Patna: दौलाचक स्कूल की रसोईये भी चेतना सत्र में होती हैं शामिल
पटना: गिरियक प्रखंड का दौलाचक उत्क्रमित मध्य विद्यालय में बच्चे, शिक्षकों समेत रसोईये भी चेतना सत्र में शामिल होती हैं. स्कूल में आठ कमरे हैं. एक कमरे में सुसज्जित कार्यालय है. सभी वर्ग कक्षों में पंखे व रोशनी की पुख्ता व्यवस्था है. खास बात यह कि सभी वर्ग कक्षों की दीवारों की पेंडिग अलग-अलग रंगों से करायी गयी है. ताकि, हर वर्ग कक्ष एक-दूसरे से अलग दिखे. स्कूल प्रशासन ने बाल संसद व मीना मंच के सदस्य को अलग से पहचान पत्र व बैच जारी किया है.
बच्चों के लिए सप्ताह में दो तरह का ड्रेस कोड लागू है. बाल संसद के प्रधानमंत्री रिया कुमारी, उप प्रधानमंत्री संटू कुमार, शिक्षा मंत्री नवनीत कुमार, आपदा प्रबंधन मंत्री विक्रम कुमार ने बताया कि समय पर चेतना सत्र आयोजित करने, पर्यावरण को संरक्षित रखने व गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिले, इसके लिए गुरुजनों के मार्गदर्शन में लगातार कार्यक्रम आयोजित कर छात्रों को प्रोत्साहित किया जाता है. स्कूल में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिलने की वजह से राष्ट्रीय प्रतिभा खोज प्रतियोगिता परीक्षा में भी बच्चे सफलता पा रहे हैं. यहां के नौनिहाल बच्चे हमेशा बेहतर प्रोजेक्ट बनाते हैं.
निजी स्कूलों के छात्र भी करा रहे यहां नामांकन स्कूल की व्यवस्था ऐसी की आस-पास के निजी स्कूलों के करीब 60 से 70 बच्चे प्रतिवर्ष इस स्कूल में नामांकन करवा रहे हैं. शिक्षिका राहत आजमी के मार्गदर्शन में नौनिहाल बच्चे हमेशा प्रोजेक्ट बनाकर एक-दूसरे को प्रोत्साहित करते हैं. हाल में आठवीं कक्षा के मंजीत कुमार ने जल-जीवन हरियाली पर आधारित बेहतर प्रोजेक्ट बनाकर दूसरे छात्रों को प्रोजेक्ट बनाने के लिए प्रोत्साहित किया है. मीना मंच की नोडल शिक्षिका बबीता कुमारी की देखरेख में मीना मंच की सचिव रागिनी कुमारी व अन्य सदस्यों द्वारा छात्राओं को स्वास्थ की नियमित देखभाल करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं. पुस्तकालय की व्यवस्था ऐसी की दुकान की तरह रैक में पुस्तकों को सजा कर रखा गया है. जरूरत से बच्चे पढ़ाई के बाद व्यवस्थित तरीके से इसी रैक में पुस्ताकों को रखते हैं. यह यहां के अनुशासन को दर्शाता है.
दो तरह का ड्रेस कोड लागू प्राचार्य शिशिर कुमार सिन्हा ने बताया कि बच्चों के लिए दो तरह का ड्रेस कोड लागू है. शत-प्रतिशत बच्चे ड्रेस में ही विद्यालय आते हैं. सभी शिक्षक समर्पण भाव से स्कूल में सेवा कर रहे हैं. अभिभावक शिक्षक बैठक (पीटीएम) में 98 फीसदी अभिभावकों की उपस्थिति होती है. विद्यालय शिक्षा समिति की सदस्य सुनीता देवी, सचिव सरिता देवी भी विद्यालय के विकास के प्रति समर्पित है. खास बात यह कि ग्रामीणों का काफी सहयोग मिलता है. इसका एक उदाहरण भी यहां है.
ग्रामीण कुमार कुणाल ने स्कूल की व्यवस्था से प्रभावित होकर मुख्य दरवाजा स्कूल प्रशासन को भेंट किया है. इससे विद्यालय काफी सुरक्षित हो गया है. यह विद्यालय और यहां की व्यवस्था अन्य स्कूलों के लिए एक नजीर बन चुका है. यह दर्शाता है कि इच्छा शक्ति से खुद के दम पर भी व्यवस्था को कायम किया जा सकता है. कमियों का रोना रोने की बजाय, उसे सुधारने में अपनी शक्ति का खर्च करें, तो हर कुछ संभव है. कुछ इसी तरह की व्यवस्था उत्तरा, सोनसा व पोखरपुर विद्यालयों में भी देखने को मिलती है. ये निजी विद्यालयों पर भारी पड़ रहे हैं. कम संसाधन के बावजूद इस तरह की व्यवस्था एक सफल प्रबंधन की कहानी बयां करती हैं. इससे अन्य स्कूलों को सीखने की जरूरत है.
खासकर उन्हें जो अब तक कमियों का रोना रोते रहे हैं. आखिर इसी व्यवस्था के बीच यह स्कूल ऐसा क्यों है. इस पर अन्य शिक्षकों व स्कूल प्रबंधन को सोचकर अपनी नीति करने की जरूरत है.