बिहार

'मनरेगा' के तहत बेरोजगारों के ल‍िए सहारा बने बिहार-तमिलनाडु समेत ये पांच राज्‍य

Kunti Dhruw
21 Feb 2022 8:14 AM GMT
मनरेगा के तहत बेरोजगारों के ल‍िए सहारा बने बिहार-तमिलनाडु समेत ये पांच राज्‍य
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भारत में कोरोना महामारी की वजह से पांच बड़े राज्यों में नौकरियों की मांग बढ़ी है.

भारत में कोरोना महामारी (Covid-19 Pandemic) की वजह से पांच बड़े राज्यों में नौकरियों की मांग बढ़ी है. इनमें से चार राज्‍य ऐसे हैं, जहां प्रवासी मजदूरों की संख्‍या सबसे ज्‍यादा है. इन पांच राज्‍यों ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGS) के तहत महामारी वाले वर्ष से पहले की तुलना में अधिक पैसा खर्च किया है. मनरेगा को इस वर्ष 73,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए है, जो दुनिया की सबसे बड़ी गारंटीकृत रोजगार योजना (Guaranteed Employment Scheme) है. इसके तहत हर ग्रामीण परिवार को सालाना कम से कम 100 दिन का काम प्रदान किया जाता है. इस योजना के तहत 94,994 करोड़ रुपये पहले ही खर्च किए जा चुके हैं.

बिहार ने 2019-20 में 3,371 करोड़ की तुलना में इस साल मनरेगा योजना के तहत 5,771 करोड़ खर्च किए थे. बिहार में 2020 में कोविड-19 महामारी की पहली लहर के दौरान सबसे बड़ी संख्या में प्रवासी कामगार लौटे थे. इसके अलावा मध्य प्रदेश ने मनरेगा के तहत 2019-20 में 4,949 करोड़ रुपये खर्च किए थे और इस साल उसने अब तक 7,354 करोड़ रुपये खर्च किए हैं, जो 32% ज्‍यादा है. बात करें ओडिशा की तो उसने 2019-20 में 2,836 करोड़ की तुलना में इस साल 5,375 करोड़ खर्च किए. पश्चिम बंगाल ने 2019-20 में 7,480 करोड़ रुपये खर्च किए जबकि इस साल 10,118 करोड़ रुपये खर्च किए हैं. वहीं, तमिलनाडु ने 2019-20 में 5,621 करोड़ की तुलना में इस साल 8,961 करोड़ खर्च किए हैं.

ग्रामीण विकास मंत्रालय के पास बचा सीमित धन
इस साल मनरेगा की नौकरियों में अप्रत्याशित उछाल के बाद ग्रामीण विकास मंत्रालय के पास इस साल के लिए सीमित धन बचा है. विशेषज्ञों ने इस वित्तीय वर्ष की शुरुआत में अर्थव्यवस्था के धीमे होने और महामारी की दूसरी लहर की मांग को काफी हद तक जिम्मेदार ठहराया है. अधिकारियों को उम्मीद है कि स्थिति स्थिर होगी और अधिक लोग बेहतर नौकरियों के लिए बड़े शहरों में लौटेंगे.

'मनरेगा स्‍कीम स्‍थायी समाधान नहीं होनी चाह‍िए'
एक सरकारी अधिकारी ने कहा, 'मनरेगा ने बहुत ही चुनौतीपूर्ण समय के दौरान ग्रामीण गरीबों को ठोस सहायता प्रदान की है. लेकिन योजना स्थायी समाधान नहीं होनी चाहिए. संकट की स्थिति में यह अंतिम उपाय है. हम सभी चाहते हैं कि ग्रामीण अधिक से अधिक कमाएं और बेहतर मजदूरी दर प्रदान करने वाली बेहतर जगहों पर काम करें.' बता दें कि किसी भी राज्य ने मनरेगा के तहत खर्च को असामान्य रूप से उच्च स्तर पर नहीं पहुंचाया है, जब लाखों प्रवासी श्रमिक 2020 में महामारी की पहली लहर के बीच अपने घरों को लौट आए थे. सरकार ने तब योजना पर 1.1 लाख करोड़ खर्च किए थे.


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