बिहार

मुलायम, शरद जैसे नेताओं के 'जन्मदाता' और आम लोगों के जननायक बीपी मंडल की गौरव गाथा

Tara Tandi
25 Aug 2023 11:17 AM GMT
मुलायम, शरद जैसे नेताओं के जन्मदाता और आम लोगों के जननायक बीपी मंडल की गौरव गाथा
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बिहार की धरती से एक और बड़े नेता का जन्म हुआ था नाम था बाबू बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल. मंडल बिहार के मुख्यमंत्री थे लेकिन कई नेताओं के राजनीतिक जन्मदाता भी थे कहा जाता है कि बीपी मंडल की वजह से ही मुलायम सिंह यादव और शरद यादव जैसों का नाम राजनीति से जुड़ा. बीपी मंडल यादव बिहार के मधेपुरा ज़िले से 15 किमी दूर मुरहो गांव के एक जमींदार परिवार से आते थे. उनका जन्म 25 अगस्त 1918 में हुआ था. मुरहो और मधेपुरा में शुरुआती पढ़ाई करने के बाद बीपी मंडल ने दरभंगा से हाई स्कूल की कक्षा पास की. बीपी मंडल ने आगे की पढ़ाई पटना कॉलेज से पूरी की. बीपी मंडल स्कूल के दिनों से ही से ही पिछड़ों और वंचितों के हक की आवाज बड़े जोर शोर तरीके से उठाया करते थे. 1952 में देश के पहले चुनाव में मंडल मधेपुरा से कांग्रेस के टिकट पर बिहार विधानसभा के सदस्य बने.
पिछड़े लोगों के मसीहा और जननायक
मुलायम सिंह यादव, शरद यादव के राजनीतिक ‘जन्मदाता’
सरकार से लड़कर ओबीसी और पिछड़े वर्ग को दिलाया आरक्षण
दमदार, बेमिशाल, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री बीपी मंडल की कहानी
विरासत में ही मिली थी राजनीति, विधानसभा से लेकर लोकसभा तक थी पहुंच
बीपी मंडल के पिता कांग्रेस के संस्थापक सदस्यों में से एक थे सो राजनीति उन्हें विरासत में भी मिली थी. 1962 में बीपी मंडल दूसरी बार विधायक बने. इस बीच 1965 में मधेपुरा क्षेत्र के पामा गांव में दलितों पर सवर्णों एवं पुलिस द्वारा अत्याचार के खिलाफ उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी और सोशलिस्ट पार्टी में शामिल हो गए और 1967 में मधेपुरा से लोकसभा सदस्य चुने गए. यह बात जग जाहिर है कि देश के आजाद होने के बाद करीब डेढ़ दशक तक बिहार में कांग्रेस का दबदबा रहा. लेकिन 1967 में कांग्रेस को कई राज्यो में चुनौती मिलना शुरू हुई बिहार में भी कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गयी और यहां गैर-कांग्रेसी सरकार का गठन महामाया प्रसाद सिन्हा के नेतृत्व में हुआ. इस सरकार में बीपी मंडल को स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया. हालांकि 11 महीने बाद ही आपसी गतिरोध के बाद ये गठबंधन सरकार गिर गयी सरकार के गिरने के बाद 90 के दशक में केंद्र में वीपी सिंह के नेतृत्व में जनता दल की सरकार बनी. इस सरकार में ओबीसी तबके के कई नेताओं की अहम भूमिका रही.
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री बी. पी. मंडल की कहानी
बिहार की धरती के थे ‘राजनीतिक’ सूरमा
मुलायम सिंह यादव, शरद यादव समेत तमाम नेताओं का ‘गुरू’
ओबीसी और पिछड़ा वर्ग के थे ‘नायक’
सरकारी नौकरियों में OBC वर्ग के लिए आरक्षण बीपी मंडल की ही है देन
देवीलाल से बिगड़े रिश्तों के बाद जनता दल सरकार में असंतोष के सुर सुनाई देने लगे वीपी सिंह ने दूसरे पिछड़ा वर्ग आयोग की एक सिफारिश को लागू कर दिया. वीपी सिंह ने 7 अगस्त 1990 को संसद में मंडल की सिफारिशें लागू करने की घोषणा की थी. जिसके बाद 7 अगस्त को मंडल दिवस के रूप में मनाया जाता है. मंडल आयोग की सिफारिशों को मानकर ओबीसी के उम्मीदवारों को सरकारी नौकरियों में 27 फीसदी रिजर्वेशन देने का फैसला लिया गया. इससे ओबीसी तबके को सामाजिक राजनैतिक और आर्थिक रूप से बहुत मजबूती मिली.
बिहार के मुख्यमंत्री थे लेकिन पूरे देश ने सराहा
पिछड़ा वर्ग आयोग के भी बनाये गये थे अध्यक्ष
मंडल कमीशन को बनाकर सियासत में ला दिया था तूफान
पूरे देश ने मानी मंडल कमीशन की सिफारिशें
ओबीसी आरक्षण मंडल कमिशन की ही देन
यूं तो बीपी मंडल बिहार के सीएम रहे लेकिन पिछड़ा वर्ग आयोग के दूसरे अध्यक्ष के रूप में की गई उनकी सिफारिशों ने उन्हें देश की सियासत में एक बड़े नायक के तौर पर स्थापित कर दिया. बीपी मंडल की अध्यक्षता में बने मंडल कमीशन की सिफारिशों ने देश की सियासत को काफी बदल दिया. उत्तर भारत के दो बड़े राज्यों यूपी और बिहार में क्षेत्रीय दलों को उभरने का आधार मंडल कमीशन से ही मिल सका. सामाजिक बराबरी की लड़ाई का लंबा इतिहास रहा है. बीपी मंडल का भी इसमें अहम रोल रहा है. मंडल कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर 52 फीसदी ओबीसी आबादी को राष्ट्र निर्माण में हिस्सेदार बनने का मौका मिला जो कि देश की आजादी के बाद की सबसे बड़ी पहल साबित हुई.
मंडल कमीशन की रिपोर्ट के बाद ओबीसी तबके से जुड़े लोगों को नौकरियों और एजुकेशन इंस्टीटूयूशन में रिजर्वेशन होने से कई बड़े मौके मिल सके. रिजर्वेशन के इस कदम से ओबीसी तबके का व्यवस्थाओं पर भरोसा मजबूत हुआ. इसी भरोसे का असर यूपी और बिहार की सियासत में देखने को मिला. मुलायम सिंह लालू यादव, शरद यादव और नीतीश कुमार जैसे क्षेत्रिय दलों का उभार इसी कवायद के चलते सम्भव हो पाया. मंडल की सिफारिशों की बदौलत देश की व्यवस्थाओं में पिछड़े तबके की बड़ी आबादी के शामिल होने का रास्ता खुल गया था. जिसके चलते सियासी मामलों के जानकार इसे भारतीय राजनीति का का साइलेंट रिवोलुशन भी बताते हैं. और भी कई किस्सी बी पी मंडल के जिन्हें एक साथ कहा जाना या सुनाया जाना संभव ही नहीं है. तो ये थी कहानी बी पी मंडल की.
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