गया न्यूज़: बेटों की चाहत में बिहार की प्रजनन दर तेजी से कम नहीं हो पा रही है. सरकार के अथक प्रयास से प्रजनन दर चार के बदले तीन पर तो आ गई. लेकिन अगर बेटों की चाहत नहीं होती तो यह घटकर 2.3 पर आ सकती थी. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे रिपोर्ट (5) के अनुसार बिहार में 31 फीसदी महिलाएं व 22 फीसदी पुरुष बेटी की जगह बेटा चाहते हैं. जिन्हें दो बेटियां हो जाती हैं, उनमें 70 फीसदी दंपती बेटे की चाहत में और संतान की इच्छा रखते हैं. जबकि 91 फीसदी महिलाएं कम से कम एक बेटा चाहती हैं तो 85 फीसदी पुरुष कम से कम एक बेटे की इच्छा रखते हैं.
दरअसल, परिवार नियोजन को लेकर सरकार की ओर से कई प्रयास किए जा रहे हैं. इस महीने परिवार नियोजन पखवाड़ा भी मनाया जा रहा है. लोगों को जागरूक किया जा रहा है. सरकार के प्रयास का परिणाम भी सकारात्मक आया है लेकिन अब भी वह उतना प्रभावी नहीं है, जितना होना चाहिए. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण(एनएफएचएस)-3 के अनुसार राज्य की कुल प्रजनन दर 4 थी, जो एनएफएचएस -4 में घटकर 3.4 हुई. वहीं, एनएफएचएस -5 के अनुसार बिहार की प्रजनन दर 3 तक आ गई. अगर अनियोजित गर्भधारण को कम करने में अधिक सफलता मिलती तो बिहार की प्रजनन दर तीन की जगह 2.3 होती. रिपोर्ट के अनुसार इसका मूल कारण लोगों में बेटियों के बदले बेटों की चाहत भारी पड़ रही है. इसलिए राज्य के लिए अब भी प्रजनन दर को कम करना एक बड़ी चुनौती है. एक महिला अपने गर्भधारण अवधि यानि 15 से 49 साल की आयु में औसतन जितने बच्चे को जन्म देती है, उसे कुल प्रजनन दर कहा जाता है.
दो बेटों के बाद 83 महिलाएं अगली संतान नहीं चाहतीं
एनएफएचएस -5 की रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करती है कि महिला के लिए अधिक संतान जन्म की इच्छा इस बात पर निर्भर करती है कि वर्तमान में उन्हें कितने बेटे हैं. बिहार में 83 फीसदी महिला अगली संतान नहीं चाहती हैं, जिन्हें 2 बेटा हो चुका हो. एनएफएचएस-4 की तुलना में ऐसी महिलाओं में 9 फीसदी की बढ़ोतरी हुयी है. वहीं, 73 फीसदी महिलाएं अगली संतान नहीं चाहती हैं, अगर उन्हें एक बेटा है. इसमें भी एनएफएचएस-4 की तुलना में 11 फीसदी की बढ़ोतरी हुयी है. जबकि 70 फीसदी महिलाएं अब भी अगली संतान की चाह रखती हैं जिन्हें सिर्फ 2 बेटी है. एनएफएचएस-4 की तुलना में भी इसमें 5 ़फीसदी की बढ़ोतरी हुयी है.