सिवान न्यूज़: मेला हमारी संस्कृति व सभ्यता की पहचान रही हैं, इनके माध्यम से हम अपनी संस्कृति से रुबरु होते हैं. समय के साथ मेला तो जरूर जीवित है, लेकिन इसकी मूल पहचान कहीं न कहीं खोती जा रही है, जिसे बचाने की बहुत जरूरी है, अन्यथा हम अपनी पहचान को ही खो देंगे.
सीवान सदर विधायक व बिहार विधानसभा के अध्यक्ष अवध बिहारी चौधरी ने कहा कि मेलों को बचाए रखने के लिए जनमानस समेत सभी को मिल-जुलकर पहल करने की जरूरत है. सीवान विधानसभा समेत पूरे जिले में महावीरी और मोहर्रम का मेला बहुत चर्चित है. इन मेलों में आज भी संस्कृति का जीवंत प्रदर्शन किया जाता है. समय के साथ इनका स्वरुप बढ़ रहा है, लेकिन पहचान आज भी हमारी संस्कृति पर केन्द्रित है. वहीं सीवान की जदयू सांसद कविता सिंह ने कहा कि समय के बहाव में मेला का स्वरुप ही बदल गया है. अब मेला में पारंपिक कला-कौशल व संस्कृति की जगह धूमधड़ाक का बोलबाला हो गया है. मेला देखने जाने पर हम अपनी संस्कृति को नहीं देखकर आडंबर को देखते हैं, जिससे उबरने की जरूरत है. सीवान लोकसभा क्षेत्र में लगने वाले प्रमुख मेलों पर नजर रहती है. संसदीय क्षेत्र के मेंहदार में आयोजित सावन महोत्सव में हमारी संस्कृति व लोक परंपरा दिखती है. मेलों को बचाने के लिए और इनकी पहचान को कायम रखने के लिए सरकारी स्तर पर पहल की जा रही है.
पहले मेला एक-दूसरे से मिलने-मिलाने का होता था माध्यमदरौंदा के विधायक कर्णजीत सिंह उर्फ व्यास सिंह ने कहा कि मेला को अगर मेला ही रहने दिया जाए तो यह सभी के लिए सुखद पहलू होगा. मेला कोई भी हो, लेकिन वह सामूहिक सदभाव व संस्कृति का परिचायक होता है. मेला में सिर्फ लोग घुमते-फिरते या मस्ती-खेल नहीं करते बल्कि पुराने जमाने में तो एक-दूसरे से मिलने की एक खास जगह मेला होती थी. मायका नहीं आने की स्थिति में बेटियां व ब्याह के लिए लड़कियों को भीड़-भ्राड़ वाले जगह में दिखाने के लिए लोग मेला में आते थे. आज इसकी कमी हो गई है, कारण कि मेला अब अपनी पहचान से इतर आधुनिकता की बयार में बंधता जा रहा है, जिससे निकलने की जरूरत है. मेरी सरकार से भी कि वह किसी भी मेला की संस्कृति को बनाए रखने के लिए ठोस पहल करे साथ ही लोग भी मेला में जांए क्योंकि वह एक सामूहिक जगह है.