बिहार

वह नेता जिसे सुनाया गया सजा ए मौत, 15 दिनों के लिए पैरोल पर जेल से निकले बाहर

Admin4
4 Nov 2022 1:13 PM GMT
वह नेता जिसे सुनाया गया सजा ए मौत, 15 दिनों के लिए पैरोल पर जेल से निकले बाहर
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पटना। आनंद मोहन के समर्थकों को जिस दिन का इंतजार था आखिरकार वह दिन आ ही गया। भले 15 दिनों के लिए सही लेकिन सहरसा जेल का फाटक टूट गया और आज आनंद मोहन छूट गया। कानूनी जानकार भले इस रिहाई को पैरोल के नाम से जानते हैं लेकिन उनके समर्थकों को तो बस इतना पता है कि हमारे आनंद मोहन आज जेल से बाहर निकले हैं। उनकी बेटी की शादी है और अगले 15 दिनों तक आनंद मोहन अपने परिवार और समर्थकों के साथ रहेंगे।
बिहार की राजनीति में आनंद मोहन एक ऐसा नाम है जो कभी किसी पहचान का मोहताज नहीं रहा। साल 1990 के दशक में बिहार की राजनीति पर नजर रखने वाले जानते हैं उस समय बिहार का बच्चा-बच्चा आनंद मोहन को जानता था। मंडल कमीशन के विरोध में आनंद मोहन ने खुलकर आरक्षण का विरोध किया। क्या आम क्या खास सब के सब आनंद मोहन की लहर में शामिल हो गए और उनके दिवाने हो गए। उस समय के कद्दावर नेता और बिहार के पूर्व सीएम लालू यादव के खिलाफ आनंद मोहन ने मोर्चा खोल दिया। लालू मुसलमान और यादवों के हिमायती थे तो आनंद मोहन सवर्ण समाज के लिए हीरो थे। स्वतंत्र भारत में आनंद मोहन पहले ऐसे राजनेता हैं जिनको सजा-ए-मौत अर्थात फांसी की सजा सुनाई गई थी। हालांकि बाद में उनकी सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया गया।
आनंद मोहन की कहानी बिहार के सहरसा जिले के पचगछिया गांव से आरंभ होती है। इनके बाबा राम बहादुर सिंह एक स्वतंत्रता सेनानी थे। जयप्रकाश नारायण ने जब जब इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ 1974 में संपूर्ण क्रांति का ऐलान किया तो आनंद मोहन इस में खुद को शामिल होने से नहीं रोक पाए। कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर इमरजेंसी के दौरान वह इस आंदोलन में कूद पड़े। एक तरह से कहा जाए तो 17 साल की उम्र से आनंद मोहन ने राजनीति को अपना कैरियर बना लिया। यह वह दौड़ था जब बिहार में जातिगत राजनीति का बोलबाला था। सवर्ण और पिछड़ों के बीच खुलेआम मोर्चा खुला हुआ रहता था। आनंद मोहन की निडरता इस बात से जान लीजिए कि उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई मंच पर भाषण दे रहे थे। और आनंद मोहन उन्हें खुलेआम काला झंडा दिखा रहे थे।
1990 में आनंद मोहन पहली बार जनता दल के टिकट पर महिषी विधानसभा से चुनाव लड़ते हैं। आसानी से जीत जाते हैं। राजनीति की पटरी पर आनंद मोहन ने जो राजधानी एक्सप्रेस पकड़ा तो फिर कभी पीछे पलटकर नहीं देखा। पांच बार सांसद रहे। कहा जाता है कि उनके और पप्पू यादव के बीच खुलकर हल्ला फसाद होता रहता था। कोसी का क्षेत्र दो भागों में बट गया था। एक खेमा आनंद मोहन का समर्थक था तो दूसरा खेमा पप्पू यादव का।
आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद भी वैशाली लोकसभा सीट से सांसद रह चुकी है। उनका बेटा चेतन आनंद अभी राजद पार्टी का विधायक है। 1990 के दशक में आनंद मोहन मोहन ने अलग चलने का फैसला लिया और बिहार पीपल्स पार्टी अर्थात बीपीपी नाम पार्टी बनाया। आनंद मोहन ने अपनी राजनीति में एक ऐसा भी दौड़ देखा जब वह 3 लोकसभा सीट से चुनाव लड़े और सभी सीटों पर हार गए। साल 1996 में जेल में बंद होने के बाद भी शिवहर लोकसभा सीट से जीत का परचम लहराया।
अब आप सोच रहे होंगे कि जो आदमी राजनीति का उगता हुआ ध्रुव तारा हुआ करता था वह आखिर जेल में क्यों बंद है। आइए हम आपको बताते हैं पूरी कहानी। 5 दिसंबर 1994 को गोपालगंज के डीएम जी कृष्णया, जो की मूल रूप से दलित थे उनकी हत्या हो जाती है। आनंद मोहन पर आरोप है कि उन्होंने भीड़ को उकसाया था। इस केस में आनंद मोहन सहित उनकी पत्नी लवली आनंद सहित अन्य 6 लोगों को आरोपी बनाया जाता है। पटना हाईकोर्ट साल 2007 में उन्हें दोषी पाते हुए सजाए मौत का फैसला सुनाती है। 2008 में उनकी सजा को कम करते हुए आजीवन कारावास में बदल दिया जाता है। इसके बाद आनंद मोहन सुप्रीम कोर्ट पहुंचते हैं और सजा को कम करने का गुहार लगाते हैं, जिसे सुप्रीम कोर्ट खारिज कर देती।
एक बात और आपको जानकर आश्चर्य लगेगा कि आजीवन कारावास की सजा कब की खत्म हो चुकी है, बावजूद इसके आनंद मोहन अब तक जेल में बंद हैं।
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