पटना: चयनित समितियों को कैश क्रेडिट मिल गया। चुनाव भी खत्म हो चुका है। बावजूद, जिले में धान खरीद पटरी पर नहीं लौटी है। हद तो यह कि जिन किसानों ने धाना बेचा है, उनमें से आधे को उपज के एवज में राशि नहीं मिली है। जबकि, दावा किया गया था कि धान देने के बाद 48 घंटे में हर हाल में किसान के खाते में राशि भेज दी जाएगी।
व्यवस्था की खामियां वजह बन रही है तो अन्नदाताओं को पैक्सों की खाक छाननी पड़ रही है। हद तो यह कि खरीद की प्रक्रिया शुरू हुए 29 दिन बीत गये हैं। विडंबना यह कि चयनित समितियों में से 54 द्वारा अबतक एक छंटाक धान की खरीद नहीं की गयी है। खासकर वैसी पैक्सों में खरीद की प्रक्रिया अटकी है, जहां चुनाव में पुराने चेहरे की हार हुई और नये चेहरे जीतकर आये हैं। आपसी विवाद की वजह से कहीं कार्यकारिणी गठन की प्रक्रिया पूरी नहीं हुई है तो कहीं प्रबंधक और नये अध्यक्ष व कार्यकारिणी में तालमेल का अभाव धान खरीद की रफ्तार को रोक रहा ह्रै। इसबार धान खरीद के लिए 213 समितियों का चयन किया गया है। इनमें 200 पैक्स तो 13 व्यापार मंडल हैं। अबतक 551 किसानों से 4932.504 टन धान की खरीद की गयी है। इनमें से 296 किसानों के खाते में राशि भेज दी गयी है। जबकि, 255 किसान राशि मिलने के इंतजार में बैठे हैं। विभागीय आंकड़ों के अनुसार राशि भुगतान के लिए 461 किसानों का एडवाइस (अग्रिम भुगतान बिल) जेनरेट कर दिया गया है। इनमें से करीब 12 एडवास समिति तो 17 बीसीओ (प्रखंड सहकारिता पदाधिकारी) के स्तर पर सत्यापन के लिए पेंडिंग हैं। जबकि, सारी प्रक्रिया हो जाने के बाद भी छह एडवाइस बैंक के स्तर पर लंबित है।
क्या है भुगतान की प्रक्रिया: किसान पैक्स को धान देते हैं। पैक्स ऑनलाइन कैश क्रेडिट के एवज में किसान को भुगतान करने के लिए बीसीओ को रिपोर्ट करती है। बीसीओ की जवाबदेही यह कि वे पैक्स गोदाम में जाकर यह सत्यापन करते हैं कि किसान से खरीदा का धान मौजूद है अथवा नहीं है। संतुष्ट होने पर वे एडवाइस जेनरेटर कर बैंक को भेजते हैं। बैंक से प्रक्रिया पूरी होने के बाद एसएफसी को जाता है। एसएफसी से पुन: मुख्य बैंक में किसानों की सूची तैयार कर भेजी जाती है। उसके बाद बैक किसान के खाते में राशि भेजता है।
नये-पुराने के पेच में खरीद प्रभावित: इसबार के हुए चुनाव में करीब 47 पैक्सों में अध्यक्ष व कार्यकारिणी सदस्य के तौर पर नये चेहरे जीतकर आये हैं। अध्यक्ष और पुराने प्रबंधक में जिन-जिन समितियों में टकराव व मनमुनाव की स्थित बनी है, वहां धान खरीद की प्रक्रिया अटकी हुई है। आपसी मतभेद की वजह से बहुत जगहों पर नौबत ऐसी कि अबतक कार्यकारिणी तक का गठन नहीं हुआ है।