बिहार

सीमांचल के किसानों का फिर ‘बटुआ’ भरने लगा पटुआ

Shreya
10 Aug 2023 10:39 AM GMT
सीमांचल के किसानों का फिर ‘बटुआ’ भरने लगा पटुआ
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मोतिहारी: बदलते वक्त के साथ सीमांचल और कोसी में फसलों का ट्रेंड भी बदलता रहा है. अभी भले ही मक्का को कैश क्रॉप कहा जा रहा है लेकिन एक जमाने में जूट (पटुआ, पटसन, पाट) से ही सीमांचल के लाखों किसानों का ‘बटुआ’ भरता था. कालांतर में गन्ने की खेती ने जोर पकड़ी. फिर सूर्यमुखी, मक्का और अब मक्का की खेती बहुतायत में होने लगी है. मगर एक समय में सीमांचल के चारों जिलों में चारों ओर खेत में जूट ही नजर आता था. हालांकि, हालिया कुछ वर्षों में किसान पुरानी खेती की तरफ लौटने लगे हैं. पूर्णिया जिला में फिर से जूट खेती में तेजी आयी है.

पूर्णिया के जूट पार्क से उत्पाद की सप्लाई

पूर्णिया में बियाडा मरंगा में जूट पार्क है. यहां जूट का रस्सी, बोरा समेत अन्य उत्पाद तैयार होता है. इसकी सप्लाई देश के अलग-अलग राज्यों में होती है. जूट की जरूरत आयुध कारखाना में भी होती है. पूर्णिया में बियाडा मरंगा में करीब 42 एकड़ भूभाग में जूट पार्क है. 2012 में पुनरासर जूट पार्क की स्थापना की गई. यहां काफी मात्रा में जूट की सप्लाई होती है.

जूट की ओर किसानों का बढ़ा रूझान, महिला भी नहीं पीछे

जूट की खेती का बढ़ा रुझान

● कितने दिन का फसल- तीन माह की अवधि.

● एक एकड़ में उत्पादन-12 से 15 क्विटंल.

● जूट का अभी बाजार में कीमत -6 से सात हजार प्रतिदिन.

● लोकल मार्केट के अलावा गुलाबबाग मार्केट में जूट की बिक्री.

● रस्सी, बोरा, आयुध कारखाना में भी जूट की जरूरत.

धमदाहा अनुमंडल में सबसे अधिक खेती

पूर्णिया जिला में पटसन की सबसे अधिक खेती धमदाहा अनुमंडल में होती है. कभी अनुमंडल की पहचान केलांचल के रूप में हो चुकी थी लेकिन पनामा बिल्ट नामक केला फसल की महामारी के वजह से अनुमंडल क्षेत्र के किसान एक बार फिर पुराने खेती की तरफ अपना रुख करने लगे हैं. अनुमंडल क्षेत्र के किसानों के जिस खेतों में पूर्व में केला की फसल लहलहाती थी. उन खेतों में इस समय पटुआ के फसल लगे हुए हैं. बताना मुनासिब होगा कभी में पटुआ की खेती धमदाहा अनुमंडल की पहचान रही थी. इस समय एक बार फिर धमदाहा अनुमंडल क्षेत्र के चारों प्रखंडो में पटुआ की प्रचुर मात्रा में खेती करने का काम किसानों के द्वारा किया गया है.

केलाकी खेती में जहां काफी लागत और मेहनत लगती थी. वहीँ पटुआ की खेती में काफी कम लागत और मेहनत किसानों के द्वारा करनी पड़ती है. बोआई के बाद पटुआ की खेती में ना पटवन का झंझट और ना ही ज्यादा मजदूरों की टेंशन किसानों को होती है. पटुआ की खेती में कम लागत में किसानों को अच्छी आमदनी मिल जाती है, जिस वजह से किसानों के द्वारा इस वर्ष प्रचुर मात्रा में पटुआ की खेती अनुमंडल क्षेत्र में की गयी है. अनुमंडल क्षेत्र में पटुआ की खेती करने में पुरुषों के साथ-साथ महिला किसान भी बराबरी का हिस्सेदारी निभा रही हैं. कल तक घरों की दहलीज में कैद रहनेवाली महिलाएं इस समय पुरुषों के साथ कांधे से कंधा मिलाकर खेती कर रही है.

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