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पटना (आईएएनएस)| अगले साल होन वाले लोकसभा चुनाव को लेकर बिहार में करीब-करीब सभी पार्टियों ने अपनी तैयारी शुरू कर दी है, लेकिन कांग्रेस अभी अपनी प्रदेश समिति नहीं बना सकी है। कहा जा रहा है कि पार्टी के अंदर खींचतान मची है, जिस कारण समिति बनने में देर हो रही है। करीब पांच महीने पहले कांग्रेस आलाकमान ने अखिलेश प्रसाद सिंह को प्रदेश की कमान थमाकर इसके संकेत दिए थे कि कांग्रेस राज्य में अपनी खोई जमीन फिर से पाने की कवायद शुरू कर दी है। लेकिन कमिटी का गठन नहीं होने के कारण कांग्रेस में गुटबाजी को फिर से हवा मिलने लगी है।
कांग्रेस के एक नेता ने कहा कि सिंह के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद प्रदेश स्तर पर कार्यक्रम हो रहे हैं और पार्टी की सक्रियता भी बढ़ी है। वैसे, कहा यह भी जा रहा है कि पार्टी में कमिटी बनाना इतना आसान भी नहीं है। पार्टी के नेता भी मानते हैं कि कांग्रेस कमिटी में जगह पाने के लिए युवा तो लालायित हैं ही, कई 70 वर्ष पार कर गए बुजुर्ग भी कमिटी में स्थान पाने की कोशिश में हैं।
उल्लेखनीय है कि निवर्तमान प्रदेश अध्यक्ष मदन मोहन झा भी चार साल में प्रदेश कमिटी का गठन नहीं कर सके। अखिलेश सिंह के अध्यक्ष बने भी करीब पांच माह हो गए, लेकिन ये भी संगठन नहीं खड़ा कर सके।
कहा जा रहा है कि बिहार प्रभारी भक्त चरण दास और प्रदेश अध्यक्ष के रिश्ते सही नहीं हैं। हालांकि कांग्रेस के नेता इसे स्वीकारते नहीं हैं। पूर्व विधायक नरेंद्र कुमार कहते हैं कि कांग्रेस में कहीं कोई गुटबंदी और मतभेद नहीं है। उन्होंने कहा कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव को लेकर नेताओं की व्यस्तता है, इस कारण कमिटी के गठन में कुछ समय गुजर रहा है।
वैसे, अखिलेश प्रसाद सिंह के अध्यक्ष बनने के बाद भी कांग्रेस में दबी जुबान आलोचना शुरू हो गई थी। कई नेता राजद से आए अखिलेश प्रसाद सिंह को अध्यक्ष बनाए जाने से नाराज हैं। ऐसे नेताओं का कहना है कि कांग्रेस में कई कद्दावर नेता थे, फिर दूसरे दल से आने वाले को प्रदेश की बागडार देना समझ से परे हैं।
कांग्रेस के नेता खुलकर गुटबाजी को लेकर मुंह नहीं खोल पा रहे हैं, लेकिन अंदरखाने में यह गुटबंदी साफ दिख रही है। जहां सभी दल जहां चुनावी तैयारी में जुटे हैं, वहीं कांग्रेस में अभी कमिटी को लेकर ही संशय है। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि पार्टी हाल में अपनी खोई जमीन तलाश ले इसके आसार कम ही हैं।
--आईएएनएस
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