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पटना/दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने आज यानी शुक्रवार को बिहार सरकार की ओर से कराई गई जातिगत गणना से संबंधित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि हम किसी राज्य सरकार को नीति बनाने या काम करने से नहीं रोक सकते। सिर्फ उसकी समीक्षा कर सकते हैं। अब इस मामले में अगली सुनवाई जनवरी 2024 में होगी।
बिहार जातीय गणना से संबंधित याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार की ओर से कराई गई जातीय गणना का डेटा प्रकाशित करने पर रोक लगाने से साफ इनकार कर दिया। जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि हम किसी राज्य सरकार को नीति बनाने या काम करने से नहीं रोक सकते। सुनवाई के दौरान सिर्फ उसकी समीक्षा कर सकते हैं। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट के 1 अगस्त, 2023 के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर नीतीश-तेजस्वी सरकार को नोटिस जारी किया है। बता दें कि बिहार सरकार ने 2 अक्टूबर को जातीय गणना की रिपोर्ट सार्वजनिक कर दी। रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार की जनसंख्या 13 करोड़, सात लाख 25 हजार तीन सौ 10 है। कुल जनसंख्या में अगर वर्ग के हिसाब से देखा जाए तो पिछड़ा वर्ग की 27.12 फीसदी, अत्यंत पिछड़ा वर्ग की 36.01 फीसदी, अनुसूचित जाति की 19.65 फीसदी, अनुसूचित जनजाति-1.68 फीसदी और सामान्य वर्ग 15.52 फीसदी की आबादी है।
215 जातियों और 6 धर्मों को मानने वालों की हुई गिनती बिहार जातिगत गणना की रिपोर्ट के अुनसार, गणना में राज्य रह रहे 215 जातियों और कुल छह धर्मों को मानने वाले लोगों की गिनती की गई। इनमें हिंदुओं की संख्या 10 करोड़, 71 लाख 92 हजार 958 (81.99%) है। वहीं मुस्लिम आबादी दो करोड़ 31 लाख 49 हजार 925 (17.70%)हैं। बौद्ध धर्म की आबादी एक लाख 11 हजार 201 यानी (.08%), ईसाई की 75 हजार 238 (.05%), सिख की 14 हजार 753 (.01%) और जैन की 12 हजार 523 (.0096%) है।
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