भागलपुर न्यूज़: जिले के युवाओं के हाथ कांपने लगे हैं. चलने में दिक्कत हो रही है तो आंख बंद कर खड़े रहते हुए खुद को संभालना मुश्किल हो रहा है. बुजुर्गों को होने वाली पार्किंसन की बीमारी अब जिले के युवाओं को होने लगी है. चिकित्सकों की मानें तो इस बीमारी का सही समय पर इलाज जरूरी है. नई दवाओं के आने से इस बीमारी का इलाज आसान हुआ है. कुछ मरीजों को तो सर्जरी की जरूरत होती है. हालांकि सर्जरी पर आने वाला खर्च महंगा है, लेकिन सर्जरी के बाद दवाओं के बल पर मरीज 15 से 20 साल तक सामान्य जीवन जी सकता है.
मायागंज अस्पताल के न्यूरो सर्जन डॉ. पंकज कुमार बताते हैं, पार्किंसन की बीमारी जिले में व्यापक नहीं है. लेकिन इतनी जरूर है कि अब चिंतनीय है. अस्पताल में हर माह औसतन 25 से 30 मामले पार्किंसन के जांच में मिल रहे हैं. अब तक ये बीमारी 55 साल से ज्यादा उम्र के लोगों में पायी जाती थी. लेकिन कुल पार्किंसन के मामले में से तकरीबन 10 प्रतिशत बीमार अब युवा मिल रहे हैं, जिनकी उम्र 30 से 45 साल के बीच होती है. यह एक न्यूरोडिजेनेरेटिव डिसऑर्डर है. इसमें दिमाग में खास तरह के केमिकल का नुकसान होता है जिससे मरीज के हाथों में कंपन शुरू होता है. मरीज की चाल धीमी हो जाती है. मुंह से लार गिरती है. मरीज को पेशाब में दिक्कत होती है. मांसपेसिया सख्त हो जाती हैं.
शरीर से न्यूरॉन्स के नष्ट होने से होता है पार्किंसन: भागलपुर आयुर्वेदिक कॉलेज के प्राचार्य डॉ. सीबी सिंह ने कहा कि पार्किंसन जैसी बीमारियों की मुख्य वजह शरीर से न्यूरॉन्स का नष्ट होना है. इसे न्यूरोडिजनेरशन कहते हैं. न्यूरो की बीमारियां इसी वजह से होती हैं. इन बीमारियों की दवाएं हमारे भोजन में ही मौजूद हैं. इसे सही औषधीय मिश्रण और पौष्टिक खाद्य पदार्थों से बनाया जा सकता है. पौष्टिक और औषधीय पदार्थों का मिश्रण दिया जाए तो शरीर में एंटीऑक्सीडेंट ज्यादा मिलेगा. इससे इनके न्यूरोडिजनेशन कम होंगे.