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बिहार | महिला कॉलेजों में शोधकार्य होते हैं, पर किसी पंजीकृत जर्नल में जगह नहीं मिलती है. लिहाजा शोध कॉलेज से प्रकाशित होने वाले जर्नल तक ही सीमित रह गए हैं. प्राध्यापकों के शोध से न तो कोई रोडमैप तैयार करने में सहायता ली जाती है और न ही उनके शोध पत्र से छात्राओं को पढ़ाई में कोई मदद मिल पाती है. पटना वीमेंस कॉलेज में पिछले तीन साल में हुए रिसर्च पर नजर डालें तो विभिन्न विषयों पर 43 शोधकार्य किए गए. इनमें करीब 14 लाख 50 हजार रुपये सीड मनी के रूप में शिक्षकों को दी गई. लेकिन यह रिसर्च पेपर कॉलेज के जर्नल में प्रकाशित होने तक ही सीमित रह गए. बता दें कि कॉलेज में छात्राओं से डीबीटी और बीएसआर के तहत शोधकार्य कराए जाते हैं. इनमें से चयनित शोधकार्यों से भी भविष्य के लिए कोई योजना बनाने में इस्तेमाल नहीं होता है. मगध महिला कॉलेज का भी हाल कुछ ऐसा ही है. फैक्ल्टी मेंबर्स और छात्राओं की ओर से अच्छे विषयों पर शोधकार्य तो हर वर्ष किए जा रहे, लेकिन स्कोपस आदि जैसे जर्नल्स में जगह नहीं मिलती है.
गुणवत्ता में सुधार नहीं
कॉलेजों के रिसर्च एवं डेवलपमेंट सेल (आरडीसी) की ओर से शोध को बढ़ावा देने के लिए कई पहल की गई. पटना वीमेंस कॉलेज प्रशासन की मानें तो डेढ़ लाख तक सीड मनी मिलती है. इसे बढ़ा कर भी दिया जाता है. बावजूद शोधकार्य की गुणवत्ता में सुधार नहीं है.
संसाधन का अभाव है. कई अच्छे शोध पत्र पंजीकृत जर्नल में नहीं छपने से दबकर रह जाते हैं.
- डॉ. पी राय, सहायक प्राध्यापक
पटना वीमेंस कॉलेज
कई कॉलेजों की प्रयोगशाला में उपकरण तक नहीं
अरविंद महिला कॉलेज, गंगा देवी कॉलेज और जेडी वीमेंस कॉलेज में तो प्रयोगशाला की स्थिति भी बदहाल है. छात्राओं को महज कोरम पूरा कराने के लिए प्रयोगशाला ले जाया जाता है. प्रयोगशाला में उपकरण की भी भारी कमी है.
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Harrison
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