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पटना (आईएएनएस) । आम तौर पर बम और पटाखे से पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है, लेकिन बिहार के स्कूली बच्चे अब 'बीज बम ' के जरिए पर्यावरण संरक्षण करेंगे। यह सुनकर भले आपको अटपटा लग रहा हो, लेकिन यह सौ फीसदी सच है। इसके लिए बजाप्ता स्कूली बच्चों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
बिहार में हरियाली क्षेत्र को बढ़ाने के लिए सरकार और स्वयंसेवी संस्थाएं लगातार प्रयास कर रही हैं। इसी कड़ी में बच्चे अब बीज बम फेंककर हरियाली बढ़ाने में सहायता करेंगे।
दरअसल, बीज बम पौधारोपण की नई तकनीक है, जिसमे बीज का एक गेंद तैयार किया जाता है और इसे बंजर भूमि, रेल पटरियों, नदियों, तालाबों के किनारे फेंककर पौधारोपण किया जा रहा है।
पर्यावरण संरक्षण पर यह अनोखा अभियान राष्ट्रव्यापी संगठन ' तरुमित्र ' की देखरेख में चलाया जा रहा है, जिनमें स्कूली बच्चों को प्रशिक्षित किया जा रहा है।
इस अनूठे अभियान के तहत स्कूली बच्चों को पौधों के बीज इकट्ठा करने, उन्हें उपजाऊ मिट्टी की गेंदों के अंदर भरने और उन्हें नदी के किनारे, बंजर स्थलों, सड़कों पर फेंकने से पहले सूखने देने के तरीकों के बारे में प्रशिक्षित किया जा रहा है।
बताया जाता है कि बरसात के मौसम में अब बीज बम का प्रयोग किया जाएगा। इस मौसम में वातावरण में नमी की उपलब्धता अधिक होती है, जिस कारण बीज के शीघ्र अंकुरण की संभावना बढ़ जाती है।
तरुमित्र की समन्वयक देवोप्रिया दत्ता ने आईएएनएस को बताया कि उनकी योजना राज्य भर में विभिन्न स्थानों पर कम से कम एक लाख बीज बम गिराने में लगभग 50,000 स्कूली बच्चों को शामिल करने की है। उन्होंने कहा कि अब तक पटना के अधिकांश स्कूलों में इसके लिए बच्चो के समूहों को प्रशिक्षित किया जा चुका है।
आईएएनएस को उन्होंने बताया कि हमने स्कूली बच्चों को बीजों का विशाल भंडार रखने की सलाह दी है, जिसका उपयोग बारिश के मौसम में किया जा सकता है।
उन्होंने दावा करते हुए कहा कि बीज बम से हरित आवरण बढ़ेगा और सुंदर वातावरण तैयार होगा। उन्होंने कहा कि बीज बम पटना, गया, नवादा, जहानाबाद सहित राज्य भर में विभिन्न स्थानों पर फेंके जाएंगे।
दत्ता कहती हैं कि आम तौर पर फलों के बीज फेंक दिए जाते हैं। इन बीजों को ही हम इकट्ठा करने और उनका उपयोग करने की सलाह दे रहे थे। उन्होंने कहा कि ऐसे में बच्चो की मानसिकता भी बदलेगी।
विशेषज्ञों का भी मानना है कि अगर यह अभियान सफल रहा तो यह काफी कारगर साबित हो सकता है।
उल्लेखनीय है कि बिहार से झारखंड के अलग होने के बाद यहां सिर्फ 9 प्रतिशत हरित क्षेत्र बचे थे। फिलहाल राज्य में इस क्षेत्र को बढ़ाकर 14 से 15 प्रतिशत किया जा चुका है, जबकि इसे 17 प्रतिशत तक पहुंचाने की योजना है।
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