बिहार Bihar: पटना जू में सामान्य रंग के साथ सफेद बाघ दर्शकों के आकर्षण का केंद्र हैं। आज सोमवार को अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस International Tiger Day है। यह दिवस बाघों के संरक्षण के लिए मनाया जाता है। बाघों के संरक्षण की बात की जाए तो पटना जू का सबसे बड़ा उदाहरण है। यहां बाघों के जन्म के लिए बेहतर और उपयुक्त स्थान है। जू के निदेशक सत्यजीत कुमार के निर्देश पर कस्टमर रेंजर आनंद कुमार स्वयं वयोवृद्ध-प्राणियों की देखभाल में तत्पर रहते हैं। 2022 में चार बाघ शावक का जन्म हुआ। इनमें से तीन शवाक आज युवा राज्य में हैं। ये जू की शान हैं। जल्द ही जू में बाघों का नया केज तैयार होगा।पटना के संजय गांधी जैविक उद्यान में बाघों का इतिहास लगभग 5 दशक पुराना है। पटना जू में पहली बार नर बाघ को दिल्ली से लाया गया था। 1975 में इस नर बाघ का नाम मोती बताया गया। इसके बाद 1980 में बाघिन फौजी और बुलबोरानी असम में आ गये। इसके बाद इस जू में बाघ संरक्षण और जन्म की शुरुआत हुई। तीन साल बाद पटना जू में साल 1983 में शावक गीता (मादा) का जन्म हुआ। इसके बाद उसी साल शावक रैकी (मादा) और मोना (नर) का जन्म हुआ। इसके बाद लगातार कई सारे बाघों का जन्म हुआ।
हरनाटाड़ Harnatad (पश्चिमी हिमाचल प्रदेश) बाघों की संख्या छह गुना है। बेहतर, संतुलित और हरियाली के साथ सब्जी की खेती से यह संभव हो सकता है। शावक संग बाघों की संख्या 60 से अधिक पहुंच गई है। नर-मादा बाघों की संख्या 54 और शावकों की संख्या भी करीब 10 से 12 है। 2006-10 तक बाघों की संख्या 10 थी। 2014-18 में 32 और 2018-22 में बाघों की संख्या 54 तक पहुंच गई।विश्व भर में हर साल 29 जुलाई को अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस मनाया जाता है। इस दिन का मुख्य उद्देश्य वैश्विक स्तर पर बाघों की रक्षा करना और उनके प्राकृतिक आवासों की रक्षा करना और संरक्षण करना है। लोगों को इसके लिए सलाह दी जाती है। बाघ की दुकान को विलुप्त होने से बचाना हमारी जिम्मेदारी है।आज अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस है। बिहार के लिए यह खबर अच्छी खबर है। राज्य में बाघों की संख्या में काफी अंतर हो रहा है। पटना जू में बाघों का कुनाबा लगातार बढ़ रहा है। दो साल में संख्या नौ हो गई। दो राजगीर भेजे गए और सात पटना जू की शोभा बढ़ाई जा रही है। इसमें तीन नर और चार मैडम हैं। वाल्मिकीनगर स्थित टाइगर रिजर्व में दो बाघों की संख्या दो गुना 60 तक पहुंच गई है।