बिहार

जिले में पेड़ तो लगे पर नहीं बढ़ पाई है हरियाली

Shreya
10 Aug 2023 10:42 AM GMT
जिले में पेड़ तो लगे पर नहीं बढ़ पाई है हरियाली
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दरभंगा: जिले में पेड़ लगी पर हरियाली नहीं बढ़ पाई. इसके लिए सबसे बड़ी वजह पौधे को बचाने में प्रशासन और पब्लिक की दिलचस्पी नहीं होना है.

पर्यावरणविद भी कहते हैं कि पौधे लगाने पर जितने खर्च किए जाते उतना उसकी देखभाल पर ध्यान नहीं दिया जाता. अगर खर्च की तरह देखभाल भी ध्यान दिया जाता तो पौधे लगाए जाने वाले क्षेत्र में हरियाली जरूर दिखती. अब जिला मुख्यालय को ही लीजिए. यहां हवाई अड्डे के पास वन विभाग की पौधशाला है. पौधशाला में पौधे सींचते कुछ महिला और पुरूष नजर आते रहते हैं. लेकिन उस पौधशाला से बाहर निकलते हरियाली नदारद नजर आती है. सड़क किनारे लगे वन विभाग के बांस के घेरे में कई जगह नए पौधे भी सूखे नजर आते हैं. हवाई अड्डे के पास लगे पौधे तो नाले की पानी के निकासी दौरान लगभग सुख ही गये हैं.

कुछ ऐसा ही हाल शहर के अन्य जगहों के अलावा ग्रामीण इलाकों में भी नजर आता है. सूत्रों की माने तो वन विभाग के पास देखभाल करने वाले कर्मियों का टोटा भी हो गया है. जिससे पौधे की सही तरीके से देखभाल नहीं हो पा रही है. उधर 15 साल पुराने सड़कों पर दौड़ रहे वाहन वातावरण में जहरीली गैस बिखेड़ रहे हैं. हर जगह सड़कों के किनारे पौधे नहीं लगे हैं. वन विभाग का कहना हैं कि जल जीवन हरियाली योजना के तहत पौधरोपण कार्य किए जाने से वातावरण में हरियाली आई है.

1680 स्कवायर किमी में फैला है वन क्षेत्र सहरसा जिले में 1680 स्कवायर किमी में वन क्षेत्र फैला है. जिसमें पिछले साल वन विभाग के द्वारा करीब 53 हजार पौधे लगाने की बात कही जा रही है.

वैज्ञानिकों की राय में समय पर खाद डालना जरूरी अगवानपुर कृषि केंद्र के वैज्ञानिक संतोष कुमार कहते हैं जल जीवन हरियाली के तहत बड़े पैमाने पर पौधरोपण सरकार का सही कदम है. इसके तहत पौधरोपण से वातावरण में कुछ हरियाली आई है. जरूरी है कि युद्धस्तर पर पौधरोपण का कार्य किया जाय.

वहीं समय-समय पर खाद डालकर पौधे की हरियाली को बरकरार रखा जाय. समय-समय पर खाद नहीं डालने और मेंटेन कर रखने की कमी से ही पौधे धीरे-धीरे सुख जाती है. वातावरण में हरियाली नहीं दिखने की इसे वजह माना जा सकता है. कृषि वैज्ञानिक बिमलेश पांडे का कहना है कि फ्यूल कम जलेगा तो वातावरण में प्रदूषण कम फैलेगा.

इस कारण बिना जुताई के बीज की बुआई पर फोकस किया जा रहा है. इससे कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन कम होगा. डाय एंड वेट विधि से मिथेन का उत्सर्जन कम होगा. खेत में अधिक पानी नहीं लगेगा तो मिथेन का उत्सर्जन कम होगा.

पर्यावरणविद की राय में जंगल कटाओ वन बचाओ नीति घातक पर्यावरणविद की राय में जंगल कटाओ वन बचाओ की सरकारी नीति घातक है. पर्यावरणविद भगवानजी पाठक कहते हैं कि सरकार की जंगल कटाओ और वन बचाओ नीति कभी भी पृथ्वी पर हरियाली नहीं लाने देगी. वहीं यूकेलिप्टस, पाम टी जैसे लगाए जाने वाले पौधे अधिक पानी खींचने की वजह से दूसरे पौधे को बढ़ने नहीं देंगे. ऐसे में हरियाली कहां से आएगी. दुर्भाग्य यह है कि वायु प्रदूषण मापने की यहां व्यवस्था भी नहीं है. संजय कहते हैं कि वर्ष 2008 में आयी बाढ़ जिसे कुशहा त्रासदी के नाम से जाना जाता है उसके बाद सहरसा जिले का काफी तेजी से विकास हुआ. गांव से लेकर शहर तक हर इलाके में बड़े-बड़े मकान बनते देखे जा सकते हैं. बढ़ती जनसंख्या से हरियाली समाप्त हो रही है. हर रोज शहर में दो पहिया व चार पहिया वाहनों की बिक्री बढ़ रही है.

हालांकि जिले में कोई बड़ी फैक्ट्री नहीं है लेकिन पेट्रोलियम पदार्थों से चलने वाले वाहन वायु प्रदूषण को बढ़ा रहे हैं. निर्माण कार्यों की वजह से भी वायु प्रदूषण फैल रहा है. वहीं शहर में स्थित गंगजला रैक प्वाइंट पर उतरते बालू, गिट्टी, सीमेंट जैसी सामग्री वातावरण में धूलकण फैला रही है. जो स्वास्थ्य और हरियाली के लिए खतरनाक है.

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