मुंगेर न्यूज़: मुंगेर में एक बार फिर से शीतलहर के चलने की आशंका है. ऐसे में तापमान में अत्यधिक गिरावट एवं वायुमंडल में आद्रता की अधिकता के कारण आलू की फसल में झुलसा रोग के लगने की संभावना बढ़ गई है. यह बात झुलसा रोग से बचाव संबंधी सुझाव जारी करते हुए पौधा संरक्षण विभाग के सहायक निदेशक श्याम नंदन कुमार ने कहा. श्री कुमार ने इस रोग के संबंध में बताया कि, यह फफूंद जनित रोग है, जो दो प्रकार की होती है- अगात झुलसा एवं पिछात झुलसा. अगात झुलसा में पत्तियों पर भूरे रंग का सर्वप्रथम कान्सेंट्रिक रिंगनुमा गोल धब्बा बनता है. इसके बाद इन धब्बों के बढ़ जाने से आलू की पत्तियां झूलस जाती हैं एवं पौधे सूख जाते हैं. इस रोग का आलू की फसल पर आक्रमण प्राय जनवरी के दूसरे या तीसरे सप्ताह में होता है. वहीं, पिछात झुलसा में पत्तियां किनारे से सूखती हैं, जो गहरे भूरे रंग का होता है.
सुबह में आक्रांत भाग की निचली सतह पर उजला रंग का फफूंद नजर आता है. पत्तियों को रगड़ने पर खड़- खड़ाहट का अनुभव होता है. इस रोग को चक्रवृद्धि ब्याज रोग भी कहते हैं. यह रोग अत्यधिक कम तापमान एवं आद्रता की स्थिति में तेजी से फैलता है.
बचाव को छिड़काव जरूरी
रोग से बचाव के लिए सर्वप्रथम खेत को साफ-सुथरा रखें एवं लगातार निरीक्षण करते रहें. इसके बाद मैंकोज़ेब 75 घुलनशील चूर्ण का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करें. यदि आलू की फसल में रोग के लक्षण दिखाई देने लगे हों तो मैनकोज़ेब एवं मेटालैक्सील अथवा कार्बेंडाजिम एवं मैंकोज़ेब के संयुक्त उत्पाद का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें.