दिल्ली: लंबे समय से बिहार समेत देश के कई राज्यों में जातीय जनगणना की मांग हो रही थी। 2011 में जब जनगणना हुई थी, तब भी जातीय आधार पर रिपोर्ट तैयार हुई थी। हालांकि, इसे जारी नहीं किया गया था। बिहार से पहले राजस्थान और कर्नाटक में भी जातीय जनगणना हो चुकी है।
बिहार में भी सात जनवरी से जनगणना शुरू हुई है। हालांकि, इसके खिलाफ हिंदू सेना ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी थी। इसमें जातीय जनगणना पर रोक लगाने की मांग हुई थी। जिसे आज कोर्ट ने खारिज कर दिया। खैर, आइए जानते हैं कि बिहार में हो रही जातीय जनगणना कैसे होगी? कैसे पता चलेगा कि किस जाति के कितने लोग हैं? मकानों की गिनती कैसे होगी?
क्यों हो रही है जातीय जनगणना?
दरअसल, बिहार में राजनीतिक दलों ने जातीय जनगणना की लंबे समय से मांग कर रखी थी। राजनीतिक दलों का कहना है कि इससे दलित, पिछड़ों की सही संख्या मालूम चलेगी और उन्हें इसके अनुसार आगे बढ़ाया जा सकेगा। जातीय जनसंख्या के अनुसार ही राज्य में योजनाएं बनाई जाएंगी।
18 फरवरी 2019 और फिर 27 फरवरी 2020 को बिहार विधानसभा और विधान परिषद में जातीय जनगणना कराने से संबंधित प्रस्ताव पेश किया गया था। इसे भाजपा, राजद, जदयू समेत सभी दलों ने समर्थन दे दिया था। हालांकि, केंद्र सरकार इसके खिलाफ थी।
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा था कि जातीय जनगणना नहीं होनी चाहिए। केंद्र का कहना था कि जातियों की गिनती करना लंबा और कठिन काम है। हालांकि, इसके बावजूद नीतीश कुमार की सरकार ने जातीय जनगणना कराने का एलान कर दिया था। बिहार सरकार ने इस साल मई तक यह काम पूरा करने का दावा किया है।
पहले चरण में कैसे मकानों की गिनती होगी?
पहले चरण में लोगों के घरों की गिनती शुरू की गई है। इसकी शुरुआत पटना के वीआईपी इलाकों से हुई है। अभी तक राज्य सरकार की तरफ से मकानों को कोई नंबर नहीं दिया गया है। वोटर आईकार्ड में अलग, नगर निगम के होल्डिंग में अलग नंबर हैं। पंचायत स्तर पर मकानों की कोई नंबरिंग ही नहीं है।
शहरी क्षेत्र में कुछ मोहल्लों में मकानों की नंबरिंग है भी तो वह हाउसिंग सोसायटी की ओर से दी गई है, न कि सरकार की ओर से। अब सरकारी स्तर पर मकानों को नंबर दिया जा रहा है। इस चरण में सभी मकानों को स्थायी नंबर
दिया जाएगा।
दूसरे चरण में आर्थिक और जातीय जनगणना होगी
दूसरे चरण में जाति और आर्थिक जनगणना का काम होगा। इसमें लोगों के शिक्षा का स्तर, नौकरी (प्राइवेट, सरकारी, गजटेड, नॉन-गजटेड आदि), गाड़ी (कैटगरी), मोबाइल, किस काम में दक्षता है, आय के अन्य साधन, परिवार में कितने कमाने वाले सदस्य हैं, एक व्यक्ति पर कितने आश्रित हैं, मूल जाति, उप जाति, उप की उपजाति, गांव में जातियों की संख्या, जाति प्रमाण पत्र से जुड़े सवाल पूछे जाएंगे।
जातीय और आर्थिक जनगणना से जुड़ी अन्य खास बातें
जातीय और आर्थिक जनगणना कराने की जिम्मेदारी बिहार के सामान्य प्रशासन विभाग को दी गई है।
जिला स्तर पर डीएम इसके नोडल पदाधिकारी नियुक्त किए गए हैं।
जातीय गणना के लिए 500 करोड़ रुपये के खर्च का अनुमान है। यह बढ़ भी सकता है।
आजादी के बाद पहली बार 1951 में जनगणना हुई थी।