बिहार
बिहार का वो महान गणितज्ञ जिसके लिए यूनिवर्सिटी को बदलने पड़े थे नियम
Manish Sahu
29 Aug 2023 11:27 AM GMT
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बिहार: बिहार के आरा में एक ऐसी हस्ती का जन्म हुआ था जो शायद अभी तक पूरे विश्व में दूसरा ऐसा कोई नहीं हुआ. एक हाथ में कलम तो दूसरे हाथ में बांसुरी. कलम की रफ्तार धीमी पड़ती तो तुरंत ही बांसुरी की सुरीली आवाज निकलने लगती है. इनके लिए विश्वविद्यालय के नियम भी बदलने पड़े. ये थे महान गणितज्ञ बाबू वशिष्ठ नारायण सिंह. आज इनके बारे में कुछ अनसुनी कहानी बताएंगे.
हम बात कर रहे हैं देश के महान गणतिज्ञ बाबू वशिष्ठ नारायण सिंह की. बाबू वशिष्ठ नारायण सिंह के लिए चंद मिनट में पटना यूनिवर्सिटी के नियम को बदलना पड़ गया था. बात है 1963 की. बीएससी के तीन साल के कोर्स की परीक्षा सिर्फ एक साल में यूनिवर्सिटी को लेनी पड़ी. लेकिन दुर्भाग्य है विशिष्ट बाबू और इस देश का. जिस व्यक्ति की आइंस्टीन से तुलना की जाती थी या उनसे आगे माना जाता रहा. उनकी कद्र हम नहीं कर पाए. आज वो इस दुनिया में नहीं है. भोजपुर के वसंतपुर में 2 अप्रैल 1946 को जन्मे बाबू विशिष्ट नारायण सिंह की मृत्यु 14 नवंबर 2019 को हो गई.
आरा से कुछ दूरी पर मौजूद वसंतपुर गांव में वशिष्ठ नारायण सिंह के जब हम घर पहुंचे तो वहां मौजूद उनके छोटे भाई अयोध्या प्रसाद सिंह ने एक रोचक बात बताई. उन्होंने कहा कि वशिष्ठ नारायण सिंह के लिए कभी पटना विश्वविद्यालय को अपने नियमों में बदलाव करना पड़ा था. पटना विश्वविद्यालय ने गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह को तीन साल के बजाय एक साल में ही बीएससी की डिग्री दी थी. पटना साइंस कॉलेज के तत्कालीन प्राचार्य सह अप्लाइड मैथेमैटिक्स के प्रख्यात प्रोफेसर डॉ. नागेंद्र नाथ की पहल पर कुलपति डॉ. जार्ज जैकब ने चंद मिनटों में ही उन्हें , फर्स्ट ईयर से फाइनल ईयर में प्रमोट करने का नोटिफिकेशन जारी करवा दिया था. 1963 में उनके सहपाठी फर्स्ट ईयर में थे तो वशिष्ठ बाबू फाइनल ईयर की परीक्षा दे रहे थे. उस दौर के राज्यपाल अनंत शयनम अयंगार भी गणित के बड़े जानकार थे. वह एमएससी में वशिष्ठ बाबू के नामांकन के लिए सीनेट व सिंडिकेट से नियम में बदलाव की पहल की थी. उसके बाद बीएसी की डिग्री मिलने के बाद तुरन्त एमएसी की परीक्षा भी ली गई. जिसमें बिहार टॉपर बने थे. वशिष्ठ नारायण सिंह 5 साल की पढ़ाई एक साल में कर इतिहास लिख गए.
अयोध्या प्रसाद सिंह ने कहा कि साइंस कॉलेज के एक प्रोफेसर गणित का सवाल बोर्ड पर हल कर रहे थे जो की गलत तरीका था. उसे वशिष्ठ बाबू सुधार किए थे, बल्कि उस गणित को कई तरह से हल भी किया. जिसके बाद प्रोफेसर के द्वारा प्रिसिंपल से उनकी शिकायत की गई. जिसके बाद सजा के लिए प्रिंसिपल के चैंबर में बुलाए. उस दौर में प्राचार्य के चैंबर में जाने का मतलब होता था, कड़ी सजा.उनके पीछे- पीछे कई छात्र चेंबर के आसपास जमा हो गए. प्राचार्य की डांट से वशिष्ठ बाबू रोने लगे थे. इस पर प्रो. नाथ ने उन्हें पूरी घटना बताने को कहा. पूरी घटना की जानकारी होने पर उन्हें प्रो. बीकन भगत को बुलाने का आदेश चपरासी को दिया. जिसके बाद प्रोफेसर,कुलपति और वशिष्ठ बाबू एक घंटे तक चैंबर में रहे.चैंबर से निकलते ही कुलपति नोटिस लगवा दिए कि फर्स्ट ईयर से सीधा फाइनल ईयर में प्रमोट किया जाता है.ऐसी थी महान गणितज्ञ वसिष्ठ बाबू की कॉलज जीवनी.
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