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नए बोर्ड में अब पुराने अध्यक्षों को जगह मिलने की उम्मीद नहीं है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क : बिहार में संचालित सभी 23 सहकारी बैंकों को भंग करने की तैयारी है। इस संबंध में नाबार्ड ने निर्देश भी जारी कर दिया है। जिसमें कहा गया है कि सहकारी बैंकों को भंग करने के बाद केंद्र के नए नियमों के अनुसार सहकारी बैंकों के नए बोर्ड का पुनर्गठन किया जाएगा। नए नियम के अनुसार इस बार बोर्ड में 51 प्रतिशत हिस्सेदारी प्रोफेशनल लोगों की होगी। साथ ही जो नए नियम बनाए गए हैं, उसके अनुसार नए बोर्ड में अब पुराने अध्यक्षों को जगह मिलने की उम्मीद नहीं है।
सहकारी बैंकों के नए नियम को लेकर केन्द्र सरकार के सामने राज्य सरकार ने नए नियम से उत्पन्न समस्याओं को रखा तो इसके अध्ययन करने को एक समिति बनाई गई। गुजरात बैकुंठ मेहता समिति को इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई थी। लेकिन रिजर्व बैंक ने इनके सभी तर्कों को अनसुना कर दिया है।सहकारी बैंकों के बोर्ड को न सिर्फ भंग किया जा रहा है, बल्कि जो नए बोर्ड गठित होंगे। उनके कार्यकाल को भी पांच साल से घटाकर चार साल कर दिया गया है। ऐसे में दो टर्म अध्यक्ष रहने वाले भी आठ साल ही रह पाएंगे। इसके अलावा जिनका टर्म पूरा नहीं भी हुआ है, वे भी नए मानदंड में फिट नहीं हैं। लिहाजा अगर चुनाव हुआ तो सहकारी बैंकों का नया स्वरूप दिखेगा।
सहकारी बैंकों के बोर्ड को न सिर्फ भंग किया जा रहा है, बल्कि जो नए बोर्ड गठित होंगे। उनके कार्यकाल को भी पांच साल से घटाकर चार साल कर दिया गया है। ऐसे में दो टर्म अध्यक्ष रहने वाले भी आठ साल ही रह पाएंगे। इसके अलावा जिनका टर्म पूरा नहीं भी हुआ है, वे भी नए मानदंड में फिट नहीं हैं। लिहाजा अगर चुनाव हुआ तो सहकारी बैंकों का नया स्वरूप दिखेगा।
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