Patna: वायु प्रदूषण सांस की नली और फेफड़े का बढ़ा रहा संक्रमण
पटना: वायु प्रदूषण और वातावरण में बढ़ते धूलकण सांस की नली और फेफड़े में सूजन की समस्या को बढ़ा रहा है. चिकित्सकों की ओर से इसे सीओपीडी (क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज) बीमारी का नाम दिया गया है. अस्थमा जैसे लक्षण वाली इस बीमारी को सामान्यत 40 साल से अधिक आयुवर्ग की बीमारी माना जाता है, पर सांस और छाती रोग विशेषज्ञ इसे अस्थमा से ज्यादा खतरनाक बताते हैं. प्रदूषण की मात्रा इसी तरह बढ़ती रही तो आनेवाले चार-पांच साल में यह देश में होनेवाली मौतों के कारणों में से दो प्रमुख बीमारी में से एक हो सकता है.
क्या होता है सीओपीडी और क्या हैं लक्षण क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) एक ऐसी बीमारी है, जो फेफड़ों और सांस नली को प्रभावित करती है और सांस लेने में दिक्कत पैदा करती है. इसमें सांस नली और फेफड़ों में सूजन, ज्यादा बलगम बनने लगता है जो फेफड़ों की सांस वाली थैलियों को नुकसान पहुंचाते हैं. ऐसी खांसी जो जल्दी ठीक नहीं होती है, दम फूले, बड़ी मात्रा में बलगम निकलने लगे और बैठे-बैठे हांफ हो तो ये सीओपीडी के लक्षण हैं. ये लक्षण समय के साथ और गंभीर होते जाते हैं. सीओपीडी से सांस लेने में दिक्कत, सीने में जकड़न और नियमित गतिविधियों को करने में समस्या होती है. सांस और छाती रोग विभाग, पीएमसीएच के वरीय चिकित्सक प्रो. डॉ. बीके चौधरी ने बताया कि सीओपीडी अब सिर्फ फेफड़े की बीमारी नहीं रह गई है. यह हृदय रोग का भी बड़ा कारण हो रहा है. पीड़ितों में 50 लोग हृदय रोग से भी ग्रसित हो रहे हैं. अगर किसी को सीओपीडी है तो उन्हें अपने हृदय की नियमित जांच करानी चाहिए. पारस अस्पताल के सांस और छाती रोग विभाग के हेड डॉ. प्रकाश सिन्हा ने बताया कि इस वर्ष विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सीओपीडी दिवस का थीम नो योर लंग्स (अपने फेफड़े को जानिए) रखा है. लोगों को अपने फेफड़े की क्षमता का आकलन सांस संबंधी व्यायाम के माध्यम से भी कर लेनी चाहिए. ठंड के तीन महीने सीओपीडी पीड़ितों के लिए खतरनाक है. डॉ. बीके चौधरी और डॉ. प्रकाश सिन्हा ने कहा कि यह बीमारी पीड़ितों में गंभीर शारीरिक परेशानी पीड़ित के परिवार और सरकार पर गंभीर आर्थिक बोझ का भी कारण बनती है.
डॉ. बीके चौधरी ने बताया कि 50 साल से अधिक आयु के लोगों को साल में एक बार फ्लू का और पांच साल में एक बार निमोनिया का टीका जरूर लगाना चाहिए. दूसरे पीड़ितों को ठंड और प्रदूषण से बचना चाहिए. बीमारी की शुरुआत में ही जरूरी एंटीबायटिक लेकर बीमारी को दबाना चाहिए अन्यथा पीड़ित को अस्पताल में भर्ती कराने की आवश्यकता पड़ जाती है. अगर सीओपीडी है तो अपने हृदय की जांच भी जरूर करानी चाहिए. अपने घर के आसपास जगह हो तो प्रदूषण कम करने के लिए पेड़-पौधे लगाने चाहिए.