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बिहार। उत्सव से जीवन में उत्साह का संचार होता है. उत्साहहीन व्यक्ति जीवन के हर कार्य में असफल होता है . निराशा उसके जीवन को घेर लेती है , जिससे वह उदास और हताश घूमता रहता है. पर्व,त्योहार और उत्सव हमारे जीवन को ़खुशियों से तो भरते ही है, उत्साह का संचार कर देते हैं.उत्सव से जीवन को नई ऊर्जा मिलती है. उक्त बातें अयोध्या से पधारे जगद्गुरू प्रपन्नाचार्य रत्नेश जी महाराज ने कही.
वे की शाम हनुमान जयंती महोत्सव के छठी के मौके पर प्रखण्ड के समहुता गांव में चल रहे प्रवचन के दौरान जीवन के मूल मंत्र को बता रहे थे. उन्होंने कहा कि जिस समय संसार में दुराचार, दुर्विचार का चारों तऱफ प्रसार होने लगता है, अहिंसा, सत्य, धैर्य, न्याय आदि मानवोचित सद्गुणों का अपमान होने लगता है. दम्भ का ही साम्राज्य व वेद-शास्त्रत्तेक्त धर्म का विलोप होने लगता है. दैत्य-दानवों या दैत्यप्राय कुपुरुषों से धरा व्याकुल हो जाती है.
सत्पुरुष तथा देवगण अनीति से उद्विग्न हो उठते हैं, उस समय सर्वपालक भगवान किसी रूप में प्रकट होकर श्रुति-सेतु का पालन करते हैं और अपने मनोहर, मंगलमय, परम पवित्र चरित्रों का विस्तार करके प्राणियों के लिये मोक्ष का मार्ग प्रशस्त कर देते हैं. इन्हीं सब भावों को लेकर मधुमास के शुक्लपक्ष की नवमी को मर्यादा-पुरुषोत्तम श्रीभगवान रामचन्द्र का जन्म हुआ. उन्होंने कहा कि आप दूसरों के प्रति हमेशा दयालु, विनम्र और क्षमाशील बनें. आध्यात्मिकता का सार अपने स्वभाव में जीना है, आध्यात्मिक व्यक्ति वह है जो देवत्व से भरा है . विनम्रता मानव आचरण का एक भाव है जिससे सुसंस्कृत व्यक्ति की पहचान होती है

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