को मुमकिन बना दे तथा अपनी रोचक शैली से कक्षा में नटखट बच्चे को भी शांत चित्त में परिवर्तित कर उसमें शिक्षा की ललक पैदा कर दे,शिक्षक उसको कहते हैं. कहा,प्यार,दुलार, प्रज्ञा के साथ हर बच्चे को आगे बढ़ाया जा सकता है. यह कार्य कठिन तो अवश्य है पर असंभव कतई नहीं. श्रीमति मुखर्जी द्वारा अभिव्यक्त शिक्षण कौशल की उक्त व्याख्या से अभिभूत विद्यालय परिवार ने इस हेतुक उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त की. स्कूल निदेशक ई.एम.अख्तर ने भी कहा कि हर बच्चा अद्भुत है. जरूरत होती है एक कुंभकार या शिल्पकार की भांति उसकी प्रतिभा को शिक्षा के जरिए श्रेष्ठतम रूप प्रदान कर राष्ट्र का शिल्पी बनाने की. प्राचार्य विष्णु शर्मा ने कहा कि विषमतम स्थिति को भी सरलतम बना विद्यार्थियों को देश व समाज का गौरव बनाना हम शिक्षकों का परम पुनीत दायित्व है. शैक्षणिक रांति का सूत्रधार युग-युगांतर से शिक्षक ही रहा है. कहा,कालिदास व शेक्सपियर जैसे कवि,वाल्मीकि, वशिष्ठ जैसे मुनि,सीता व सावित्री जैसी श्रेष्ठ माताएं इसकी मिसाल रही है जो भारत समेत संपूर्ण विश्व को समवेत रूपेण सुखद अनुभूति कराती रही है.

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