बिहार

DM हत्याकांड में मिली है उम्रकैद, समर्थकों में उत्साह

Admin4
4 Nov 2022 1:17 PM GMT
DM हत्याकांड में मिली है उम्रकैद, समर्थकों में उत्साह
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पटना। सहरसा मंडलकारा में बंद पूर्व सांसद और बाहुबली आनंद मोहन सलाखों के बाहर आ गए हैं। चहेते रॉबिनहुड को जेल से बाहर अपने बीच पाकर समर्थक भी फूले नहीं समां रहे हैं। बता दें कि गोपालगंज के तत्कालीन DM के हत्याकांड मामले में पिछले 15 वर्षों से सजायाफ्ता हैं। पूर्व सांसद आनंद मोहन को 15 दिनों के लिए पैरोल अपनी बेटी की इंगेजमेंट में शामिल होने और बूढ़ी मां को देखने के लिए दी गई है।
आइये आपको बताते हैं ये आनंद मोहन हैं कौन -
बिहार के सहरसा जिेले के पचगछिया गाँव मे 28 जनवरी 1954 को आनंद मोहन सिंह का जन्म हुआ। उनके दादा राम बहादुर सिंह एक स्वतंत्रता सेनानी थे। राजनीति से उनका परिचय 1974 में लोकनायक जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति आंदोलन के दौरान हुआ, जिसके कारण उन्होंने अपना कॉलेज तक छोड़ दिया। इमरजेंसी के दौरान उन्हें 2 साल जेल में भी रहना पड़ा। कहा जाता है कि आनंद मोहन सिंह ने 17 साल की उम्र में ही अपना सियासी करियर शुरू कर दिया था।
स्वतंत्रता सेनानी और प्रखर समाज वादी नेता परमेश्वर कुंवर उनके राजनीतिक गुरु थे। बिहार में राजनीति जातिगत समीकरणों और दबंगई पर चलती है। आनंद मोहन ने इसी का फायदा उठाया और राजपूत समुदाय के नेता बन गए। वर्ष 1978 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई जब भाषण दे रहे थे तो आनंद मोहन ने काले झंडे दिखा कर सुर्खियां अपने नाम कर ली थी।
आनंद मोहन ने 1980 में समाजवादी क्रांति सेना की स्थापना की, जो कि निचली जातियों के उत्थान का मुकाबला करने के लिए बनाई गई थी। इसके बाद से तो उनका नाम अपराधियों में शुमार हो गया और वक्त-वक्त पर उनकी गिरफ्तारी पर इनाम घोषित होने लगे। उस दौरान उन्होंने लोकसभा चुनाव भी लड़ा लेकिन जीत नहीं पाए।
फिर 1990 में उन्हें जनता दल (JD) ने उन्हें माहिषी विधानसभा सीट से मैदान में उतारा जिसमे वे विजयी रहे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक विधायक रहते हुए भी वे एक कुख्यात सांप्रदायिक गिरोह के अगुआ थे, जिसे उनकी 'प्राइवेट आर्मी' कहा जाता था। यह गिरोह सिर्फ वैसे लोगों पर हमला करता था, जो आरक्षण के घोर समर्थक थे। जिसके बाद आनंद मोहन की 5 बार लोकसभा सांसद रहे राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव के गैंग के साथ लंबी अदावत चली। उस वक्त कोसी के इलाके में गृह युद्ध जैसी स्थिति पैदा हो गई थी। जिसके बाद सत्ता में 1990 के दशक में बदलाव हुआ जिसके बाद बिहार की राजनीति में राजपूतों का दबदबा कम हो गया। आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद ने 1994 में वैशाली लोकसभा सीट का उपचुनाव जीता। 1995 में एक वक्त ऐसा आया, जब युवाओं के बीच आनंद मोहन का नाम लालू यादव के सामने CM के तौर पर भी उभरने लगा था।
कई मामलों में आनंद मोहन पर संगीन आरोप लगे जिसमे अधिकतर मामले या तो हटा दिए गए या वो बरी हो गए। लेकिन एक मामला ऐसा भी आया जिसने उनकी जिंदगी ही बदल दी। इस घटना ने ना कि बिहार बल्कि पूरे देश को हिलाकर रख दिया। 5 दिसंबर 1994 को गोपालगंज के दलित आईएएस अधिकारी जी कृष्णैया की भीड़ ने पिटाई की और गोली मारकर हत्या कर दी। इस भीड़ को आनंद मोहन ने उकसाने का आरोप लगा। इस मामले में आनंद, उनकी पत्नी लवली समेत 6 लोगों को आरोपी बनाया गया था। साल 2007 में पटना हाईकोर्ट ने उन्हें दोषी ठहराया और फांसी की सजा सुनाई। आजाद भारत में यह पहला मामला था, जिसमें एक राजनेता को मौत की सजा दी गई थी। हालांकि 2008 में इस सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया गया।
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