बिहार

गंडक नदी के तांडव ने अपनों और कुनबो से किया अलग, कई जमींदार परिवार को बना दिया मजदूर

Renuka Sahu
20 Jun 2022 5:43 AM GMT
The orgy of the river Gandak separated from loved ones and families, made many landlord families a laborer
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फाइल फोटो 

किसानों के चेहरे पर मुस्कान बिखेरनी वाली सदानिरा गंडक जब तांडव शुरू करती है तो फिर राजा को रंक बना देती है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। किसानों के चेहरे पर मुस्कान बिखेरनी वाली सदानिरा गंडक जब तांडव शुरू करती है तो फिर राजा को रंक बना देती है। सफल किसान और जमींदार को मजदूरी करने को विवश कर देती है। इसका जीता जागता उदाहरण हैं र्भुइंधरवा, मच्छहा और चिलवनिया गांव के दर्जन भर लोग। जिन्होंने एक दो बार नही अपितु तीन - तीन बार गंडक के कहर को झेला है, और नए सिरे से जिंदगी की शुरुआत की। जब भी लगा की अब सारी समस्याएं समाप्त होने को है गंडक ने फिर अपना रौद्र रूप दिखाया।

70 वर्षीय चिलवनिया में रह रहे महेश यादव ने बताया की उनके पास 45 बीघा खेती योग्य जमीन थी। तब वे लेदी हरवा में रहा करते थे। सुख चैन की जिंदगी थी। छह दशक पूर्व गंडक के कहर के कारण सारी जमीन नदी में चली गई। देखते ही देखते सारा सुख चैन समाप्त हो गया। लेदिहरवा से उजड़ने के बाद प्रेमही में नया बसेरा बनाया। पहले घास फूस से झोपड़ी बनाई फिर उसको रहने लायक घर बनाया। यही सब करने में तीन चार साल लग गए। ठीक छह साल में गंडक ने एक बार फिर रौद्र रूप दिखाया और सब कुछ तबाह कर के चला गया। अब तो मजदूरी करके ही अपने घर का खर्च चलाना पड़ रहा है। 85 वर्षीय मंगल आज भी उन दिनों को याद करके अतीत में खो जाते हैं। उन्होंने बताया की सन 78 के पहले के दिन भी क्या थे, लेकिन गंडक के कहर ने सब कुछ तहस नहस कर दिया। राजा को गरीब बना दिया, कुछ भी नही छोड़ा। आनन फानन में गांव को छोड़ कर जाना पड़ा। किसी प्रकार झोपड़ी का छप्पर ही उजाड़ कर ले आ पाए थे।
1978 में शुरू हुआ सिलसिला अब भी है जारी
मोहन कुमार विश्वास, राजन यादव आदि ने बताया की भितहा के लेदीहरवा को 1978 में गंडक ने काट लिया था। लोगों ने प्रेमही और झकनही में शरण लिया। छह वर्ष बाद 1984 में गंडक ने प्रेमही को भी अपने आगोश में ले लिया। उसके बाद लोगो ने डीही पकड़ी गांव में आशियाना बनाया था। ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था। 1999- 2000 में लोगो के आशियाना को एक बार फिर से गंडक ने उजाड़ दिया। तब जाकर लोगो ने भुईधरवा, मच्छहा और चिलवानिया में घर बनाया।
तीन बार नदी ने उजाड़ा फिर भी जिजीविषा
सदानीरा गंडक ने लेदीहरवा के लोगो को तीन बार उजाड़ा। हर बार यहां के लोगो ने अपनी जिजीविषा का परिचय दिया और नई शुरुआत की। स्थानीय राकेश कुमार, मोहन यादव, रमेश कुशवाहा आदि ने बताया की जिस भी गांव गए नदी पीछे पीछे आ गई। सब कुछ काट लेती थी, फिर से नई शुरुआत की गई।
गंडक ने अपनों और कुनबो से किया अलग
विस्थापन का दंश झेल रहे लोगों ने कटाव ने अपनों से तो अलग किया ही कुनबा भी दूर-दूर होता गया। लेदी हरवा में दस से पंद्रह घर पट्टी पाटीदार का था लेकिन जब कटाव हुआ तो कोई प्रेमहि गया कोई झाकनही गया। कइयों से संपर्क तक खत्म हो गया।
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