मरीजों की बढ़ सकती है मुसीबत, टीबी की दवाइयों का भंडार खत्म
पटना: राज्यभर में टीबी मरीजों को दवा की कमी का सामना करना पड़ रहा है. उन्हें सरकार की ओर से मिलने वाली नि:शुल्क दवाइयों की पूरी खुराक नहीं मिल रही है. कुछ स्थानों पर मिल भी रही है तो वह भी सीमित मात्रा में है. राज्यभर के दवा भंडारों में टीबी की पहली और दूसरी लाइन की दवाइयां लगभग खत्म हो गई है. इससे एक ओर एमडीआर और डीआर टीबी मरीजों की मुसीबत बढ़ गई है, वहीं बड़ी संख्या में सामान्य टीबी मरीजों का एमडीआर और डीआर टीबी से ग्रसित होने की आशंका बढ़ गई है. राज्य टीबी कार्यालय और अलग-अलग अस्पतालों तथा टीबी से ग्रसित मरीजों से मिली जानकारी के मुताबिक केंद्र से दवाइयों की आपूर्ति बाधित हुई है. केंद्र ने कई माह पहले ही राज्यों को टीबी से संबंधित दवाओं की व्यवस्था करने की सलाह दी थी. राज्य टीबी अधिकारी (एसटीओ) डॉ. बीके मिश्रा ने बताया कि कोरोना काल का साइड इफेक्ट टीबी मरीजों की दवा पर पड़ा है. कोरोना काल में लगातार दो सालों तक टीबी की दवा बनाने वाली कंपनियों को ऑर्डर नहीं गया था. पहले से स्टॉक में बची दवाइयां अब समाप्त हो गई हैं. एक बार ऑर्डर देने पर उसके निर्माण और आपूर्ति होने की पूरी प्रक्रिया में एक से दो साल का समय लग जाता है. बताया कि ऐसी परेशानी से बिहार समेत अन्य राज्य भी जूझ रहे हैं.
मई के दूसरे सप्ताह तक ऐसी परेशानी बनी रह सकती है. इसके बाद दवा की आपूर्ति सुचारू रूप से होने की उम्मीद है. फर्स्ट लाइन की दवा जिसे फर्स्ट डोज कॉम्बिनेशन कहा जाता है. डीएसटीबी आईपी (व्यस्क) इसमें आइसोनियाजिड, रेफाम्पिसिन, पायराजिनामाइड और ईथाम्बुटॉल जैसी चार दवाओं का मिश्रण रहता है. दूसरी दवा 3 एफडीसी फर्स्ट लाइन की दवा डीएसटीबी सीपी (व्यस्क) में तीन दवाओं का मिश्रण आइसोनियाजिड, रेफाम्पिसिन और ईथाम्बुटॉल रहता है. सरकारी अस्पतालों में सरकार की ओर से दी जानेवाली इन दवाइयों में तीन या चार दवाइयों का एकसाथ मिश्रण रहता है, लेकिन बाहर दवा दुकानों में ये दवाइयां अलग-अलग मिलती हैं.