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बिहार | राज्य का इकोफ्रेंडली स्टार्टअप ‘भोजपत्ता एग्रीपेन्योर प्राइवेट लिमिटेड’ केला के थंब से इकोफ्रेंडली प्लेट तैयार करती है. इसके लिए स्टार्टअप ने केला थंब से प्लेट बनाने की मशीन और प्रिज्म तकनीक का उपयोग कर जीरो कार्बन इमिशन ड्रायर मशीन तैयार की है. दोनों मशीन की तकनीक व डिजाइन को पेंटेंट कराने का आवेदन भी दिया जा चुका है. स्टार्टअप राज्य के बाहर स्थित संस्थानों में अपनी पहचान बना रहा है. इसे राज्य के बाहर स्थित संस्थानों से जरूरी फंडिंग भी मिल रही है और आर्डर भी.
लेकिन राज्य के संस्थानों और बैंकों से अपेक्षित सहयोग अब तक नहीं मिल सका है. स्टार्टअप को व्यवसायिक उत्पादन के लिए आधारभूत संरचना निर्माण करना है, इसके लिए जरूरी फंड की जरूरत है. इसे बिहार स्टार्टअप सीड फंड से चार लाख रुपये की पहली किश्त भी मिल चुकी है. दूसरी किश्त भी जल्दी मिलने की संभावना है. बावजूद इसके स्टार्टअप को अब भी राज्य के कई संस्थानों से मदद नहीं मिल रहा.
बैंकों से सहयोग नहीं स्टार्टअप को राज्य में काम कर रहे बैंकों से व्यवसाय को विकसित करने के लिए फंड की जरूरत है. स्टार्टअप संस्थापक नीतीश कुमार बताते हैं कि अप्रैल 2023 में वैशाली के सेन्ट्रल बैंक ऑफ इंडिया और पंजाब नेशनल बैंक से 15 लाख रुपये के कर्ज के लिए प्रयास किया था. लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली. इसके पहले भी उनके कर्ज का प्रयास विफल रहा है. राज्य के बैंकों का व्यवहार स्टार्टअप के साथ ठीक नहीं है. स्टार्टअप के सुचारू संचालन के लिए डेढ़ करोड़ रुपये का इंतजाम करना है. स्टार्टअप का टर्नओवर फिलहाल 20 लाख रुपये है.
हैदराबाद के इन्क्यूबेशन सेंटर ने आइडिया को समझा
स्टार्टअप संस्थापक नीतीश कुमार बताते हैं कि वर्ष 2020 में अपने आइडिया को लेकर सबौर गए थे. उन्होंने बिहार एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी सबौर के सबौर एग्री इन्क्यूबेटर(सबाग्री) में अपना आइडिया बताया. लेकिन आइडिया को रिजेक्ट कर दिया. इस वर्ष हैदराबाद स्थित आईसीएआर-नारम के इन्क्यूबेशन सेंटर ने मेरे आइडिया को समझा. उनके एग्री राउंड 5.0 में शामिल होने के लिए बुलाया है. यहां से उम्मीद है कि 50 लाख रुपये का सीड फंड प्राप्त हो सकेगा.
ब्रेडा व अन्य से भी मांगा सहयोग
भोजपत्ता स्टार्टअप को उत्तराखंड रिन्यूबल इनर्जी डेवलपमेंट ऑथरिटी (यूरेडा) से उनके जीरो इमिशन मशीन के सौ पीस के लिए आर्डर मिला है. जल्दी ही इसकी आपूर्ति भी की जाएगी. उद्यमी नीतीश बताते हैं कि यूरेडा के पहले मैं ब्रेडा (बिहार रिन्यूबल इनर्जी डेवलपमेंट ऑथरिटी) से मदद मांगने गया था. लेकिन वहां मौजूद कर्मियों ने उन्हें एमडी से मिलने तक नहीं दिया. वे चाहते हैं कि उनके उत्पाद का फायदा सबसे पहले आम किसानों तक पहुंच सके.
केले के थंब से बनती है प्लेट
केला के थंब से बायोडिग्रेडेबल प्लेट बनाया जाता है. जो उपयोग में आने के बाद 45 दिनों में खाद में तब्दील हो जाता है. विश्व के कुल केला उत्पादन का 30 प्रतिशत भारत में होता है. भारत के कुल केला उत्पादन का छठा हिस्सा बिहार में होता है. राज्य के 32 सौ हेक्टेयर में केला उत्पादन होता है. इनमें 34 सौ हेक्टेयर क्षेत्र पर वैशाली में केला उत्पादन होता है. स्टार्टअप केला उत्पादक किसानों से थंब लेती है और उसे प्रोसेस करने के बाद अपशिष्ट से बने खाद को किसानों को वापस कर देती है
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Harrison
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