गोपालगंज: प्रारंभिक स्कूलों में शौचालय को फंक्शनल बनाने व उसके मेंटनेंस की जिम्मेदारी निजी एजेंसी को देने की तैयारी विभाग ने शुरू कर दी है. डिसफंक्शनल शौचालयों को चिह्नित कर उसे उपयोगी बनाने क लिए शिक्षा विभाग निविदा आमंत्रित करने की कार्रवाई कर रही है. मिशन मोड के तहत बिहार शिक्षा परियोजना परिषद की ओर से अधिक से अधिक राशि की व्यवस्था की जाएगी. इसे विद्यालय स्वच्छता मिशन का नाम दिया जाएगा.
शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक ने समग्र शिक्षा अभियान की कार्ययोजना को लेकर जारी आदेश में यह बात कही है. अपर मुख्य सचिव ने कहा है कि टेंडर की प्रक्रिया जब भी हो तो इसमें एजेंसी का काम रहेगा कि वह तीन वर्षों तक न सिफ्र शौचालयों का निर्माण करे, बल्कि उसकी साफ-सफाई भी प्रतिदिन सुनिश्चित हो. कहा कि जब तक बिहार शिक्षा परियोजना परिषद शौचालयों को डिफेक्ट लायबलिटी पीरियड के अंतर्गत नहीं लाती है, तबतक विभाग द्वारा सूचीबद्ध एजेंसी के माध्यम से दैनिक साफ-सफाई की व्यवस्था हो. इसके लिए सूबे में 70 करोड़ की राशि प्राथमिक विद्यालय के लिए उपलब्ध कराई जाएगी. विभाग द्वारा सूचीबद्ध वेंडरों से शौचालयों की साफ-सफाई तय दरों पर डीईओ सुनिश्चित करेंगे. यह राशि सीधे डीईओ को दी जाएगी. लेकिन, वेंडरों को यह राशि भुगतान करने से पहले यह सुनिश्चित कर लिया जाएगा कि वैसे शौचालयों के लिए इस राशि का भुगतान नहीं हो, जिनको बिहार शिक्षा परियोजना परिषद की ओर से तीन वर्ष की तीन वर्ष की डीएलपी प्रणाली के तहत लिया गया हो. माध्यमिक विद्यालयों के लिए भी सूबे में 23.34 करोड़ की राशि वैसे माध्यमिक विद्यालयों को दी जाएगी, जिनके छात्र कोष व विकास कोष में पर्याप्त राशि नहीं है. जिन विद्यालयों में छात्र कोष व विकास कोष की राशि पर्याप्त है, वह विभाग द्वारा तय दरों के आधार पर वेंडर से काम करा सकते हैं.
क्या है वर्तमान स्थिति वर्तमान व्यवस्था के तहत शौचालय की साफ-सफाई विद्यालय समग्र विकास और आकस्मिकता निधि के रूप में प्रदत्त कम्पोजिट ग्रांट के भरोसे छोड़ दिया गया है. ये लिमिट बढ़ाकर 25 प्रतिशत तो कर दिया गया है. कंपोजिट ग्रांट से अधिकांश स्कूलों को औसतन मिलनेवाले 75 हजार रुपए में मात्र 18750 रुपए पूरे साल स्वच्छता के मद में खर्च के लिए मिलते हैं. यह राशि भी अमूमन आधा साल बीतने के बाद मिलती है. मध्य विद्यालय बीहट के एचएम रंजन कुमार ने बताया कि साल भर के 240 शिक्षण दिवस के आधार पर यह राशि स्कूल के लिए तकरीबन 78 रुपए प्रतिदिन की होती है. जबकि केवल टॉयलेट व यूरिनल की कम से कम एक बार सफाई के लिए प्रतिदिन आउटसोर्सिंग से स्वीपर की सेवा लेने पर औसतन 300 रुपए से अधिक व्यय होता है. सफाई के लिए सहायक उपकरणों व सामग्रियों यथा क्लीनर, फिनाइल, एसिड आदि की व्यवस्था में 200 रुपए प्रतिदिन अलग से खर्च होते हैं. दैनिक रूपसे औसतन खर्च 1000 रुपए आकलित होने पर पूरे साल एक स्कूल के लिए लगभग ढाई लाख रुपए खर्च की आवश्यकता केवल स्वच्छता मद में पड़ेगी.