नालंदा न्यूज़: बेरहम मौसम कहर बरपा रहा है. आषाढ़ के बाद आधा सावन खत्म हो गया है. विडंबना, जिले की छोटी-बड़ी 39 नदियों की प्यास नहीं बुझी है. पानी का एक कतरा नहीं है. कतरीसराय इलाके से गुजरने वाली सकरी नदी में दो सप्ताह पहले दो फीट पानी आया था. वह भी महज दो दिन में धरती के गर्व में समा गया. वर्तमान स्थिति ऐसी कि जिन नदियों में लबालब पानी रहना चाहिए, उसमें धूल उड़ रही है.
नदियों में पानी नहीं आने से जिले की 10 से ज्यादा सिंचाई परियोजनाएं धरती की प्यास बुझाने में नाकाम हो रही है. किसानों का कहना है कि अबतक मौसम का जो मिजाज रहा है, उससे नालंदा में सूखे की स्थिति बनती जा रही है. इतना ही नहीं पिछले साल की याद भी ताजा हो रही है. बीते साल सिर्फ जिराइन, लोकाइन और गोइवा नदी में पानी आया था. जिले की सभी नदियों का जलस्रोत पड़ोसी राज्य झारखंड से जुड़ा है. कोडरमा के जंगलों में बारिश होती है तो यहां की नदियों का जलस्तर बढ़ता है. सकरी नदी में झारखंड से नवादा होते हुए पानी आता है. यह नदी अस्थावां इलाके में आकर जिराइन में मिल जाती है. जबकि, गया-जहानाबाद से होकर गुजरने वाली फल्गु से लोकाइन में पानी आता है. इससे इसकी सहायक नदियां भूतही, चिड़ैंया, धोवा व अन्य नदियां लबालब होती हैं. जबकि, झारखंड के पानी से ही पैमार, पंचाने, गोइठवा आदि नदियों की प्यास बुझती है.
रोपनी की आस में सूखने लगे बिचड़े नदियां सूखी हैं. बारिश हो नहीं रही है. मोटर के बूते धनरोपनी करने की हिम्मत किसान जुटा नहीं पा रहे है. नौबत, यह कि अब रोपनी के इंतजार में तैयार बिचड़े सूखने लगे हैं. सरदार बिगहा के किसान धनंजय कुमार, हरनौत के चन्द्रउदय कुमार, चंडी के अनिल कुमार, नूरसराय के संजीव कुमार कहते हैं कि हर दो दिन पर बिचड़े की सिंचाई करनी पड़ती है. बावजूद, तीखी धूप पौधों से हरियाली निचोड़ लेती है. समस्या यह भी कि जलस्तर में गिरावट के कारण पुरानी बोरिंग पानी उगलने में फेल हो गयी हैं.