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मुजफ्फरपुर। गुरुवार को स्थानीय शहर अंजबीत सिंह महाविद्यालय के रसायन शास्त्र भवन में स्वामी विवेकानंद जयंती युवा दिवस के अवसर पर महाविद्यालय के राष्ट्रीय सेवा योजना इकाई के तत्वावधान में कार्यक्रम आयोजित की गई । जिस कार्यक्रम का उद्घाटन महाविद्यालय के प्रशासक दिलीप कुमार समेत अन्य गणमान्य लोगों ने संयुक्त रूप से स्वामी विवेकानंद के तैलचित्र के समीप दीप प्रज्वलित कर पुष्प अर्पित करते हुए नमन व वंदन किया । उसके उपरांत महाविद्यालय के प्रशासक दिलीप कुमार ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि हर साल 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद जयंती मनाई जाती है। देश में स्वामी विवेकानंद की जयंती को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था। उनके बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। बहुत कम उम्र में ही नरेन्द्रनाथ ने अध्यात्म का मार्ग अपना लिया था। आध्यात्मिक मार्ग अपनाने के बाद उनको स्वामी विवेकानंद के नाम से जाना जाने लगा। इनके पिता कलकत्ता हाईकोर्ट में एक वकील थे और माता धार्मिक विचारों की महिला थीं। स्वामी विवेकानंद का जन्म दिवस हर वर्ष रामकृष्ण मिशन के केन्द्रों पर रामकृष्ण मठ और उनकी कई शाखा केन्द्रों पर भारतीय संस्कृति और परंपरा के अनुसार मनाया जाता है।
इसे आधुनिक भारत के निर्माता स्वामी विवेकानंद के जन्मदिवस को याद करने के लिए मनाया जाता है। डॉ नागेंद्र झा महिला महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ अमरेंद्र कुमार मिश्रा ने कहा कि छोटी उम्र से ही स्वामी विवेकानंद को अध्यात्म में रुचि हो गई थी । पढ़ाई में अच्छे होने के बावजूद भी 25 साल की उम्र में उन्होंने अपने गुरु से प्रभावित होकर सांसारिक मोह माया त्याग दी और संन्यासी बन गए । संन्यास लेने के बाद उनका नाम विवेकानंद पड़ा । स्वामी विवेकानंद ने 1897 में कोलकाता में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी । वहीं 1898 में गंगा नदी के किनारे बेलूर में रामकृष्ण मठ की स्थापना भी की थी ।वीर कुंवर सिंह महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ सुरेंद्र कुमार सिंह ने कहा कि 11 सितंबर 1893 में अमेरिका में विश्व धर्म महासभा का आयोजन हुआ । इस आयोजन में स्वामी विवेकानंद भी शामिल हुए थे । यहां उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत हिंदी में ये कहकर कहा कि 'अमेरिका के भाइयों और बहनों'। विवेकानंद के भाषण पर आर्ट इंस्टीट्यूट ऑफ शिकागो में पूरे दो मिनट तक तालियां बजती रहीं । जो भारत के इतिहास में एक गर्व और सम्मान की घटना के तौर पर दर्ज हो गई । इसी भाषण के बाद दुनिया ने उनकी अध्यात्मिक सोच और दर्शनशास्त्र से प्रभावित हुई।
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